देश में समान नागरिक संहिता की मांग जोर-शोर से हो रही है। महिलाओं, खासकर मुस्लिम महिलाओं को न्याय मिले इसके लिए भी इसकी वकालत की जा रही है। असम के मुख्यमंत्री हिमंत विश्व शर्मा ने भी इसका समर्थन किया है।
मुख्यमंत्री हिमंत विश्व शर्मा ने दिल्ली में पत्रकारों से बात करते हुए कहा कि हर कोई समान नागरिक संहिता (UCC) चाहता है। कोई भी मुस्लिम महिला नहीं चाहती कि उसका पति तीन अन्य पत्नियों को घर लाए। UCC मेरा मुद्दा नहीं है, यह सभी मुस्लिम महिलाओं का मुद्दा है। अगर उन्हें तीन तलाक को खत्म करने के बाद इंसाफ देना है तो UCC लाना होगा। केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह भी कह चुके हैं हमारी सरकार राम जन्मभूमि, तीन तलाक, अनुच्छेद 370 और नागरिकता संशोधन कानून जैसे मुद्दों को हल कर चुकी है, अब समान नागरिक संहिता की बारी है। उत्तराखंड में इसका प्रयोग किया जाएगा। सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता अश्विनी उपाध्याय कहते हैं कि समान नागरिक संहिता का सबसे ज्यादा लाभ मुस्लिम और पारसी बेटियों को मिलेगा। हिंदू मैरिज एक्ट में बेटा-बेटी को समान अधिकार है, इसलिए समान नागरिक संहिता से हिंदू बेटियों को कोई फायदा नहीं मिलेगा।
वहीं मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के बाद अब AIMIM प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी ने समान नागरिक संहिता का विरोध किया है। उनका कहना है कि लॉ कमीशन ने खुद यह बोला है कि भारत में ‘यूनिफॉर्म सिविल कोड’ की जरूरत नहीं है। अर्थव्यवस्था बैठ गई है, बेरोज़गारी, महंगाई बढ़ रही है और आपको ‘यूनिफॉर्म सिविल कोड’ की फिक्र है। मुस्लिम संगठनों ने इससे पहले तीन तलाक पर आए कानून का भी काफी विरोध किया था। महिलाओं के खिलाफ इस बोर्ड ने अपमानजनक टिप्पणी भी की थी। ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के महासचिव मौलाना खालिद सैफुल्लाह रहमानी का कहना है कि समान नागरिक संहिता बेवक्त की रागिनी है। यह अल्पसंख्यक विरोधी और संविधान विरोधी कदम है। यह मुसलमानों को कबूल नहीं है।
क्या कहते हैं उत्तराखंड के मुख्यमंत्री धामी
उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी का कहना है कि राज्य में समान नागरिक संहिता लागू करने को लेकर चुनाव से पूर्व किए अपने वायदे को पूरा करने की दिशा में हमने महत्वपूर्ण् कदम उठाया। सरकार की पहली कैबिनेट बैठक में निर्णय लिया गया कि राज्य में समान नागरिक संहिता के क्रियान्वयन के लिये विशेषज्ञों की समिति बनाई जाएगी। न्यायविदों, सेवानिवृत्त जज, समाज के प्रबुद्जनों और अन्य स्टेकहोल्डर्स की एक कमेटी गठित की जाएगी, जोकि यूनिफार्म सिविल कोड का ड्राफ्ट तैयार करेगी।
संविधान सभा में हो चुकी है चर्चा
वरिष्ठ वकील अश्विनी उपाध्याय का कहना है कि समान नागरिक संहिता पर 23 नवंबर 1948 को संविधान सभा में विस्तृत चर्चा हुई थी। दोनों पक्षों ने दलीलें दीं। जो लोग पर्सनल लॉ चाहते थे, उन्होंने सबसे पहले अपनी बात रखी थी। जिस बात पर 75 साल पहले चर्चा हो गई थी तो क्या उस पर दोबारा चर्चा होनी चाहिए? यदि समान नागरिक संहिता संविधान में नहीं होती तो उस पर चर्चा करने की जरूरत थी। विस्तृत चर्चा के बाद यह आया है तो इसे लागू करें। इसे लागू करने में वैसे भी बहुत देर हो चुकी है।
अश्विनी उपाध्याय कहते हैं कि यूनिफार्म सिविल कोड से सबसे ज्यादा फायदा मुस्लिमों को होगा। उसके बाद ईसाइयों और पारसियों को होगा। हिंदुओं में बेटे और बेटी को लगभग समान अधिकार मिल चुके हैं। हिंदुओं को इससे कोई फायदा नहीं होगा। लोगों को भड़काया जा रहा है कि समान नागरिक संहिता लागू होने की वजह से काजी निकाह नहीं पढ़ा पाएंगे। इससे इसका कोई लेना-देना नहीं है। हिंदू सात फेरे लेते रहेंगे। मुस्लिम में काजी निकाहनामा पढ़ाते रहेंगे। सिख, क्रिश्चियन अपनी परंपरा के अनुसार विवाह करते रहेंगे। समान नागरिक संहिता वास्तव में समानता का मामला है। लैंगिक समानता का मामला है। यह हिंदू-मुसलमान का मामला नहीं है, यह बेटियों के अधिकार का मामला है। उन्होंने इसका वीडियो ट्विटर पर शेयर किया है।
क्या कहती है समान नागरिक संहिता
- लड़के और लड़की की शादी की उम्र बराबर हो जाएगी। इससे मुस्लिम बेटियों को फायदा होगा। मुस्लिम बेटियों में शादी की उम्र अभी नौ साल है। वे अभी पढ़ नहीं पातीं, वो पढ़ पाएंगी। मानसिक, आर्थिक रूप से मजबूत होंगी।
- तलाक के नियम सभी के लिए बराबर होंगे। मुस्लिमों में तीन तलाक खत्म हुआ है, बाकी तलाक चल रहे हैं। इसलिए मुस्लिम बेटियों को इसका लाभ मिलेगा।
- एक पति और एक पत्नी का नियम सभी पर लागू होगा
- गोद लेने का नियम और प्रक्रिया एक जैसी होगी।
- विरासत का अधिकार, वसीयत का अधिकार। यह हिंदुओं में बराबर का हो चुका है। मुस्लिम में इस तरह का नहीं है। मुस्लिम में शौहर को अधिक अधिकार है।
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