नारायणपुर: चर्च के चंगुल में फंसकर जिन्होंने छोड़ी वनवासी संस्कृति, उनकी बंद हों सभी सुविधाएं

छत्तीसगढ़ के नारायणपुर में वनवासी समाज के हजारों लोगों ने एक रैली निकाली। इस रैली में एक स्वर में आवाज बुलंद की गई कि जो लोग ईसाई मिशनिरयों के चंगुल में आकर कन्वर्ट हो गए हैं, उनकी पहचान कर वनवासी समाज के नाम पर मिलने वाली सभी सुविधाओं को किया जाए बंद

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अश्वनी मिश्र

भारत भूमि की संवैधानिक आस, डी लिस्टिंग कानून करो पास, युवाओं तुम जाग जाओ, ‘धर्मांतरित’ तुम भाग जाओ, कुलदेवी तुम जाग जाओ, ‘धर्मांतरित’ तुम भाग जाओ, विखंडनकारियों में मची खलबली,आ गया है महाबली, धर्मांतरित व्यक्तियों को अनुसूचित जनजाति की सूची से किया जाए बाहर। दरअसल ये नारे बीते मंगलवार को छत्तीसगढ़ के उस नारायणपुर में लग रहे थे जहां चर्च और ईसाई मिशनियों द्वारा बराबर वनवासी समुदाय को कन्वर्ट किया जा रहा है। यूं तो यह पूरा इलाका प्राकृतिक सुंदरता से किसी भी का भी मनमोह लेता है। यहां की वनवासी संस्कृति अनूठी है है। लेकिन लंबे समय से इस अंचल को चर्च ने जकड़ रखा है। ईसाई मिशनरी धड़ल्ले से लोभ—लालच और छल—प्रपंच से भोले वनवासी समुदाय को ईसाई बनाने में लगी हुई हैं। इसी सबसे परेशान होकर नारायणपुर के हाईस्कूल मैदान में जनजातीय सुरक्षा मंच के बैनर तले एक विशाल सभा और रैली का आयोजन किया गया।

हजारों की तादाद में जुटा वनवासी समाज

सभा में हजारों की संख्या में वनवासी समाज ने भाग लिया। रैली में बच्चों से लेकर युवाओं तक और लड़कियों से लेकर महिलाओं तक ने बढ़ चढ़कर हिस्सा लिया। यह सभी तपती धूप में जिला मुख्यालय की सड़कों पर उतरे और समाज को जागरूक करते हुए सरकार से मांग की जो वनवासी परिवार ईसाई मिशनरियों के चंगुल में फंसकर कन्वर्ट हो गए हैं, सरकार द्वारा उन्हें मिलने वाली सभी सुविधाएं बंद की जाएं। रैली में बखरुपारा, कुम्हारपारा, आश्रम, माहकाभाटा, अबूझमाड़ से बड़ी तादाद में लोग जुटे और जिला मुख्यालय की मुख्य सड़क से होते हुए रैली सोनपुर रोड, नया बस स्टैंड, कलेक्ट्रेट रोड होते हुए कार्यक्रम स्थल हाईस्कूल मैदान में पहुंची।

पारंपरिक परिधान में नजर आया वनवासी समाज

रैली की खास बात थी कि वनवासी समाज के युवक-युवतियां पारंपरिक परिधान में थे। इनके हाथ में तीर—धनुष, परंपरागत वाद्ययंत्र और डी लिस्टिंग के समर्थन में नारे लिखीं तख्तियां थीं। इस दौरान हाईस्कूल मैदान में लगभग 10 से 12 हजार की संख्या में जनजाति समाज के लोगों ने शामिल होकर न केवल ईसाई मिशनिरयों के खिलाफ आवाज बुलंद की बल्कि डी लिस्टिंग के संबंध में प्रशासन को अपनी बात से अवगत कराया। कार्यक्रम में मुख्य अतिथि के रूप में जन सुरक्षा मंच, झारखंड के सदस्य मेघा उरांव, जनजातीय सुरक्षा मंच के प्रांत संयोजक भोजराज नाग, विशेष अतिथि विकास मरकाम, सहसंयोजक सर्व वनवासी समाज से सोनूराम कोर्राम, जिला संयोजक देशीराम टेकाम, भुरिया समाज से रूपसाय सलाम एवं अबूझमाड़िया एवं गोंड समाज से उनके प्रतिनिधि मौजूद थे।

वनवासी संस्कृति छोड़ने वालों की सुविधाएं हों बंद

सभा स्थल पर इलाके के विभिन्न वनवासी समाज के प्रतिनिधि उपस्थित थे। इन सभी का एक ही स्वर था कि जो लोग ईसाई बन गए हैं, उनकी आस्था वनवासी संस्कृति में न होकर कहीं और हो गई है। वह अपने पूर्वजों और परंपराओं का अपमान करते हैं। ऐसे में वह फिर वनवासी समाज के कैसे हो सकते हैं ? भुरिया समाज के अध्यक्ष रूपसाय सलाम ने कहा कि वर्तमान परिस्थितियों में वनवासी समाज को संरक्षित करने के लिए हमें अपने पूर्वजों की परंपरा और सांस्कृतिक धरोहर को संरक्षित करने का प्रयास करना चाहिए। जो वनवासी परंपरा—संस्कृति को नहीं मानता, उसे डी लिस्टिंग द्वारा पहचानकर, वनवासी होने के कारण जो विशेष सुविधाएं दी जाती हैं, उसे वापस लेने का काम किया जाना चाहिए। हम इस आन्दोलन को गांव—गांव तक ले जाएंगे। कार्यक्रम में विशेष अतिथि के रूप में उपस्थित विकास मरकाम ने कहा कि वनवासी समाज का गौरवशाली इतिहास है। इस क्षेत्र में सदियों से महान गोंडवाना वनवासी राजा—महाराजाओं द्वारा शासन किया गया। यहां की परंपरा अनूठी है। इसलिए हमें अपने गौरवशाली इतिहास और संस्कृति—परम्परा पर गर्व करना चाहिए।

उन्होंने कहा कि लेकिन एक साजिशवश बड़ी तादाद कन्वर्जन के जाल में फंस गई है। इन्होंने अपनी संस्कृति—परंपरा को छोड़ दिया है, लेकिन बावजूद इसके ये सारी सुविधाएं ले रहे हैं। हमारी मांग है कि ऐसे लोगों की पहचान कर उन्हें सूचीबद्ध किया जाए और उन्हें आरक्षण की सूची से हटाया जाए। वनवासी समाज इसकी आवश्यकता को समझ रहा है। इसी का परिणाम है कि हजारों लोग नारायणपुर में एकत्र हुए हैं। डी लिस्टिंग होने तक ये कार्यक्रम देशभर में अनवरत जारी रहेंगे। कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे जनजातीय सुरक्षा मंच के प्रांत संयोजक भोजराज नाग ने कहा कि हमारे द्वारा 2006 से विभिन्न मंचों से समाज जागरण के कार्यक्रम चलाए जा रहे हैं। इसका परिणाम है कि आज गांव-गांव इस समस्या को समझ रहे हैं और डी लिस्टिंग के पक्ष में आवाज बुलंद कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि पूर्व में डॉ कार्तिक उरांव द्वारा संसद के संयुक्त संसद में 17 जून, 1967 को 235 सांसद के हस्ताक्षरयुक्त ज्ञापन तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी जी को दिया गया था। ज्ञापन कहा गया था कि कुछ ऐसा संवैधानिक प्रावधान किया जाए, जिसके तहत जो लोग वनवासी आस्था—परम्परा को छोड़ चुके हैं, उन्हें जनजातीय सदस्य नहीं माना जाए। सरकार द्वारा गठित संयुक्त संसदीय समिति में भी यही सिफारिश की गई थी। इस सिफारिश को कानून के माध्यम से लागू करने की मांग भी की गई।

अधिकार छीनने का कर रहे काम

जन सुरक्षा मंच, झारखंड के सदस्य मेघा उरांव का कहना था कि आज डी लिस्टिंग की बहुत आवश्यकता है। क्योंकि जो लोग आस्था—परम्परा को छोड़ चुके हैं, तो उन्हें फिर किस बात का लाभ मिलना चाहिए। ऐसे लोग वनवासी समाज के अधिकार छीनने का काम कर रहे हैं। अगर ऐसे लोगों की पहचान हो जाएगी तो हमारे हक पर कोई डाका नहीं डाल सकेगा।

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