उत्तर प्रदेश गैंगस्टर एक्ट के खिलाफ दायर याचिका को उच्चतम न्यायालय ने खारिज कर दिया. मंगलवार को उच्चतम न्यायालय ने कहा कि अपराध एक व्यक्ति के द्वारा किया गया हो या गिरोह द्वारा, या फिर पहली बार भी किसी अपराध में संलिप्त पाए जाने पर उत्तर प्रदेश गैंगस्टर्स और असामाजिक गतिविधि (रोकथाम) अधिनियम के अंतर्गत मुकदमा चलाया जा सकता है.
अपीलकर्ता का तर्क था कि केवल एक प्राथमिकी या आरोपपत्र के आधार पर ‘गिरोह’ का सदस्य नहीं कहा जा सकता है. उत्तर प्रदेश सरकार की तरफ से कहा गया कि एक प्राथमिकी या एक आरोप पत्र के आधार पर गैंगस्टर अधिनियम की धारा 2 (बी) में उल्लिखित असामाजिक गतिविधियों के संबंध में, गैंगस्टर अधिनियम के तहत मुकदमा चलाया जा सकता है.
उच्चतम न्यायालय ने कहा कि महाराष्ट्र संगठित अपराध
नियंत्रण अधिनियम और
गुजरात आतंकवाद नियंत्रण
और संगठित अपराध नियंत्रण अधिनियम की तरह यूपी
गैंगस्टर एक्ट के अंतर्गत
ऐसा कोई विशेष प्रावधान
नहीं है
दोनों पक्षों का तर्क सुनने के बाद जस्टिस एमआर शाह और बीवी नागरत्ना की खंडपीठ ने महिला आरोपी द्वारा दायर की गई याचिका को खारिज कर दिया. उच्चतम न्यायालय ने कहा कि महाराष्ट्र संगठित अपराध नियंत्रण अधिनियम और गुजरात आतंकवाद नियंत्रण और संगठित अपराध नियंत्रण अधिनियम की तरह यूपी गैंगस्टर एक्ट के अंतर्गत ऐसा कोई विशेष प्रावधान नहीं है जिसमें कहा गया हो कि गैंगस्टर एक्ट के तहत मुकदमा चलाने के लिए आरोपी के खिलाफ एक से अधिक एफआईआर या फिर आरोप पत्र हो.
उच्चतम न्यायालय ने इलाहाबाद उच्च न्यायालय के निर्णय को सही ठहराया. उच्चतम न्यायालय ने याचिका खारिज करते हुए कहा कि मामले में मुख्य आरोपी पीसी शर्मा, एक गिरोह संचालक एवं मास्टरमाइंड है, उसने अन्य सह अभियुक्तों के साथ आपराधिक साजिश रची थी. षड़यंत्र रचने में याचिकाकर्ता भी शामिल था.
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