समाचार पत्र या चैनल की आड़ में चल रहे कई संस्थान वास्तव में भारत विरोधी शक्तियों के हथियार हैं। वे कभी भी भारत को आंतरिक संकटों में डालने के लिए इस हथियार का प्रयोग कर सकते हैं। दिल्ली के जहांगीरपुरी इलाके में हनुमान जयंती शोभायात्रा पर हमले के बाद ‘आजतक’ चैनल ने यह मिथ्या प्रचार आरंभ कर दिया कि मस्जिद पर भगवा ध्वज लहराने का प्रयास किया गया था।
पहले यह बात न तो किसी प्रत्यक्षदर्शी ने कही थी, न पुलिस ने। सीसीटीवी कैमरों में भी ऐसा कुछ नहीं दिखा था। ‘हिंदुस्तान टाइम्स’ ने अपनी वेबसाइट और सोशल मीडिया के माध्यम से इस झूठ को फैलाने में सहायता की। ऐसा लगता है कि वास्तविक दोषियों को बचाने के लिए यह एक सोचा-समझा प्रयास था। यदि किसी ने ऐसा दावा किया भी था तो मीडिया का कर्तव्य बनता था कि ऐसी संवेदनशील बात पुष्टि के बाद ही प्रसारित की जाए। मध्य प्रदेश के खरगौन में मंदिर में तोड़फोड़ हुई थी। अधिकांश चैनलों और समाचार पत्रों ने वह समाचार तक नहीं बताया था। ऐसी स्थिति में क्यों न मानें कि अपुष्ट समाचार प्रसारित करने के पीछे मीडिया की मंशा दंगा भड़काने की थी?
दिल्ली में दंगाइयों की ओर से गोली चलाए जाने के वीडियो आ चुके थे, कई पुलिसवाले घायल भी हुए, लेकिन ‘आजतक’ चैनल इसे ‘कथित घटना’ बताता रहा। ऐसा कई बार देखा गया है कि यह चैनल दंगाइयों के बचाव में तथ्यों में हेरफेर करता है। एनडीटीवी इसी काम को बहुत खुलकर करता है और लोग उसकी सांप्रदायिक प्रवृत्ति के बारे में जानते हैं। जबकि ‘आजतक’ वही काम बहुत सफाई से करता है।
दिल्ली के पुलिस आयुक्त ने इस झूठ का खंडन किया, परंतु क्या इसे फैलाने वालों के विरुद्ध कोई कार्रवाई नहीं होनी चाहिए? ‘दैनिक भास्कर’ ने छापा कि खरगौन में पथराव के आरोप में एक ऐसे व्यक्ति का घर तोड़ दिया गया, जिसके दोनों हाथ कटे हुए हैं। इसी समाचार के पास बहुत ही शरारतपूर्ण ढंग से छोटे शब्दों में यह भी लिख दिया गया कि जिस व्यक्ति ने यह दावा किया था, उसने स्वयं ही खंडन किया है। उसके पास कोई घर भी नहीं, है जिसे तोड़ा गया हो। फिर भी अफवाह फैलाने के अपने प्रयास में ‘दैनिक भास्कर’ सफल रहा। पास में छपे खंडन को छिपाकर यह फेक न्यूज सोशल मीडिया पर खूब शेयर की गई।
उत्तर प्रदेश का एक वीडियो वायरल हुआ, जिसमें एक दुकान पर ‘पाकिस्तान जिंदाबाद’ का गाना बज रहा था। पुलिस ने जांच के लिए आरोपियों से पूछताछ की। लेकिन ‘टाइम्स आफ इंडिया’ ने छापा कि ‘दो बच्चों को हिरासत में लिया गया क्योंकि वे पाकिस्तानी गाने सुन रहे थे।’ कोई सामान्य व्यक्ति यह पढ़ेगा तो यही सोचेगा कि उत्तर प्रदेश पुलिस ने बहुत अनुचित किया। झूठ फैलाने का यह भी एक तरीका है।
‘टाइम्स आफ इंडिया’ और ‘एनडीटीवी’ ने बड़े हर्ष के साथ समाचार दिया कि जर्मनी भारत को जी-7 देशों की अतिथि सदस्यता से बाहर करने जा रहा है। दावा किया गया कि यूक्रेन युद्ध में रूस का पक्ष लेने के कारण भारत को सदस्यता गंवानी पड़ सकती है। यह समाचार अमेरिकी पोर्टल ‘ब्लूमबर्ग’ के हवाले से प्रकाशित किया गया। सामान्य रूप से ऐसे समाचारों में भारतीय विदेश मंत्रालय का पक्ष लिया जाना चाहिए था। लेकिन जब फेक न्यूज ही फैलानी हो तो इसकी क्या आवश्यकता? दोनों समाचार संस्थानों में प्रकाशित होने के कुछ घंटे के अंदर ही जर्मनी ने इसका खंडन कर दिया।
यह ध्यान देने वाली बात है कि ‘टाइम्स आफ इंडिया’ और ‘एनडीटीवी’ इस विवाद में लगातार अमेरिका के भोंपू बने हुए हैं। ‘ब्लूमबर्ग’ वही संस्थान है जिसने कोरोना की पहली लहर के बाद ही भारत की बबार्दी की घोषणा कर दी थी। इसी ने यह भी छापा था कि कोरोना से बचाव के लिए भारत को चीन से वैक्सीन खरीदनी चाहिए। आज स्थिति यह है कि चीन का शंघाई शहर कोविड की तालाबंदी में है और भारतीय अर्थव्यवस्था तीव्रता के साथ संकट से बाहर निकल रही है।
अमेरिका के सूचना युद्ध का एक प्रमुख हथियार नेटफ्लिक्स संकट में है। कंपनी ने माना है कि उसने मात्र तीन महीने में 2 लाख ग्राहक गंवा दिए हैं। भारत में भी इसका व्यापार डांवांडोल है।
तमिलनाडु में कुछ दिन पहले एक ईसाई मिशनरी स्कूल में धर्मांतरण के दबाव के कारण लावण्या नामक छात्रा की मृत्यु का समाचार आया था। वैसी ही घटना तिरुपुर में हुई। एक छात्रा को विभूति लगाने पर प्रताड़ित किया गया। लेकिन चर्च पर हमले का झूठ फैलाने वाले भारतीय मीडिया ने चर्च में हो रहे हिंदू उत्पीड़न का संज्ञान तक लेना उचित नहीं समझा।
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