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चीन : तानाशाही की विफलता

चीन अब तक शून्य कोविड नीति की सफलता का ढिंढोरा पीटता रहा, लेकिन कई शहरों में पूर्णबंदी के कारण उसकी आर्थिक स्थिति चरमरा रही है। लोगों के पास खाने तक का सामान नहीं हैं। उन्हें बाहर भी निकलने नहीं दिया जा रहा। मुश्किल यह है कि चीन अपनी नीतिगत विफलता को स्वीकार नहीं कर सकता

by आदर्श सिंह
Apr 29, 2022, 11:21 am IST
in विश्व
चीन के शहर शंघाई में लॉकडाउन के विरुद्ध लोगों में आक्रोश बढ़ रहा है

चीन के शहर शंघाई में लॉकडाउन के विरुद्ध लोगों में आक्रोश बढ़ रहा है

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कोरोना महामारी को ढाई साल होने को है। अब पूरी दुनिया ने यह मान लिया है कि उसे वुहान वायरस और इसके रोजाना नए-नए स्वरूपों के साथ ही जीना है। लेकिन अगर कोई इस बात को नहीं मान रहा, तो वह है चीन। वह चाहता है कि यह वायरस परदेश में तो रहे, लेकिन उसके यहां से पूरी तरह खत्म हो जाए। चीन ने इसके लिए जीरो कोविड यानी ‘एक भी संक्रमित मंजूर नहीं’ की रणनीति अपना रखी है। वह 2020 में सफलतापूर्वक इस रणनीति पर अमल कर चुका है, जब उसने वुहान और उसके आस-पास के इलाकों में पूर्णबंदी लागू की थी। वुहान की पूर्णबंदी 23 जनवरी से 8 अप्रैल 2020 तक चली थी।

निश्चित रूप से इन कड़े कदमों से चीन ने काफी हद तक वायरस पर काबू पाया। चीन का दावा है कि उसके यहां कोरोना से सिर्फ 5,000 लोगों की मृत्यु हुई, जबकि इसकी तुलना में ब्रिटेन में 1,65,000 लोगों की मृत्यु हुई। चीनी वुल्फ वॉरियर दिन-रात बताते थे कि यह एक नमूना है कि किस तरह चीन की सर्वसत्तावादी तानाशाही कथित अकर्मण्य, अराजक लोकतंत्रों से बेहतर साबित हुई है। निस्संदेह जब पूरी दुनिया वुहान वायरस की मार से कराह रही थी, तो सिर्फ चीनी अर्थव्यवस्था ही ऐसी थी जो कुलांचे भर रही थी।

चीन ने इस मौके का फायदा उठाकर अपने भू-रणनीतिक उद्देश्यों को पूरा करने की भी कोशिश की। जब भारत कोरोना से जंग में उलझा हुआ था, तो चीनी सेनाएं चुपचाप लद्दाख के कई इलाकों में घुस आर्इं। चीन ने समझा कि उसका समय आ गया है। सितंबर 2020 में राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने एक भव्य समारोह में कोराना वायरस के खिलाफ जनयुद्ध की जीत के लिए वैज्ञानिकों और अधिकारियों को सम्मानित किया। शिक्षा मंत्रालय ने स्कूली पाठ्यक्रम में तत्काल एक अध्याय जोड़ने का फरमान जारी कर दिया। इसमें यह बताने को कहा गया कि कोरोना के खिलाफ जिस तरह से जंग लड़ी और जीती गई है, वह पश्चिमी देशों की तुलना में चीनी राजनीतिक तंत्र की उत्कृष्टता का उदाहरण है।

लौटा पूर्णबंदी का दौर
पर यह खुमार ज्यादा दिन नहीं टिकने वाला था, क्योंकि तब तक वुहान वायरस रोजाना नए रंग-रूप, नए स्वरूप में प्रकट होने लगा। ऐसे में शून्य कोविड नीति यानी पूरी तरह संक्रमण मुक्त होना संभव ही नहीं था। इस वर्ष चीन में संक्रमण बढ़ने की शुरुआत के साथ ही चीनी नेतृत्व ने अपने आजमाए फार्मूले यानी तत्काल पूर्णबंदी पर अमल शुरू कर दिया। शंघाई, चुंगचुन, शेनझेन, जिलिन, झुझोऊ, तांगशान, जियान जैसे चीन के तमाम बड़े शहरों को पूर्णबंदी का सामना करना पड़ा। लोगों को जरूरत की चीजें खरीदने से भी रोक दिया गया और राशन पहुंचाने की जिम्मेदारी भी सरकार ने ले ली। लेकिन हुआ यह कि लोग खाने-पीने और तमाम जरूरी चीजों के लिए तरसने लगे।

शून्य कोविड नीति अब चीन के लिए वायरस के साथ जीना सीखने वाली बात तक सीमित नहीं है, बल्कि शी जिनपिंग और चीनी कम्युनिस्ट पार्टी ने इसे दो राजनीतिक व्यवस्थाओं, सभ्यताओं के बीच प्रतियोगिता का मामला बना दिया है। चीन ने अगर इस नीति को बदला तो यह अपनी विफलता स्वीकार करने जैसी बात होगी

पूर्णबंदी की मार झेल रहे शहरों में सामान के बदले सामान वाली प्राचीन व्यवस्था एक बार फिर देखने को मिली और बिस्कुट के पैकेट के बदले सिगरेट के पैकेट का लेन-देन शुरू हो गया। किसी ने अपने खाली फ्रिज को बालकनी में टांग दिया ताकि लोग यह देख सकें कि उसके पास खाने को कुछ नहीं है। शंघाई जैसे शहरों में सुपर स्टोर लूटे जाने की तस्वीरें वायरल हो रही हैं। पाबंदियां ऐसी कि नवजात बच्चों को माताओं से अलग कर दिया जा रहा है। शंघाई के एक क्लीनिक में ऐसी ही एक फोटो के वायरल हो जाने के बाद जनाक्रोश भड़क गया और लोगों ने इसे अमानवीय बताया। आज की तारीख में चीन की एक चौथाई आबादी किसी न किसी पाबंदी के बीच रह रही है, जो उसकी कुल आबादी का चौथाई हिस्सा है। चीन की वित्तीय राजधानी शंघाई में मार्च से ही पूर्णबंदी है।

खस्ता होती अर्थव्यवस्था
इन सबसे चीनी अर्थव्यवस्था की हालत खस्ता होती दिख रही है। अनुमान है कि शंघाई में पूर्णबंदी के दौरान हर महीने चीन की जीडीपी में 0.5 प्रतिशत की गिरावट आएगी। हांगकांग की चीन यूनिवर्सिटी के एक शोध के अनुसार, चीन को पूर्णबंदियों से हर महीने 35 बिलियन डॉलर का नुकसान हो रहा है। कुछ का मानना है कि यह नुकसान 50 बिलियन डॉलर का है। चीन की जीडीपी में अकेले शंघाई का हिस्सा 3.5 प्रतिशत है। अनुमान है कि शंघाई में पूर्णबंदी से चीन की जीडीपी को डेढ़ से दो प्रतिशत का नुकसान होगा। विशेष रूप से तकनीक और प्रौद्योगिकी क्षेत्र को भारी नुकसान होने की आशंका है। विश्लेषकों के अनुसार, अगर शंघाई में मई तक उत्पादन शुरू नहीं हुआ तो वाहन उद्योग की आपूर्ति शृंखला पूरी तरह बंद हो जाएगी। वैसे भी मार्च में चीन के निर्माण क्षेत्र की उत्पादकता दो साल के निम्नतम स्तर पर पहुंच गई।

प्रधानमंत्री ली क्विंग स्थिति से अनजान नहीं हैं। उन्होंने 11 अप्रैल को चेतावनी दी कि वृद्धि दर पर भारी दबाव है और स्थानीय अधिकारी स्थिति को पटरी पर लाने के लिए आपात तौर पर करों में कमी और संरचनागत प्रोत्साहन उपायों की घोषणा करें। हालांकि विश्लेषकों का अनुमान है कि इस वर्ष चीन की वास्तविक वृद्धि दर शून्य या यहां तक कि नकारात्मक भी हो सकती है। प्रोत्साहन पैकेज भी तब तक प्रभावी नहीं होंगे, जब तक कि आवाजाही पर पाबंदियां बरकरार रहेंगी। बीजिंग इसके लिए कुछ ऐसे कदम उठा सकता है जो दीर्घ अवधि में नुकसानदेह होंगे। लेकिन इसका असर अक्तूबर-नवंबर से पहले नहीं दिखेगा।

 

अब विफलता चीन के सिर है। इसे स्वीकार करने का मतलब चीनी राजनीतिक तंत्र के लोकतांत्रिक देशों की तुलना में दोयम होने का कबूलनामा होगा। पेच यही है। जिनपिंग जिद पर अड़े हैं। यूरेशिया समूह ने 2022 के लिए विश्व को लेकर खतरों की सूची बनाई हैं, उसमें शीर्ष पर महामारी से निपटने में चीनी रणनीति की विफलता को रखा गया है।

…तो फूटेगा गुब्बारा
समस्या यह है कि अक्तूबर-नवंबर से पहले शून्य कोविड नीति में किसी बदलाव की संभावना नहीं दिखती। इन दो महीनों के बीच शी जिनपिंग के तीसरे कार्यकाल पर मुहर लगनी है। वे अब तक जिस शून्य कोविड रणनीति की सफलता का ढिंढोरा पीटते रहे हैं, उसकी विफलता को स्वीकार करना उनके लिए नुकसानदेह होगा। हाल ही में उन्होंने पुरजोर तरीके से शून्य कोविड नीति को जारी रखने की बात दोहराई है।

सीधी-सी बात है कि शून्य कोविड नीति अब चीन के लिए वायरस के साथ जीना सीखने वाली बात तक सीमित नहीं है, बल्कि शी जिनपिंग और चीनी कम्युनिस्ट पार्टी ने इसे दो राजनीतिक व्यवस्थाओं, सभ्यताओं के बीच प्रतियोगिता का मामला बना दिया है। चीन ने अगर इस नीति को बदला तो यह अपनी विफलता स्वीकार करने जैसी बात होगी। महामारी की शुरुआत से ही चीन बताता रहा है कि लोकतांत्रिक मॉडल के मुकाबले चीनी सर्वसत्तावादी मॉडल ज्यादा श्रेष्ठ है। कोरोना से निपटने में पश्चिमी देशों की विफलता और चीन की सफलता से यह साबित हो गया है।

लेकिन अब विफलता चीन के सिर है। इसे स्वीकार करने का मतलब चीनी राजनीतिक तंत्र के लोकतांत्रिक देशों की तुलना में दोयम होने का कबूलनामा होगा। पेच यही है। जिनपिंग जिद पर अड़े हैं। यूरेशिया समूह ने 2022 के लिए विश्व को लेकर खतरों की सूची बनाई हैं, उसमें शीर्ष पर महामारी से निपटने में चीनी रणनीति की विफलता को रखा गया है।
(लेखक साक्षी श्री द्वारा स्थापित साइंस डिवाइन फाउंडेशन से जुड़े हैं और रक्षा एवं विदेशी मामलों के अध्येता हैं)

Topics: चीनी कम्युनिस्ट पार्टीfailure of western countriesचीनी राजनीतिक तंत्रलोकतांत्रिक देशशंघाई में लॉकडाउनchinese strategyचीन के शहरChina's authoritarian dictatorshipवुहान वायरसजीरो कोविडचीन यूनिवर्सिटीप्रधानमंत्री ली क्विंग
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