चीन की बेल्ट एंड रोड परियोजना बर्बादी की सड़क
May 9, 2025
  • Read Ecopy
  • Circulation
  • Advertise
  • Careers
  • About Us
  • Contact Us
android app
Panchjanya
  • ‌
  • विश्व
  • भारत
  • राज्य
  • सम्पादकीय
  • संघ
  • वेब स्टोरी
  • जीवनशैली
  • अधिक ⋮
    • विश्लेषण
    • लव जिहाद
    • खेल
    • मनोरंजन
    • यात्रा
    • स्वास्थ्य
    • संस्कृति
    • पर्यावरण
    • बिजनेस
    • साक्षात्कार
    • शिक्षा
    • रक्षा
    • ऑटो
    • पुस्तकें
    • सोशल मीडिया
    • विज्ञान और तकनीक
    • मत अभिमत
    • श्रद्धांजलि
    • संविधान
    • आजादी का अमृत महोत्सव
    • मानस के मोती
    • लोकसभा चुनाव
    • वोकल फॉर लोकल
    • जनजातीय नायक
    • बोली में बुलेटिन
    • पॉडकास्ट
    • पत्रिका
    • ओलंपिक गेम्स 2024
    • हमारे लेखक
SUBSCRIBE
  • ‌
  • विश्व
  • भारत
  • राज्य
  • सम्पादकीय
  • संघ
  • वेब स्टोरी
  • जीवनशैली
  • अधिक ⋮
    • विश्लेषण
    • लव जिहाद
    • खेल
    • मनोरंजन
    • यात्रा
    • स्वास्थ्य
    • संस्कृति
    • पर्यावरण
    • बिजनेस
    • साक्षात्कार
    • शिक्षा
    • रक्षा
    • ऑटो
    • पुस्तकें
    • सोशल मीडिया
    • विज्ञान और तकनीक
    • मत अभिमत
    • श्रद्धांजलि
    • संविधान
    • आजादी का अमृत महोत्सव
    • मानस के मोती
    • लोकसभा चुनाव
    • वोकल फॉर लोकल
    • जनजातीय नायक
    • बोली में बुलेटिन
    • पॉडकास्ट
    • पत्रिका
    • ओलंपिक गेम्स 2024
    • हमारे लेखक
Panchjanya
panchjanya android mobile app
  • होम
  • विश्व
  • भारत
  • राज्य
  • सम्पादकीय
  • संघ
  • वेब स्टोरी
  • जीवनशैली
  • विश्लेषण
  • मत अभिमत
  • रक्षा
  • संस्कृति
  • पत्रिका
होम विश्व

चीन की बेल्ट एंड रोड परियोजना बर्बादी की सड़क

  चीन ने तलवार का इस्तेमाल किए बिना ही दुनिया भर के कई देशों को कर्ज के जाल में फांस कर उन्हें अपने प्रभाव में ले लिया है।

by आदर्श सिंह
May 6, 2022, 07:48 pm IST
in विश्व
FacebookTwitterWhatsAppTelegramEmail

चीन ने तलवार का इस्तेमाल किए बिना ही दुनिया भर के कई देशों को कर्ज के जाल में फांस कर उन्हें अपने प्रभाव में ले लिया है। सिल्क रोड के नाम पर पाकिस्तान बुरी तरह बरबाद हो चुका है। परंतु चीन की मक्कारी अब पूरी तरह सामने आ चुकी है। अब कई देश चीन के सहयोग से बनने वाली परियोजनाएं रद्द करने लगे


चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने 2013 में जब अपनी सबसे महत्वाकांक्षी बेल्ट एंड रोड परियोजना (बीआरआई) की घोषणा की थी तो शायद उन्हें अमेरिका के दूसरे राष्ट्रपति जॉन एडम्स का यह प्रसिद्ध कथन भी याद रहा होगा जिसमें उन्होंने था, ‘राष्ट्रों को गुलाम बनाने के दो तरीके हैं। पहला तलवार से और दूसरा उन्हें कर्ज के जाल में फंसा कर’। शी ने इस परियोजना को आधुनिक युग का सिल्क रोड बताते हुए दावा किया था कि यह वैश्विक संपर्क, विकास और सद्भाव का मार्ग प्रशस्त करेगी। संपर्क, विकास और सद्भाव का मार्ग प्रशस्त करने के लिए ही तो चीन ने 2014 के बाद से ही सभी कर्जों में गोपनीयता और संप्रभु गारंटी की शर्त थोपनी शुरू कर दी। आज नौ साल बाद सैकड़ों अरब डॉलर के निवेश के बावजूद इस परियोजना के सबसे उत्साही पैरोकार भी इसके फायदे बता पाने या इन परियोजनाओं के लिए कर्ज की शर्तें बता पाने में असमर्थ हैं। संपर्क या कनेक्टिविटी योजनाओं के नाम पर सफेद हाथी बने बंदरगाह बरबादी के राजमार्ग हैं। लेकिन ये सफेद हाथी चीन के लिए रणनीतिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण हैं और वह कभी भी इन्हें अपने कब्जे में ले सकता है। विकास के नाम पर आलम यह है कि कई देश दिवालिया होने के कगार पर हैं और सद्भाव कितना बढ़ा है, वह मंगलवार को कराची विश्वविद्यालय में चीनी नागरिकों पर हुए आत्मघाती हमले से जाहिर हो जाता है।

 

कई देशों को फंसाया कर्ज जाल में
अगर एडम्स की बात पर जाएं तो कम से कम यह कहा जा सकता है कि तलवार का उपयोग किए बिना ही दुनिया भर के कई देश चीन ने को कर्ज के जाल में फांस कर उन्हें अपने प्रभाव में ले लिया है। वह आज दुनिया का सबसे बड़ा कर्जदाता देश है। चीन ने आज तक यह स्पष्ट नहीं किया है कि बेल्ट एंड रोड परियोजना वास्तव में है क्या और किसके तहत किन परियोजनाओं के लिए कर्ज दिया जाएगा। इस बारे में जान-बूझकर एक भ्रम व अनिश्चितता बनाए रखी गई जिसमें भ्रष्टाचार और अवसरवादिता की भरपूर गुंजाइश थी। लेकिन मध्यम व गरीब आय वर्ग के देशों को इसमें लाभ ही लाभ दिखा। जिन परियोजनाओं की व्यवहार्यता पर संशय के कारण कोई और देश कर्ज देने को तैयार नहीं था, उसके लिए चीन तत्पर था। दूसरे विश्व बैंक और अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष मानवाधिकार और पारदर्शिता जैसी तमाम शर्तें रखते हैं जिनसे भ्रष्ट व तानाशाही सरकारों को दिक्कत होती थी। ऐसे देशों को चीनी प्रस्ताव आकर्षक लगे क्योंकि चीन को अपने मुनाफे के अलावा किसी अन्य चीज से मतलब नहीं था।

शोध रपटें बताती हैं  कि बेल्ट एंड रोड परियोजना के तहत कम से कम 385 अरब डॉलर का छिपा हुआ कर्ज है जिसके बारे में दुनिया को पता ही नहीं। जॉन हापकिंस विश्वविद्यालय के चाइना अफ्रीका रिसर्च इनीशिएटिव ने पाया कि जांबिया में सरकार बदलने के बाद पता चला कि चीनी कर्ज वास्तव में उससे दोगुना अधिक है जितना कि पूर्ववर्ती सरकार बता रही थी।    

लेकिन चीन की अन्य शर्तें बहुत ही कड़ी और सिर्फ अपने फायदे की थीं और मजबूरी यह कि कर्जदार देश इन्हें सार्वजनिक भी नहीं कर सकता। पश्चिमी कर्जदाता संस्थानों के मानक ये रहे हैं कि सार्वजनिक कर्ज की शर्तें सार्वजनिक होनी चाहिए और करदाताओं से कोई चीज छिपी नहीं होनी चाहिए। चीन ने इसकी जगह गोपनीयता की शर्त रखी। उसने संरचनागत परियोजनाओं के लिए वाणिज्यिक दरों पर कर्ज बांटे और जिस देश की आर्थिक स्थिति जितनी खराब थी, उसे उतने ही महंगे सूद पर कर्ज दिए गए। जबकि जापान विकासशील देशों को सिर्फ आधा प्रतिशत ब्याज पर कर्ज देता है। इतना ही नहीं, पश्चिमी संस्थान जहां ऋण चुकाने के लिए 28 साल का समय देते हैं तो चीन सिर्फ दस साल देता है। तस्वीर अभी बाकी है। चीन संपत्ति के बदले में कर्ज देता है। यदि भुगतान में कोई अड़चन आई तो चीन उस संपत्ति पर कब्जा कर लेता है। साथ ही प्रत्येक कर्जदार को एक विदेशी खाता रखना होता है जिसमें एक न्यूनतम रकम रखनी होती है। अगर कर्ज चुकाने में कोई अड़चन आई तो किसी न्यायिक प्रक्रिया में उलझे बिना चीनी बैंक या कंपनियां उस खाते से यह रकम निकाल सकती हैं।

‘कोई पूछताछ नहीं, कोई शर्त नहीं, पारदर्शिता की कोई मांग नहीं’ की यह चीनी नीति आज कितनी सफल है, उसका पता इससे चलता है कि दुनिया के 42 देश ऐसे हैं हैं जिन पर चीनी कर्ज उनकी जीडीपी के दस प्रतिशत से ज्यादा है। जिबूती, लाओस, जांबिया और किर्गिस्तान पर चीनी कर्ज उनकी जीडीपी के बीस प्रतिशत से भी ज्यादा है। पिछले 18 साल में चीन ने 165 देशों में 13,000 परियोजनाओं के लिए 843 अरब डॉलर के कर्ज बांटे हैं। शोध रपटें बताती हैं  कि बेल्ट एंड रोड परियोजना के तहत कम से कम 385 अरब डॉलर का छिपा हुआ कर्ज है जिसके बारे में दुनिया को पता ही नहीं। जॉन हापकिंस विश्वविद्यालय के चाइना अफ्रीका रिसर्च इनीशिएटिव ने पाया कि जांबिया में सरकार बदलने के बाद पता चला कि चीनी कर्ज वास्तव में उससे दोगुना अधिक है जितना कि पूर्ववर्ती सरकार बता रही थी।

बरबादी की सड़कें और बंदरगाह
चीनी कर्ज से बरबादी की सड़कें और बंदरगाह बनते हैं, परियोजनाएं पूरी नहीं होतीं लेकिन इस बीच कर्ज कई गुना बढ़ जाता है। पाकिस्तान इसका स्पष्ट उदाहरण है। बेल्ट एंड रोड की सबसे महत्वपूर्ण परियोजना चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा (सीपीईसी) का शुरुआती अनुमानित बजट 46 अरब डॉलर था जो अब बढ़कर 90 अरब डॉलर हो चुका है। शुरुआती 46 अरब डॉलर की अनुमानित लागत के मुकाबले चीनी कंपनियां वहां अब तक 60 अरब डॉलर का निवेश कर चुकी हैं और काम सिर्फ 25 प्रतिशत हुआ है। अनुमान है कि 2024 तक ही पाकिस्तान को इन परियोजनाओं के लिए 100 अरब डॉलर से ज्यादा का भुगतान करना पड़ेगा। आज हाल यह है कि 2015 में सीपीईसी पर मुहर के बाद इन परियोजनाओं की बदौलत पाकिस्तान की प्रति व्यक्ति आय 1484 डॉलर से घटकर 1194 डॉलर हो गई और वह दिवालिया होने के कगार पर है।

और जो कर्ज नहीं चुका पा रहा है, चीन उसकी संपत्ति जब्त करके वसूली करेगा। हिमालय से ऊंची और सागर से गहरी मित्रता होने के बावजूद पाकिस्तान को अपने दो द्वीपों से कब्जा छोड़ना पड़ा है और खदानों के ठेके औने-पौने दामों पर चीनी कंपनियों को दिए जा रहे हैं। ऐसा नहीं कि कर्ज के जाल में फंसाकर बेहद महत्वपूर्ण रणनीतिक संपत्तियों पर कब्जा करने की चीनी नीति 2013 से ही शुरू हुई है। फर्क बस इतना है कि बेल्ट एंड रोड परियोजना शुरू होने के बाद इसे व्यवस्थागत स्वरूप दे दिया गया अन्यथा 2011 में ही चीन ने कर्ज माफ करने के बदले में ताजिकिस्तान की पामीर पहाड़ियों में रणनीतिक रूप से अहम 1158 वर्ग किलोमीटर जमीन पर कब्जा कर लिया।

इसके बाद श्रीलंका का हंबनटोटा बंदरगाह और उसके आस पास की 6000 हेक्टेयर भूमि पर कब्जा और अब ताजा शिकार लाओस है। लाओस के कर्ज भुगतान में विफल होने के बाद चीनी कंपनी ने इसके राष्ट्रीय बिजली ग्रिड को कब्जे में कर लिया है। भय है कि अगला शिकार जिबूती हो सकता है जहां पांच साल पहले उसका कर्ज, जो जीडीपी के 50 प्रतिशत के बराबर था, अब बढ़कर 80 प्रतिशत तक चला गया है। ऐसे में चीन सामरिक दृष्टिकोण से बेहद महत्वपूर्ण उसके बंदरगाह पर कब्जा कर सकता है।

 केन्या में  अदालत ने दो अरब डॉलर की लागत से प्रस्तावित बिजली संयंत्र परियोजना को रद्द कर दिया। यहां तक कि 2019 में पाकिस्तान ने भी दो अरब डॉलर की लागत से प्रस्तावित कोयला संयत्र परियोजना को रद्द कर दिया। सियरा लियोन ने 400 मिलियन डॉलर की लागत से प्रस्तावित हवाई अड्डे की योजना रद्द कर दी है।

देश हुए चीन से सतर्क
यानी स्पष्ट है कि चीन की यह परियोजना न विकास के लिए है और न संपर्क बढ़ाने के लिए। इसका उद्देश्य रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण बंदरगाहों और सड़कों के निर्माण के लिए बेतहाशा और महंगी दरों पर कर्ज देकर अंतत: कर्जदार देश को फंसाना और महत्वपूर्ण संपत्ति पर कब्जा करना है। लक्ष्य अगर विकास होता तो सभी को पता है कि ग्वाडर और हंबनटोटा की आर्थिक व्यवहार्यता हमेशा सवालों के घेरे में थी। लेकिन देर से ही सही, अब दुनिया इसे समझ गई है और ज्यादातर देश सतर्क हो चुके हैं।

मलेशिया में 2018 में बीआरआई एक चुनावी मुद्दा बन गया जब महातिर मोहम्मद ने तत्कालीन प्रधानमंत्री नजीब रज्जाक के चीनी प्रभाव में होने का आरोप लगाते हुए कई परियोजनाओं पर सवाल उठाए। सत्ता में आते ही महातिर ने चीन की सबसे बड़ी दो परियोजनाओं को रद्द कर दिया। इनमें से एक थी 20 अरब डॉलर की रेल रोड परियोजना और दूसरी 2.3 अरब डॉलर की प्राकृतिक गैस पाइप लाइन परियोजना। मलेशिया ही नहीं, अब छोटे-छोटे और आर्थिक रूप से कमजोर देश भी कर्ज के जाल से बचने के लिए चीनी परियोजनाओं से किनारा कर रहे हैं।

बांग्लादेश ने दो अरब डॉलर की लागत से बनने वाली एक राजमार्ग परियोजना सहित एक डीप-सी पोर्ट परियोजना को रद्द कर दिया। म्यांमार भी रखाइन प्रांत में सात अरब डॉलर की लागत से प्रस्तावित डीप सी पोर्ट परियोजना से पीछा छुड़ाने की कोशिश में है। उसने कर्ज में फंसने की आशंका के मद्देनजर शुरुआती दौर में  सिर्फ 1.3 डॉलर की परियोजना के लिए ही सहमति जताई है।  केन्या में  अदालत ने दो अरब डॉलर की लागत से प्रस्तावित बिजली संयंत्र परियोजना को रद्द कर दिया। यहां तक कि 2019 में पाकिस्तान ने भी दो अरब डॉलर की लागत से प्रस्तावित कोयला संयत्र परियोजना को रद्द कर दिया। सियरा लियोन ने 400 मिलियन डॉलर की लागत से प्रस्तावित हवाई अड्डे की योजना रद्द कर दी है। अफ्रीका के ज्यादातर देश कर्जों के पुनर्गठन और इसकी शर्तों पर पुनर्विचार की मांग कर रहे हैं।

जनता भी खड़ी विरोध में
बलूचिस्तान ही नहीं, तमाम अफ्रीकी देशों की जनता भी चीन के विरोध में खड़ी हो रही है। नाइजीरिया, तंजानिया, केन्या और कैमरून जैसे देशों में जनता चीनी कर्ज से बनने वाली परियोजनाओं में जवाबदेही, पारदर्शिता और भ्रष्टाचार के आरोपों की जांच की मांग कर रही है।  अब यह स्पष्ट है कि बरबादी की सड़कों के दिन लद चुके हैं। खुद चीनी सरकार के आंकड़े बताते हैं कि साल दर साल के हिसाब से बीआरआई में निवेश 2016 में अपने चरम यानी 49.3 प्रतिशत पर था जो 2018 में  13.6 प्रतिशत पर आ गया। साफ है कि बीआरआई की सड़कें अब थम गई हैं। कर्ज जाल में फंसाना और बात है लेकिन कर्ज की उगाही भी एक जोखिम का काम है। देरसवेर चीन को परभक्षी नीति और कर्ज को शस्त्र के रूप में इस्तेमाल करने का रास्ता त्याग कर प्रत्यक्ष विदेशी निवेश के ईमानदार रास्ते पर लौटना होगा। फिलहाल बीआरआई के माध्यम से वैश्विक प्रभाव और साफ्ट पावर के विस्तार के प्रयासों का असर उलटा ही हुआ है।

Topics: अमेरिका के दूसरे राष्ट्रपति जॉन एडम्सबेल्ट एंड रोड परियोजना(बीआरआई)वैश्विक संपर्कIndia China border disputeविकास और सद्भावचीन-पाकिस्तानचीनी नीतिआर्थिक गलियाराचीन के राष्ट्रपतिशी जिनपिंगजॉन हापकिंस विश्वविद्यालयचाइना अफ्रीका रिसर्च इनीशिएटिव
ShareTweetSendShareSend
Subscribe Panchjanya YouTube Channel

संबंधित समाचार

जनरल उपेंद्र द्विवेदी, सेनाध्याक्ष

J&K में Terrorism से Tourism का सफर : सेना प्रमुख का पाकिस्तान पर बड़ा बयान, कहा- चीन पर भरोसा…

ओली का रिकार्ड उन्हें चीन की तरफ झुका बताता है। (File Photo)

नेपाल और चीन के बीच एक और बड़े समझौते का खुलासा

इस्लामाबाद में प्रदर्शनकारियों और सुरक्षाबलों के बीच झड़प के बाद इमरान खान को विरोध प्रदर्शन वापस लेना पड़ा

बड़े खून-खराबे की आहट

लोकसभा में बोलते हुए विदेश मंत्री डॉ. एस.जयशंकर

भारत-चीन सीमा विवाद : लोकसभा में LAC की स्थिति पर खुलकर बोले विदेश मंत्री एस.जयशंकर, पाकिस्तानी करतूत की भी खोली पोल

Representational Image

China में बच्चे ही पैदा नहीं हो रहे, राष्ट्रपति जिनपिंग के सामने घटती आबादी बनी बड़ा सिरदर्द

रूस में ब्रिक्स बैठक के दौरान प्रधानमंत्री मोदी और राष्ट्रपति शी के बीच हुई द्विपक्षीय वार्ता

BRICS में हुई Modi-Xi बैठक ने पिघलाई बर्फ! India की कूटनीति सफल, आम सहमति और सहयोग की कसमें खाने लगा Chin a

टिप्पणियाँ

यहां/नीचे/दिए गए स्थान पर पोस्ट की गई टिप्पणियां पाञ्चजन्य की ओर से नहीं हैं। टिप्पणी पोस्ट करने वाला व्यक्ति पूरी तरह से इसकी जिम्मेदारी के स्वामित्व में होगा। केंद्र सरकार के आईटी नियमों के मुताबिक, किसी व्यक्ति, धर्म, समुदाय या राष्ट्र के खिलाफ किया गया अश्लील या आपत्तिजनक बयान एक दंडनीय अपराध है। इस तरह की गतिविधियों में शामिल लोगों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई की जाएगी।

ताज़ा समाचार

भारत के लिए ऑपरेशन सिंदूर की गति बनाए रखना आवश्यक

पाकिस्तान के रक्षा मंत्री ख्वाजा आसिफ

भारत को लगातार उकसा रहा पाकिस्तान, आसिफ ख्वाजा ने फिर दी युद्ध की धमकी, भारत शांतिपूर्वक दे रहा जवाब

‘फर्जी है राजौरी में फिदायीन हमले की खबर’ : भारत ने बेनकाब किया पाकिस्तानी प्रोपगेंडा, जानिए क्या है पूरा सच..?

S jaishankar

उकसावे पर दिया जाएगा ‘कड़ा जबाव’ : विश्व नेताओं से विदेश मंत्री की बातचीत जारी, कहा- आतंकवाद पर समझौता नहीं

पाकिस्तान को भारत का मुंहतोड़ जवाब : हवा में ही मार गिराए लड़ाकू विमान, AWACS को भी किया ढेर

पाकिस्तान ने जम्मू-कश्मीर से लेकर राजस्थान तक दागी मिसाइलें, नागरिक क्षेत्रों पर भी किया हमला, भारत ने किया नाकाम

‘ऑपरेशन सिंदूर’ से तिलमिलाए पाकिस्तानी कलाकार : शब्दों से बहा रहे आतंकियों के लिए आंसू, हानिया-माहिरा-फवाद हुए बेनकाब

राफेल पर मजाक उड़ाना पड़ा भारी : सेना का मजाक उड़ाने पर कांग्रेस नेता अजय राय FIR

घुसपैठ और कन्वर्जन के विरोध में लोगों के साथ सड़क पर उतरे चंपई सोरेन

घर वापसी का जोर, चर्च कमजोर

‘आतंकी जनाजों में लहराते झंडे सब कुछ कह जाते हैं’ : पाकिस्तान फिर बेनकाब, भारत ने सबूत सहित बताया आतंकी गठजोड़ का सच

  • Privacy
  • Terms
  • Cookie Policy
  • Refund and Cancellation
  • Delivery and Shipping

© Bharat Prakashan (Delhi) Limited.
Tech-enabled by Ananthapuri Technologies

  • Search Panchjanya
  • होम
  • विश्व
  • भारत
  • राज्य
  • सम्पादकीय
  • संघ
  • वेब स्टोरी
  • जीवनशैली
  • विश्लेषण
  • लव जिहाद
  • खेल
  • मनोरंजन
  • यात्रा
  • स्वास्थ्य
  • संस्कृति
  • पर्यावरण
  • बिजनेस
  • साक्षात्कार
  • शिक्षा
  • रक्षा
  • ऑटो
  • पुस्तकें
  • सोशल मीडिया
  • विज्ञान और तकनीक
  • मत अभिमत
  • श्रद्धांजलि
  • संविधान
  • आजादी का अमृत महोत्सव
  • लोकसभा चुनाव
  • वोकल फॉर लोकल
  • बोली में बुलेटिन
  • ओलंपिक गेम्स 2024
  • पॉडकास्ट
  • पत्रिका
  • हमारे लेखक
  • Read Ecopy
  • About Us
  • Contact Us
  • Careers @ BPDL
  • प्रसार विभाग – Circulation
  • Advertise
  • Privacy Policy

© Bharat Prakashan (Delhi) Limited.
Tech-enabled by Ananthapuri Technologies