‘सुषेण पर्व’ नाटक में सुषेण के ‘राजवैद्य’से ‘वैद्यराज’ बनने तक की यात्रा को दर्शाया गया है। इस नाटक के लेखक हैं डॉ. देवेन्द्र दीपक।
गत दिनों भोपाल के हंस ध्वनि रवीन्द्र भवन में डॉ.देवेन्द्र दीपक द्वारा रचित सुप्रसिद्ध काव्य नाटक ‘सुषेण पर्व’ का मंचन किया गया। विश्व अयुर्वेद परिषद द्वारा आयोजित कार्यक्रम संयोजनम् 2022 के अन्तर्गत समूचे भारत से भारी संख्या में आए आयुर्वेद के प्रतिनिधियों के समक्ष सांस्कृतिक संध्या में ‘सुषेण पर्व’ का मंचन हुआ। त्रेतायुग के प्रसिद्ध वैद्य सुषेण पर आधारित इस काव्य-नाटक में चिकित्सक की व्यावसायिक नैतिक शुचिता का निदर्शन है।
वैद्य के अंतस में वनस्पतियों, वनदेवी से लेकर रोगी तक कृतज्ञता का भाव रखने तथा लोभ, लालच, आत्मप्रशां से दूर रहने की सीख वैद्य सुषेण के चरित्र के माध्यम से दी गई।
रामकथा के महत्वपूर्ण किन्तु अलक्षित पात्र सुषेण के जीवन के अनेक अनबूझे और अनकहे पहलू इस रम्य नाटक में दिखाए गए हैं। रावण के राजवैद्य सुषेण का राम के द्वारा वैद्यराज के रूप में अलंकृत होना इस नाटक के कथा-पट का महत्वपूर्ण पक्ष है। राजवैद्य के वैद्यराज सुषेण बनने तक की यात्रा में उसके घनीभूत द्वंद्व का निरसन सुषेण की पत्नी सूर्या (कल्पित) जिस तार्किकता के साथ करती है, वह अद्भुत है।
अर्घ्य कला समिति भोपाल के कलाकारों द्वारा मंचित इस नाटक का निर्देशन वैशाली गुप्ता ने किया। कलाकरों ने अपने प्रतिभापूर्ण अभिनय से चरित्रों को जीवंत कर दिया। वैद्य सुषेण की भूमिका प्रेम गुप्ता ने निभाई। राम की भूमिका में अंकित तिवारी,लक्ष्मण की भूमिका में कृष्णा मुन्डारी लोहार और हनुमान की भूमिका में हर्ष राव थे। संगीत निर्देशन सुश्रुत गुप्ता किया। नाटक के उपरांत लेखक डॉ.देवेन्द्र दीपक और निर्देशक वैशाली गुप्ता का अभिनंदन किया गया।
देहदान के लिए संकल्पित डॉ.देवेन्द्र दीपक राष्ट्रपति द्वारा सम्मानित साहित्यकार हैं। ‘सुषेण पर्व’ डॉ. देवेन्द्र दीपक की सांस्कृतिक प्रज्ञा, सृजन की अंतर्दृष्टि और कलाशीलता का नाट्य अनुष्ठान है। उदात्त विषय पर उदात्त भाव से रचित उदात्त नाट्यकृति है ‘सुषेण पर्व’।
‘दबाव’, ‘भूगोल राजा का : खगोल राजा का’ और ‘कांवर श्रवण कुमार की’ के बाद ‘सुषेण पर्व’ डॉ. देवेन्द्र दीपक का चौथा काव्य-नाटक है!
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