मैं कई बार सोचता हूं कि 1985 में लॉन्च होने के बाद से विंडोज आॅपरेटिंग सिस्टम की दौड़ में लगातार आगे कैसे बना हुआ है? कुछ तो होगा विंडोज में जिसकी वजह से एक भी साल उसे पछाड़ा नहीं जा सका। प्रशंसकों के साथ ही माइक्रोसॉफ़्ट के आलोचकों की भी कमी नहीं है और इंटरनेट पर आपको एपल और लिनक्स जैसे प्रतिद्वंद्वियों की तुलना में विंडोज, आफिस तथा खुद माइक्रोसॉफ़्ट के विरुद्ध अनेक टिप्पणियां पढ़ने को मिलेंगी। लेकिन यह भी सच है कि ये टिप्पणियां करने वाले ज़्यादातर लोग खुद भी विंडोज का ही इस्तेमाल कर रहे होते हैं। आखिर क्यों?
इस बात का जवाब देने से पहले मैं खुद ही एक कंप्यूटर उपभोक्ता के रूप में सोचता हूं कि आखिर मैं क्यों विंडोज को वरीयता देता हूं। मैं आर्थिक दृष्टि से इस स्थिति में हूं कि एपल के महंगे कंप्यूटर खरीद सकता हूं। मैं तकनीकी दृष्टि से इतना जागरूक तथा सक्षम हूं कि लिनक्स आधारित कंप्यूटरों का भी आसानी से इस्तेमाल कर सकूं। तकनीकी क्षेत्र में होने के नाते मेरे पास एपल मैकबुक (लैपटॉप) भी है लेकिन उसका प्रयोग यदा-कदा ही होता है। जिसे हैवी लिफ्टिंग (भारी कामकाज) कहा जाता है, वह सारा काम विंडोज पर ही होता है। यूं मेरे पास आइपैड और आइफोन भी हैं, जिनका उपभोक्ता होने की वजह से मैं तुलनात्मक दृष्टि से अपनी बात कह सकता हूं।
एपल ने 2006 में पावरपीसी माइक्रोप्रॉसेसर के बजाय इन्टेल के माइक्रोप्रॉसेसर इस्तेमाल करने शुरू किए थे ताकि उसके उत्पादों की कीमत घटाई जा सके और इन्टेल के कम वोल्टेज में चलने वाले माइक्रोप्रॉसेसरों का इस्तेमाल करते हुए वह बेहतर इनोवेशन कर सके, इसके बावजूद मैक कंप्यूटर विंडोज को चुनौती नहीं दे सके। कोविड संकट के दौरान गूगल के सस्ते क्रोम आॅपरेटिंग सिस्टम को छात्रों और कामगारों ने अच्छी संख्या में खरीदा, लेकिन कंप्यूटरों पर विंडोज के मुकाबले उसका दर्जा वही है जो स्मार्टफोन के मामले में एंड्रोइड के मुकाबले में विंडोज आॅपरेटिंग सिस्टम का रहा था। गार्टनर की ताजा रिपोर्ट के मुताबिक आज भी दुनिया के करीब 85 प्रतिशत पर्सनल कंप्यूटरों पर विंडोज इस्तेमाल होता है।
हालांकि विंडोज के बारे में माइक्रोसॉफ़्ट के कुछ प्रयोग विफल रहे। मिसाल के तौर पर जब विंडोज 8 में उसने इस आॅपरेटिंग सिस्टम को स्मार्टफोन और टैबलेट की डिजाइन की तर्ज पर बदलने की कोशिश की और दो बड़े बदलाव किए। स्टार्ट बटन को हटा दिया गया और मेट्रो इंटरफेस लाया गया। एप्स के गोल या चौकोर आइकन, जो स्मार्टफोन की स्क्रीन पर दिखते हैं, जैसे ही चौकोर टाइल विंडोज 8 के डेस्कटॉप पर भी दिखते थे। मगर यह प्रयोग दर्शकों को पसंद नहीं आया। कुछ साल पहले विंडोज विस्टा भी ग्राहकों को पसंद नहीं आया था जिसके साथ हार्डवेयर सपोर्ट और ड्राइवरों से जुड़ी दिक्कतें थीं। स्मार्टफोन पर भी विंडोज आपरेटिंग सिस्टम ज्यादा सफल नहीं हुआ हालांकि बहुत सारे उपभोक्ताओं को वह बहुत पसंद आया था। लेकिन खुद माइक्रोसॉफ़्ट ने ही अपनी स्मार्टफोन परियोजना को बंद कर दिया।
वैसे तो ये प्रयोग जमाने की रफ्तार के साथ तालमेल बिठाने के लिए किए गए थे लेकिन अनुभव यह रहा कि उपभोक्ताओं को विंडोज की कुछ बुनियादी विशेषताओं और सरलता के साथ समझौता मंजूर नहीं था। माइक्रोसॉफ़्ट में इस बीच नीतियों तथा कार्य संस्कृति के स्तर पर बड़ा बदलाव हुआ है। वह उपभोक्ताओं के फीडबैक को गंभीरता से लेता है, खुली संस्कृति पर चलता है और प्रतिद्वंद्वियों के साथ भी मित्रतापूर्ण रुख रखता है। जैसे आज माइक्रोसॉफ़्ट के क्लाउड पर प्रतिद्वंद्वी लिनक्स आपरेटिंग सिस्टम से जुड़ी सेवाएं भी उपलब्ध हैं। उसने एपल मैक आपरेटिंग सिस्टम पर भी आफिस सुइट उपलब्ध कराया है। गूगल के साथ भी काम किया है। माइक्रोसॉफ़्ट का नया एज ब्राउजर मूल रूप से क्रोमियम फ्रेमवर्क पर आधारित है, जिसे आधार बनाकर गूगल ने भी अपना क्रोम ब्राउजर निर्मित किया है।
बहुत कम लोग जानते होंगे कि आज नि:शुल्क और मुक्त स्रोत सॉफ़्टवेयरों की दुनिया में माइक्रोसॉफ़्ट सबसे बड़ा योगदानकर्ता है।
विंडोज लोकप्रियता का बड़ा कारण उपभोक्ताओं और उपभोक्ता अनुभव (यूजर एक्सपीरियंस) को सबसे ऊपर रखना है। विंडोज आठ के बाद माइक्रोसॉफ़्ट विंडोज 10 में स्टार्ट बटन को फिर से ले आया। उसने विंडोज की मेट्रो टाइलों को पूरी तरह से हटाने के बजाय उनमें से चुनिंदा टाइलों को स्टार्ट मेनू में समाहित कर दिया। डेस्कटॉप फिर से विंडोज 7 जैसा कर दिया गया। यह इस बात का उदाहरण था कि बाजार पर दबदबा रखने वाली कंपनी लोगों की राय का कितना सम्मान करती है और अपने एकाधिकार का लोगों की पसंद-नापसंद को बदलने के लिए दुरुपयोग नहीं करती।
(लेखक माइक्रोसॉफ़्ट में निदेशक- भारतीय भाषाएं और सुगम्यता के पद पर कार्यरत हैं।)
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