अफसोस कि अधिकांश भारतीय सुक्कूर (सिंध) के हेमू कलानी को नहीं जानते जिन्हें मात्र 19 बरस की आयु में अंग्रेजों ने फांसी पर लटका दिया था। सन् 1942 में जब महात्मा गांधी ने भारत छोड़ो आन्दोलन चलाया तो हेमू इसमें कूद पड़े। उन्हें यह गुप्त जानकारी मिली कि अंग्रेजी सेना हथियारों से भरी रेलगाड़ी रोहड़ी शहर से होकर गुजरेगी। हेमू कालाणी ने अपने साथियों के साथ रेल पटरी को अस्त-व्यस्त करने की योजना बनाई। वहां तैनात पुलिस कर्मियों की नजर उन पर पड़ी और उन्होंने हेमू को गिरफ्तार कर लिया और 21 जनवरी, 1943 को उन्हें फांसी दे दी गई। जाहिर है, सिंध में उनका कोई स्मारक नहीं।
सुक्कूर में उनके नाम के पार्क का नाम बदल कर कासिम पार्क कर दिया गया था। जिसके जवाब में कुछ भारतीय शहरों ने इसकी भरपाई करते हुए अपने यहां मार्गों, पार्कों और संस्थानों के नाम उनकी याद में रखे, परंतु यह मुख्यत: सिंधी समुदाय की पहल थी। वह सिंध के लिए नहीं, भारत की आजादी के लिए लड़े थे, इसलिए पाकिस्तान नहीं बल्कि भारत को उनके योगदान को याद रखना होगा। पाकिस्तान में ही, जिस चौराहे पर भगत सिंह को फांसी दी गई थी, उसका नाम भगत सिंह चौक रखने को वहां के कट्टरपंथियों और पुरातनपंथियों का पुरजोर विरोध झेलना पड़ा है। पाकिस्तान की प्रकृति को देखते हुए साफ है कि वह इसे स्वीकार नहीं करेगा। इसके विपरीत, भारत को ही उन्हें पहचान देनी पड़ेगी, जिसके लिए वह लड़े थे।
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