जम्मू—कश्मीर में आतंकरोधी अभियान जारी है। चुन—चुनकर सुरक्षा बलों द्वारा आतंकियों का सफाया किया जा रहा है। ऐसे में पाकिस्तान कश्मीर में आतंकवाद को जिंदा रखने के लिए तालिबानी आतंकियों की मदद ले रहा है। बता दें कि जम्मू स्थित सुंजवां के जलालाबाद में बीते दिनों हुई मुठभेड़ में जैश-ए-मोहम्मद के दो आतंकियों को सुरक्षाबलों ने मार गिराया था। खबरों के अनुसार ये दोनों आतंकी पश्तो बोलते थे और यह भाषा पाकिस्तान के खैबर पख्तूनख्वा और अफगानिस्तान में ही बोली जाती है। इसके बाद से सुरक्षा एजेंसियां सतर्क हो गई हैं। हालांकि जम्मू—कश्मीर पुलिस के अतिरिक्त महानिदेशक मुकेश सिंह का कहना है कि सुंजवां में मारे गए जैश—ए—मोहम्मद के दो आत्मघाती आतंकी पश्तो बोलते थे, लेकिन क्या वह तालिबानी ही थे, यह अभी जांच का विषय है।
उल्लेखनीय है कि अफगानिस्तान में तालिबान राज के बाद से आशंका जताई जा रही थी कि आतंकी कश्मीर का रुख कर सकते हैं। इस मसले पर राज्य के एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी नाम ना छापने की शर्त पर बताते हैं कि इससे इंकार नहीं किया जा सकता कि घाटी में कुछ बाहरी तत्वों की घुसपैठ हुई है। लेकिन ये कौन हैं, कहां से आए हैं, सुरक्षा बलों को इससे कोई मतलब नहीं है। हमारा ध्यान घाटी से आतंक और आतंकवाद के सफाए पर है। इसलिए जो भी यहां आएगा, मारा जाएगा।
जम्मू—कश्मीर के जानकार मानते हैं कि आतंकी संगठन जैश—ए—मोहम्मद और लश्कर—ए—मोहम्मद के हजारों आतंकी तालिबान के साथ मिलकर अफगानिस्तान में अमेरिका के खिलाफ लड़ रहे थे। इसके अलावा इन दोनों आतंकी संगठनों के ट्रेनिंग कैंप भी पाकिस्तान में हैं। अल-कायदा, तालिबान और तहरीके तालिबान पाकिस्तान के साथ जैश सरगना अजहर मसूद के संबंध काफी मजबूत हैं। बीते एक साल के दौरान अफगानिस्तान से कई आतंकी कमांडर पीओजेके और पाकिस्तान स्थित जैश के शिविरों में पहुंचे हैं।
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