रावण द्वारा सीता हरण करके लंका जाते समय पुष्पक विमान का मार्ग क्या था? उस मार्ग में कौन-सा वैज्ञानिक रहस्य छुपा हुआ है? उस मार्ग के बारे में लाखों साल पहले कैसे जानकारी थी?
वामपंथी इतिहासकारों की धज्जियां उड़नी अब शुरू हो चुकी हैं, क्योंकि लिखने वाले नए लड़के आ रहे हैं। इनकी दृष्टि वैज्ञानिक भी है और तार्किक भी। सबसे बड़ी बात उनको भारतीय इतिहास-संस्कृति में भरोसा भी है। रावण द्वारा सीता हरण करके लंका जाते समय पुष्पक विमान का मार्ग क्या था? उस मार्ग में कौन-सा वैज्ञानिक रहस्य छुपा हुआ है? उस मार्ग के बारे में लाखों साल पहले कैसे जानकारी थी? इन प्रश्नों के उत्तर वामपंथी इतिहासकारों के लिए मृत्यु समान हैं।
रावण ने मां सीता का अपहरण पंचवटी (नासिक, महाराष्ट्र) से किया और पुष्पक विमान द्वारा हम्पी (कर्नाटक), लेपक्षी (आंध्र प्रदेश) होते हुए श्रीलंका पहुंचा। आश्चर्य होता है, जब हम आधुनिक तकनीक से देखते हैं कि नासिक, हम्पी, लेपक्षी और श्रीलंका बिलकुल एक सीधी पंक्ति में हैं। अर्थात् यह पंचवटी से श्रीलंका जाने का सबसे छोटा रास्ता है।
वाल्मीकि जी ने क्यों सीता हरण के लिए केवल उन्हीं स्थानों का जिक्र किया जो पुष्पक विमान का सबसे छोटा और बिलकुल सीधा रास्ता था? यह ठीक वैसे ही है कि आज से 500 साल पहले गोस्वामी तुलसीदास जी को कैसे पता चला कि पृथ्वी से सूर्य की दूरी क्या है?
अब आप सोचिए कि उस समय गूगल मैप नहीं था, जो सबसे छोटा रास्ता बता देता। यदि भारत विरोधियों के अहं की संतुष्टि के लिए मान भी लें कि रामायण केवल एक महाकाव्य है, जिसे महर्षि वाल्मीकि ने लिखा। फिर यह बताओ कि वाल्मीकि को कैसे पता लगा कि पंचवटी से श्रीलंका का सीधा व छोटा रास्ता कौन-सा है?
महाकाव्य में घटनाओं को बताने के लिए किसी भी स्थान का उल्लेख किया जा सकता था, लेकिन वाल्मीकि जी ने क्यों सीता हरण के लिए केवल उन्हीं स्थानों का जिक्र किया जो पुष्पक विमान का सबसे छोटा और बिलकुल सीधा रास्ता था? यह ठीक वैसे ही है कि आज से 500 साल पहले गोस्वामी तुलसीदास जी को कैसे पता चला कि पृथ्वी से सूर्य की दूरी क्या है? (जुग सहस्र योजन पर भानु =152 मिलियन किमी., हनुमान चालीसा), जबकि नासा ने कुछ साल पहले इस दूरी का पता लगाया है।
जब टीवी पर रामायण देखें तो यह न सोचें कि कथा चल रही है, बल्कि निरंतर यह ध्यान रखें कि हमारा इतिहास चल रहा है। इस दृष्टि से रामायण देखें और समझें। यही दृष्टि बच्चों को दें। उन्हें बताएं कि यह कथा-कहानी नहीं है। यह हमारा इतिहास है,
पंचवटी वह स्थान है, जहां प्रभु श्रीराम, माता जानकी और भ्राता लक्ष्मण वनवास के समय रह रहे थे। यहीं शूर्पणखा आई और लक्ष्मण से विवाह करने के लिए उपद्रव करने लगी। विवश होकर लक्ष्मण ने शूपर्णखा की नाक यानी नासिका काट दी। आज इस स्थान को हम नासिक के नाम से जानते हैं। पुष्पक विमान में जाते हुए सीता ने नीचे देखा कि एक पर्वत के शिखर पर बैठे कुछ वानर ऊपर की ओर कौतूहल से देख रहे हैं तो उन्होंने अपने वस्त्र की कोर फाड़कर उसमें कंगन बांधकर नीचे फेंक दिए, ताकि राम को उन्हें ढूंढ़ने में सहायता मिल सके। जिस स्थान पर सीता जी ने उन वानरों को ये आभूषण फेंके, वह स्थान था ऋष्यमूक पर्वत जो आज के हम्पी में है।
इसके बाद वृद्ध गिद्धराज जटायु ने देखा कि कोई राक्षस किसी स्त्री को बलात् विमान में लेकर जा रहा है। जटायु ने सीता को छुड़ाने के लिए रावण से युद्ध किया। रावण ने तलवार से जटायु के पंख काट दिए। सीता को ढूंढ़ते हुए जब राम और लक्ष्मण वहां पहुंचे तो, उन्होंने दूर से ही जटायु को सबसे पहला संबोधन ‘हे पक्षीराज’ कहते हुए किया। उस जगह का नाम दक्षिण भाषा में लेपक्षी है। क्या समझ आया आपको? पंचवटी-हम्पी-लेपक्षी श्रीलंका। सीधा रास्ता। सबसे छोटा रास्ता।
अपने ज्ञान-विज्ञान, संस्कृति को भूल चुके भारत बंधुओं! रामायण कोई माइथोलॉजी नहीं है। यह महर्षि वाल्मीकि द्वारा लिखा गया सत्य इतिहास है, जिसके समस्त वैज्ञानिक प्रमाण आज उपलब्ध हैं। इसलिए जब भी कोई वामपंथी हमारे इतिहास, संस्कृति, साहित्य को माइथोलॉजी कह कर लोगों को भ्रमित करने का या खुद को विद्वान दिखाने का प्रयास करे तो उसको पकड़कर बिठा लेना और उससे इन सवालों के जवाब पूछना।
विश्वास करो, वह एक का भी जवाब नहीं दे पाएगा। अब इस सबमें आपकी जिम्मेदारी क्या है? आपके हिस्से की जिम्मेदारी यह है कि अब जब टीवी पर रामायण देखें तो यह न सोचें कि कथा चल रही है, बल्कि निरंतर यह ध्यान रखें कि हमारा इतिहास चल रहा है। इस दृष्टि से रामायण देखें और समझें। यही दृष्टि बच्चों को दें। उन्हें बताएं कि यह कथा-कहानी नहीं है। यह हमारा इतिहास है, जिसको मिटाने की कोशिश की गई है।
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