पाकिस्तान में चल रहे सियासी ड्रामों नित नए-नए अध्याय जुड़ रहे हैं। अविश्वास प्रस्ताव द्वारा इमरान खान को सत्ता से बेदखल करने के बाद पाकिस्तान की सियासत में एक नया किरदार उभर कर आया है। वह किरदार हैं पाकिस्तान मुस्लिम लीग-नवाज के नेता और पूर्व प्रधानमंत्री नवाज शरीफ के भाई शाहबाज शरीफ। संयुक्त विपक्ष द्वारा उम्मीदवार घोषित किए जाने के बाद शाहबाज प्रधानमंत्री तो बन गए, लेकिन मंत्रिमंडल का गठन एक पहेली बना हुआ था। सबसे बड़ी समस्या थी— गठबंधन में शामिल दलों में मंत्रालयों का बंटवारा। एक हफ्ते की माथापच्ची के बाद जब विभागों के बंटवारे को लेकर घटक दलों में सहमति बनी तो राष्ट्रपति आरिफ अल्वी नए मंत्रिमंडल को शपथ दिलाने में आनाकानी करने लगे। फिर 18 अप्रैल को अचानक छुट्टी पर चले गए, जिससे शपथ ग्रहण समारोह भी टल गया। अंतत: शाहबाज शरीफ के शपथ ग्रहण के एक हफ्ते बाद 19 अप्रैल को सीनेट अध्यक्ष सादिक संजरानी ने नए मंत्रियों को शपथ दिलाई। राष्ट्रपति अल्वी ने खराब स्वास्थ्य का हवाला देकर शाहबाज शरीफ को भी शपथ दिलाने से मना कर दिया था। तब संजरानी ने ही पाकिस्तान के 23वें प्रधानमंत्री के बतौर शाहबाज शरीफ को भी शपथ दिलाई थी।
नवाज गुट का दबदबा
नवनियुक्त सरकार में 34 मंत्रियों को शामिल किया गया है। इनमें 31 संघीय मंत्री, तीन राज्य मंत्री और तीन सलाहकार शामिल हैं। नए जंबो मंत्रिमंडल में पाकिस्तान मुस्लिम लीग-नवाज (पीएमएल-एन) के 13 मंत्री हैं। इनमें ख्वाजा मुहम्मद आसिफ, अहसान इकबाल चौधरी, राणा सना उल्लाह खान, सरदार अयाज सादिक, राणा तनवीर हुसैन, खुर्रम दस्तगीर खान, मरियम औरंगजेब, ख्वाजा साद रफीक, मियां जावेद लतीफ, मियां रियाज हुसैन पीरजादा, मुर्तजा जावेद अब्बासी, आजम नजीर तरारी और मिफ्ताह इस्माइल शामिल हैं। वहीं, गठबंधन के दूसरे सर्वाधिक महत्वपूर्ण घटक पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी (पीपीपी) के नौ मंत्री शामिल किए गए हैं। इनमें सैयद खुर्शीद अहमद शाह, सैयद नवीद कमर, शेरी रहमान, अब्दुल कादिर पटेल, शाजिया मर्री, सैयद मुर्तजा महमूद, साजिद हुसैन तुरी, एहसान उर रहमान मजारी और आबिद हुसैन भायो शामिल हैं। मौलाना फजलुर्रहमान की अगुआई वाली जमीयत उलेमा-ए-इस्लाम फज्ल (जेयूआई-एफ) के कोटे से असद महमूद, अब्दुल वासय, मुफ्ती अब्दुल शकूर व मुहम्मद तलहा महमूद, मुत्ताहिदा कौमी मूवमेंट पाकिस्तान (एमक्यूएम-पी) के सैयद अमीन-उल-हक व सैयद फैसल अली सब्जवारी ने मंत्री पद की शपथ ली है। बलूचिस्तान अवामी पार्टी के इसरार तारीन, जेडब्ल्यूपी के शाहजैन बुगती और पीएमएल-क्यू के तारिक बशीर चीमा को भी मंत्रिमंडल में हैं शामिल। इसके अलावा, पीएमएल (एन) के आमिर मुकम, कमर जमां कैरा और जहांगीर तारीन समूह के औन चौधरी को प्रधानमंत्री का सलाहकार बनाया गया है। बता दें कि जहांगीर खान तारीन कभी इमरान खान के खास विश्वासपात्र थे, लेकिन सियासी उठापटक में उन्होंने पाला बदल लिया। इनके अलावा, पीएमएल-एन की डॉ. आयशा गौस पाशा व अब्दुल रहमान खान कांजू तथा पीपीपी की ओर से पूर्व विदेश मंत्री हिना रब्बानी खार को राज्य मंत्री बनाया गया है।
मतभेद जारी
भले ही पाकिस्तान में शाहबाज शरीफ की अगुआई में नई सरकार का गठन हो गया, लेकिन मंत्रालय बंटवारे को लेकर घटक दलों में नाराजगी बरकरार है। इसी मतभेद के कारण अवामी नेशनल पार्टी के अध्यक्ष इसफंदयार वली खान ने सरकार में शामिल होने से इनकार कर दिया है। मंत्रालय बंटवारे में योग्यता से अधिक मंत्रियों की वफादारी को पैमाना बनाया गया है। मंत्रिमंडल में 20 ऐसे मंत्री शामिल हैं, जिन्हें पहली बार संघीय स्तर पर महत्वपूर्ण जिम्मेदारी दी गई है। जैसे- राना सनाउल्लाह खान जो पंजाब की प्रांतीय असेंबली के सदस्य रहे हैं, उन्हें आंतरिक मंत्रालय जैसा महत्वपूर्ण विभाग दिया गया है। वहीं, कट्टरपंथी मुफ्ती अब्दुल शकूल को मजहबी मामलों का मंत्री बनाया गया है, जबकि भ्रष्टाचार में लिप्त पूर्व रेल मंत्री साद रफीक को फिर से रेल मंत्रालय की जिम्मेदारी सौंपी गई है। इस मंत्रिमंडल में ऐसे कई मंत्री हैं, जो किसी प्रभावशाली नेता के बेटे-बेटी या रिश्तेदार हैं। आयशा गौस पाशा पूर्व मंत्री हफीज पाशा की पत्नी हैं। मौलाना फजलुर्रहमान के बेटे मौलाना असद महमूद, पंजाब के गवर्नर रहे मखदूम अहमद के बेटे मुर्तजा महमूद तथा शाहजैन बुगती जो बलूचिस्तान के नेता और पूर्व तानाशाह जनरल परवेज मुशर्रफ द्वारा चलाए गए सैन्य अभियान में मारे गए अकबर खान बुगती के पौत्र हैं। शाहजैन के चचेरे भाई अहसान उर्रहमान मजारी को भी मंत्री बनाय गया है। हिना रब्बानी खार, जो अपनी योग्यता से अधिक अपने परिवार और अपने संबंधों के कारण अधिक चर्चित हैं, को भी मंत्रिमंडल में जगह मिली है।
बदहाल देश
पाकिस्तान की आर्थिक स्थिति डांबांडोल है और देश की साख भी दांव पर लगी है। राजनीतिक अस्थिरता के कारण इसे और धक्का लगा है। विशेषज्ञों का मानना है कि सत्ता परिवर्तन पाकिस्तान की मुसीबतों का अंत नहीं है, बल्कि कई मायनों में यह नई समस्याओं को जन्म देगा। देश के कई अर्थशास्त्री चेतावनी दे रहे हैं कि बढ़ती महंगाई नई सरकार के लिए बड़ी चुनौती होगी और उसे इमरान खान के नेतृत्व वाली सरकार द्वारा घोषित तथाकथित आर्थिक उपायों में आमूलचूल परिवर्तन करना होगा। पाकिस्तान की आर्थिक बदहाली का आलम यह है कि उसका विदेशी मुद्रा भंडार घट कर 11.3 अरब डॉलर के निचले स्तर पर आ गया है। महंगाई तथा बेरोजगारी भी सर्वोच्च स्तर पर है, जो अब आर्थिक से ज्यादा राजनीतिक समस्या के रूप में परिवर्तित होने की प्रक्रिया में है। इमरान खान के खिलाफ एकजुट हुआ विपक्ष भले ही अब सत्ता में है, लेकिन उसे यह नहीं भूलना चाहिए कि गठबंधन में शामिल अधिकांश दल इमरान की अगुआई वाले सत्ताधारी गुट का हिस्सा रह चुके हैं। हालांकि पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ पार्टी अब विपक्ष में है, जो कमजोर और अलग-थलग पड़ चुकी है। शाहबाज शरीफ के लिए बस यही राहत की बात है।
यह भी सच है कि पाकिस्तान की राजनीति लोकतंत्र को कभी स्थिर नहीं होने देती। फौज के लिए सत्ता के द्वार हमेशा खुले रहते हैं। नवाज शरीफ और इमरान खान भी शुरुआती कार्यकाल में फौज के करीबी माने जाते थे। अब उसमें शाहबाज शरीफ का नाम भी शामिल हो गया है। यह उनके लिए परीक्षा की घड़ी है। राजनीतिक महत्वाकांक्षा पाले क्षेत्रीय व विरोधी विचारधारा वाले गठबंधन सहयोगियों के साथ वे कब तक गठबंधन धर्म निबाह पाएंगे, इसे समय ही बताएगा। खासतौर से मंत्रिमंडल में जिन्हें राजनीतिक रसूख की बदौलत शामिल किया गया है, उनमें राजनीतिक परिपक्वता नहीं है। वे तो एक तरह से वंशानुगत विशेषाधिकारों का लाभ उठाते आए हैं। ऊपर से नए प्रधानमंत्री पर पूर्ववर्ती सरकार की नाकामियों का बोझ भी आने वाला है। ऐसे में आम चुनाव तक कोई भी राजनीतिक दल इन नाकामियों के तले चुनाव लड़ना पसंद नहीं करेगा। गठबंधन की सबसे बड़ी परीक्षा यही होगी। कुल मिलाकर, जोड़-तोड़ कर बनी नई नवेली सरकार से बड़े बदलाव या सुधार की उम्मीद करना देश की जनता के लिए अभी बेमानी होगा। ल्ल
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