विवादों को दूर कर सामाजिक समरसता बढ़ा रहे हैं ‘झारखंडी बाबा’

Published by
रितेश कश्यप

बिहार के जहानाबाद जिले में भगवान शिव का एक मंदिर है, जिसे ‘झारखंडी बाबा’ का मंदिर कहा जाता है। यह मंदिर सामाजिक समरसता का केंद्र बन चुका है। इसके आसपास कभी कोई जातीय विवाद नहीं होता है।

 

आजकल बिहार और झारखंड के लोगों के बीच कभी भाषा, कभी संस्कृति, कभी खानपान, कभी स्थानीय और कभी बाहरी के नाम पर विवाद पैदा करने की कोशिश होती है। वहीं एक मंदिर के कारण यह विवाद बहुत हद तक थम जाता है। वह मंदिर है जहानाबाद स्थित ‘झारखंडी बाबा’ का। इस मंदिर में आने वाला कर व्यक्ति इन विवादों से परे हो जाता है। इसलिए इन दिनों इस मंदिर को लेकर बड़ी चर्चा है। यह मंदिर बिहार में पड़ता है, लेकिन नाम ‘झारखंडी बाबा’ होने के कारण सबकी जिज्ञासा और आकर्षण का केंद्र बन गया है। मंदिर जहानाबाद जिले के घोषी थाना क्षेत्र में फल्गु नदी के तट पर स्थित है। भगवान शिव को यहां ‘झारखंडी बाबा’ के नाम से जाना जाता है।

शिवलिंग की कहानी

इस मंदिर और यहां के शिवलिंग को लेकर कई कथा—कहानियां ग्रामीणों के बीच प्रचलित हैं। लोगों का कहना है कि यहां का शिवलिंग स्वयंभू है। इस मंदिर में स्थापित शिवलिंग एक ओर झुका हुआ है। नंदना गांव के ग्रामीण और भूतपूर्व सैनिक राम प्रवेश शर्मा ने बताया कि उन दिनों अंग्रेजी शासन था। एक दिन इस शिवलिंग के बारे में पता चला तो डुमरी और नंदना गांव के लोग आपस में इस बात पर लड़ पड़े कि यह शिवलिंग उनके गांव का है। इस बात को लेकर दोनों गांवों के लोग काफी समय तक आपस में भिड़ते रहे। इसका लाभ कुछ मुसलमानों ने उठाने का प्रयास किया, लेकिन वे सफल नहीं रहे। इसके बाद अंग्रेजी सरकार के अधिकारियों को इस मामले में हस्तक्षेप करना पड़ा। उनमें से एक अधिकारी हिंदू था। उसने शिवलिंग की पूजा की और कहा कि जो भगवान सभी लोगों का न्याय करते हैं उनका न्याय कौन करेगा? इसके बाद भगवान से ही यह मन्नत मांगी गई कि आप इस लड़ाई को स्वयं समाप्त करें। कहा जाता है कि उस रात मंदिर को चारों ओर से पुलिस वालों ने घेर लिया और अगले दिन जब मंदिर खोला गया तो शिवलिंग नंदना ग्राम की ओर झुका पाया गया। उसके बाद अंग्रेज अफसर ने कहा कि भगवान शिव ने अपना निर्णय सुना दिया है और वे नंदना गांव के लोगों के साथ जाना चाहते हैं इसलिए अब लड़ाई समाप्त कर दी जाए। इसके बाद यह मामला वहीं थम गया।

रामदास जी महाराज ने बनवाया मंदिर

झारखंडी धाम के मुख्य पुजारी भीम उपाध्याय ने बताया कि शिवलिंग विवाद समाप्त होने के बाद कई वर्षों तक इस शिवलिंग की पूजा करने के लिए आसपास के क्षेत्र के लोग आते रहे। चूंकि यह शिवलिंग फल्गु नदी के किनारे जंगलों के बीच मिला था। इस कारण लोग इसे ‘झारखंडी बाबा’ के नाम से पुकारने लगे। उस वक्त खुले में ही शिवलिंग की पूजा—अर्चना की जाती थी। कई वर्षों के बाद 1960 के दशक में ग्रामीणों ने यहां मंदिर बनवाने का निर्णय लिया। इसके लिए नंदना के रहने वाले स्व. झलक देव सिंह, स्व. सकलदीप सिंह, स्व. राज रूप सिंह और स्व. राम जतन उपाध्याय अयोध्या गए और वहां के गोकुल भवन के महंत राममंगल दासजी महाराज से मंदिर बनाने का आग्रह किया। महंत राममंगल दासजी महाराज ने अपने शिष्य रामदास जी महाराज को इन लोगों के साथ भेज दिया और उनके नेतृत्व में ही मंदिर का निर्माण हुआ।

 

मंदिर बना समरसता का केंद्र

ग्रामीण राम बल्लभ शर्मा के अनुसार यह मंदिर और यहां के महंत स्वामी रामदास जी महाराज ने न सिर्फ मंदिर बनवाया, अपितु लोगों के बीच समरस भाव पैदा करने का भी काम किया। महाराज जी मंदिर आने वाले भक्तों से कहते थे कि कभी किसी जातिगत द्वेष या विवाद में न रहकर एक सनातनी के नाते समाज को मजबूत करो। उनके इस विचार का लोगों पर असर हुआ और यही कारण है कि जो जहानाबाद जातीय भेदभाव के लिए जाना जाता था, वहां इस मंदिर के आसपास कभी कोई जातिगत विवाद पैदा नहीं हुआ। यानी मंदिर के कारण सामाजिक विषमता दूर हो गई। बुजुर्ग राम प्रवेश शर्मा के अनुसार एक बार बिहार के तत्कालीन स्वास्थ्य मंत्री रामाश्रय प्रसाद सिंह इस मंदिर में दर्शन के लिए आए तो उन्हें यहां की सामाजिक समरसता बहुत अच्छी लगी। इस पर उन्होंने कहा कि जो काम राजनीतिज्ञ नहीं कर पाए वह इस मंदिर और यहां के महंत जी ने कर दिखाया है।

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