इस गर्मीं के मौसम में पहाड़ों के जंगल की आग ने 2500 हैक्टेयर से ज्यादा वन संपदा को नष्ट कर दिया है। उत्तराखंड में पिछले दो दिनों में 337 घटनाएं जंगल मे आग लगने की हुई है। जंगल की आग बुझाने के कोई वैज्ञानिक तरीके उपलब्ध नही होने से अब बारिश होने तक इस तपिश के ठंडा होने का इंतज़ार करना पड़ेगा।
उत्तराखंड के जंगलों में हर बार गर्मियों में आग लगती रही है और इसके पीछे मुख्य वजह जलती बीड़ी सिगरेट का जंगल मे फेंक देना, लीसा तस्करों द्वारा चीड़ के पेड़ों में आग लगाना और चीड़ के पत्तों का पेड़ों से गिरने के बाद उसमे आग लग जाना रहा है।
15 फरवरी से शुरू हुए वन विभाग के फायर सीजन में अभी तक 1507 वनाग्नि की घटनाएं हो चुकी है जिसकी वजह से 2500.62 हैक्टेयर जंगल की वन संपदा स्वाह हो चुकी है। जिसकी कीमत का अंदाज़ा लगाना मुश्किल होता है। अभी तक करीब 90 लाख रु की सरकारी गैर सरकारी संपत्ति भी नष्ट हुई है और एक व्यक्ति की मौत भी इस आग में झुलस जाने से हुई है।
खास बात ये है संरक्षित वन क्षेत्र में 72 घटनाएं वनाग्नि की हुई है। जहां इंसान का पहुंचना मुमकिन नही होता। वनाग्नि को फैलने से रोकने के लिए वन कर्मी खुद पेड़ के पत्तो के झालने का सहारा लेकर आग बुझाते है, हर साल लगने वाली आग को बुझाने के लिए उत्तराखंड वन विभाग के पास कोई भी वैज्ञानिक तकनीक उपलब्ध नही है जबकि बाहर मुल्कों में बड़े बड़े यंत्र, फायर ब्रिगेड हेलीकॉप्टर आदि के जरिये जंगल की आग बुझाई जाती है।
यूपी में जब नारायण दत्त तिवारी मुख्यमंत्री थे तब पहाड़ों में जंगल की आग बुझाने के लिए विश्व बैंक ने एक परियोजना मंजूर की थी। उस वक्त बड़े बड़े बुल्डोजर फायर लाइन बनाने के लिए खरीदे गए किंतु वो पहाड़ पर चढ़ नही पाए और यहीं कबाड़ बन गए। परियोजना में एक हेलीकॉप्टर भी खरीदा गया जिसे बाद में वन पर्यावरण मंत्री ले उड़े।
हर साल यदि जंगल में आग से होने वाले नुकसान का अनुमान लगाया जाए तो ये अभी तक अरबों में पहुंच गया है। पिछले साल वनाग्नि बुझाने के लिए सेना के हेलीकॉप्टर मंगवाए गए जोकि टिहरी और भीमताल झील से अपनी लटकी टँकी में पानी भर कर उठाते थे और आग पर बरसाते थे, लेकिन इसका उल्टा असर ये हुआ कि हेलीकॉप्टर की तेज हवा से आग और फैल गयी और फिर सेना के हेलीकॉप्टरो को वापिस जाना पड़ा।
इस साल भी जंगल की आग की तपिश से पहाड़ों का तापमान भी बढ़ गया है हरतरफ धुआं ही धुआं देखा जारहा है। शासन ने सभी जिलाधिकारियों को कहा है कि चीड़ के पत्तो (पिरूल) की खरीद में महिलाओं को लगाया जाए ताकि उन्हें रोजगार मिलेगा और आग का खतरा भी कम होगा।
उधर वन विभाग का कहना है कि बिना बारीश के वनाग्नि को रोक पाना मुश्किल है। राज्य के वन मंत्री सुबोध उनियाल कहते है कि जहां इंसान पहुंच सकता है वहां आग बुझाई जा सकती है लेकिन बहुत से रिजर्व फ़ॉरेस्ट ऐसे है जहां यदि आग लग जाये तो आग के बुझाने में दिक्कतें आती है। हम उम्मीद कर रहे है कि 15 मई से लोकल रेन्स शुरू हो जाएंगी तो वनाग्नि की घटनाएं कम हो जाएंगी।उन्होंने कहा कि सभी वन अधिकारीयों और वन कर्मियों की छुट्टियां कैंसिल कर दी गयी है। वन कर्मी, जनता के साथ सहयोग लेकर वनाग्नि बुझाने के लिए जुटे हुए है। रोजाना उनकी रिपोर्टिंग मुझ स्वयं तक हो रही है।
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