जंगलों में कैसे बनीं सैकड़ों दरगाह?

उत्तराखंड के संरक्षित जंगलों में एकाएक सैकड़ों की संख्या में दरगाहें बन गई हैं। वहीं खनन के लिए चिह्नित नदियों के किनारों का भी यही हाल है।

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उत्तराखंड के संरक्षित जंगलों में एकाएक सैकड़ों की संख्या में दरगाहें बन गई हैं। वहीं खनन के लिए चिह्नित नदियों के किनारों का भी यही हाल है। ये कब और कैसे बनीं, इस बारे में सवाल पूछे जा रहे हैं

उत्तराखंड के वनों में आम आदमी की घुसपैठ नहीं हो सकती। वन कर्मचारी किसी को भी जंगल में नहीं जाने देते फिर राज्य के संरक्षित वन्य क्षेत्र में सैकड़ों की संख्या में मजार कैसे बन गईं?

कुमायूं के बाजपुर से लेकर कालाढुंगी तक 20 किलोमीटर जंगल मार्ग में तीन-तीन दरगाह शरीफ के बोर्ड देखे जा सकते हैं। ये ऐसे कौन से पीर थे जो घने जंगलों में जाकर रहते थे और बाद में इनकी दरगाह बना दी गई? जंगल रोड पर हरे रंग के बोर्ड और वहां एक गोलक को पड़ा हुआ देखा जा सकता है। कुछ साल पहले तक यहां न तो कोई मजार थी, न ही इन जंगलों में कोई प्रवेश कर सकता था।

मुख्य वन्यजीव प्रतिपालक ने मंगाई रिपोर्ट

उत्तराखंड के जंगलों में, खासतौर पर रिजर्व फॉरेस्ट में दरगाह के बन जाने के सवाल पर राज्य के मुख्य वन्यजीव प्रतिपालक डॉ. पराग मधुकर धकाते का कहना है कि हमारे संज्ञान में यह मामला आया है। हमने सभी डिवीजन से रिपोर्ट मंगवाई है कि उनके क्षेत्र में कौन-कौन से धार्मिक स्थल हैं? ये कब-कब स्थापित हुए हैं? इस बारे में जानकारी एकत्र कराई जा रही है। डॉ. धकाते ने बताया कि नए धर्मस्थल बनाए जाने के लिए जिला प्रशासन से अनुमति लेना जरूरी है, यदि ये गैरकानूनी हैं तो इन्हें हटाया जाएगा।

ये दरगाह न सिर्फ संरक्षित वन्य क्षेत्र में हैं बल्कि टाइगर रिजर्व के कोर जोन तक में देखी जा रही हैं जिनमें जिम कॉर्बेट टाइगर रिजर्व भी शामिल है। तीर्थनगरी हरिद्वार के किनारे राजाजी टाइगर रिजर्व में भी दर्जनों की संख्या में दरगाहें बनी हैं और यहां मोटे-मोटे नग, हरे कपड़े और पगड़ी पहने मुसलमान मोरपंखी झुलाते हुए काबिज हो गए हैं। जानकारी मिली है कि ये दरगाह संदिग्ध किस्म के लोगों की शरणस्थली भी बन गई हैं। जानकारी के मुताबिक ये दरगाहें, नशाखोरी का अड्डा बन गए हैं।

नदियों के किनारे कब्जा
हल्द्वानी में गोला, टनकपुर में शारदा तो रामनगर में कोसी नदी किनारे वन विभाग की जमीन पर हजारों की संख्या में मुस्लिम श्रमिकों ने अपनी झोपड़ियां-झाले बना लिये हैं और इनके बीच में तीन से चार दरगाह और मजार स्थापित कर दिए गए हैं।

ऐसा हर उस नदी किनारे देखने मे आ रहा है, जहां खनन होता है। दरगाह स्थापित करने वाले योजनाबद्ध तरीके से आकर सरकारी वन भूमि पर काबिज हो रहे हैं। उत्तराखंड देवभूमि है। पूरे विश्व में हिमालय को अध्यात्म की राजधानी माना जाता रहा है। आजादी के वक्त यहां नाम मात्र की मुस्लिम आबादी थी और दरगाह तो दूर-दूर तक नहीं थीं।

 

जानकार बताते हैं कि उत्तराखंड राज्य बनने तक ये दरगाहें नहीं थीं। यह सब 2010 और 2020 के कालखंड में हुआ है। खास बात यह कि ये दरगाह हर साल जंगल के भीतर उर्स मनाने लगी हैं और बाकायदा लाउडस्पीकर के शोर के साथ कव्वालियां गाई जा रही हैं और वनकर्मी मूकदर्शक बने रहते हैं। वैसे कोई सामान्य व्यक्ति जंगल मे वन कर्मियों के डर से नहीं जा सकता।

हल्द्वानी शहर के बीचोबीच बनी दरगाह
हल्द्वानी शहर के बीचोबीच वन विभाग का चीड़ डिपो है। यहां देखते-देखते ही एक मजार बना और अब यहां पक्की इमारत बन गई है और अब यहां उर्स होने लगा है। ऐसे ही कॉर्बेट पार्क एरिया में भी हुआ है।

और हरिद्वार के मोतीचूर, श्यामपुर के फॉरेस्ट डिवीजन, कॉर्बेट कालागढ़, बिजरानी, नंधौर, सुरई फॉरेस्ट डिवीजन आदि में भी ऐसी सैकड़ों दरगाह-मजार बन गए हैं? जानकारी मिली है कि टिहरी झील के किनारे भी पिछले साल इसी तरह की दरगाह शरीफ मजारें बनाई गई हैं।

उत्तराखंड में रोहिंग्या और बांगलादेशी लोगों की घुसपैठ की खबरें आ रही हैं और साथ ही साथ उत्तराखंड में मुस्लिम आबादी का बढ़ना भी यहां के जनसंख्या असंतुलन की समस्या को बढ़ावा दे रहा है जिस पर उत्तराखंड सरकार ने इन दिनों सत्यापन अभियान चलाया हुआ है।

उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने बयान दिया है कि वे राज्य में समान नागरिक संहिता कानून बनाने जा रहे हैं। वे ये भी कह चुके हैं कि वे गैरकानूनी रूप से रह रहे लोगों की पहचान करवा रहे हैं।

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