13 मई का दिन और यह अंक ऐतिहासिक है। इसका साथ सबसे ज्यादा भारत रत्न अटल जी के साथ रहा। वर्ष 1998 में इसी दिन भारत ने दो और परमाणु परीक्षण किए थे। उस समय श्री अटल बिहारी वाजपेयी प्रधानमंत्री थे। उन्होंने दुनिया के ताकतवर देशों की परवाह न करते हुए परमाणु परीक्षण का आदेश दिया था। इससे दो दिन पहले यानी 11 मई को भारत ने राजस्थान के पोकरण में परमाणु परीक्षण कर दुनिया को चौंका दिया था। अमेरिका भी चकमा खा गया था। अटल सरकार की व्यूह रचना के आगे अमेरिका के उपग्रह फेल हो गए थे। अमेरिका सहित कई देशों ने भारत पर कड़े प्रतिबंध लगाने की चेतावनी दी, लेकिन, अटल जी अपने फैसलों पर अटल रहे।
पाञ्चजन्य के प्रथम संपादक श्री अटल बिहरी वाजपेयी जी थे। उन्होंने देश का नेतृत्व किया। प्रधानमंत्री बनने के बाद पाञ्चजन्य को दिए साक्षात्कार में उन्होंने कहा था कि भारत को परमाणु शस्त्रों से सज्ज करना (पोकरण) सबसे तृप्तिदायक मानता हूं। पोकरण 2 में अटल जी की चट्टानी दृढ़ता दिखी। अमेरिका ने भारत का बहुत ज्यादा विरोध किया। प्रतिबंध लगाए। सुपर कंप्यूटर देने से मना कर दिया। परमाणु कार्यक्रमों के लिए जरूरी हेवी वाटर की आपूर्ति रोक दी। सैन्य उपकरण पर रोक लगा दी। अमेरिका की देखादेखी पूरा यूरोप भारत के विरुद्ध खड़ा हो गया था। लेकिन अटल जी का निर्णय अटल था। इसके बाद भारत ने खुद सुपर कंप्यूटर विकसित किया। ऑपरेशन शक्ति (पोकरण-2) परमाणु परीक्षण करवाकर अटलजी ने दुनिया में भारत को नए सिरे से प्रतिष्ठा दिलाई।
13 अंक से विशेष नाता
तीन बार देश के प्रधानमंत्री रहे अटलजी का 13 अंक के साथ विशेष नाता रहा है। पहली बार 13 मई 1996 को प्रधानमंत्री के रूप में शपथ ली। इसके बाद बहुमत सिद्ध न कर पाने की वजह से उनकी सरकार महज 13 दिन ही चल सकी। वह जब दूसरी बार 1998 में प्रधानमंत्री बने तो सरकार 13 महीने चली। वर्ष 1999 में जब प्रधानमंत्री बने तो जिन राजनीतिक दलों के साथ गठबंधन था, उनकी संख्या 13 थी। इतना ही नहीं 13 अक्टूबर 1999 को उन्होंने शपथ भी ली और सरकार का कार्यकाल पूरा किया।
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मौत से ठन गई
ठन गई!
मौत से ठन गई!
जूझने का मेरा इरादा न था,
मोड़ पर मिलेंगे इसका वादा न था,
रास्ता रोक कर वह खड़ी हो गई,
यों लगा ज़िन्दगी से बड़ी हो गई।
मौत की उमर क्या है? दो पल भी नहीं,
ज़िन्दगी सिलसिला, आज कल की नहीं।
मैं जी भर जिया, मैं मन से मरूँ,
लौटकर आऊँगा, कूच से क्यों डरूँ?
तू दबे पाँव, चोरी-छिपे से न आ,
सामने वार कर फिर मुझे आज़मा।
मौत से बेख़बर, ज़िन्दगी का सफ़र,
शाम हर सुरमई, रात बंसी का स्वर।
बात ऐसी नहीं कि कोई ग़म ही नहीं,
दर्द अपने-पराए कुछ कम भी नहीं।
प्यार इतना परायों से मुझको मिला,
न अपनों से बाक़ी हैं कोई गिला।
हर चुनौती से दो हाथ मैंने किये,
आंधियों में जलाए हैं बुझते दिए।
आज झकझोरता तेज़ तूफ़ान है,
नाव भँवरों की बाँहों में मेहमान है।
पार पाने का क़ायम मगर हौसला,
देख तेवर तूफ़ाँ का, तेवरी तन गई।
मौत से ठन गई।
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