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पाकिस्तान का नया मंत्रिमंडल

इमरान खान की विदाई के बाद शहबाज़ शरीफ के नेतृत्व में विपक्षी गठबंधन के मुखिया के रूप में पाकिस्तान के प्रधानमंत्री बने, परन्तु शरीफ के मंत्रिमंडल का गठन एक पहेली बना हुआ था क्योंकि एक ओर गठबंधन के सहयोगियों को मंत्रिमंडल में मंत्रालयों का बंटवारा एक कठिन काम था।

एस वर्मा by एस वर्मा
Apr 20, 2022, 02:12 pm IST
in विश्व, विश्लेषण
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इमरान खान की विदाई के बाद शहबाज़ शरीफ के नेतृत्व में विपक्षी गठबंधन के मुखिया के रूप में पाकिस्तान के प्रधानमंत्री बने, परन्तु शरीफ के मंत्रिमंडल का गठन एक पहेली बना हुआ था क्योंकि एक ओर गठबंधन के सहयोगियों को मंत्रिमंडल में मंत्रालयों का बंटवारा एक कठिन काम था और जब ये निपट गया तो राष्ट्रपति अल्वी नए मंत्रिमंडल को शपथ ग्रहण कराने में आना कानी करने लगे लिहाजा यह कार्य गलवार को ऐवान-ए-सदर में सीनेट के अध्यक्ष सादिक संजरानी द्वारा संघीय कैबिनेट के सदस्यों को शपथ दिलाई गई। पाकिस्तान के इस नए मंत्रिमंडल में 31 संघीय मंत्री, तीन राज्य मंत्री और तीन सलाहकार शामिल किये गए हैं।

इस मंत्रिमंडल में पाकिस्तान मुस्लिम लीग नवाज पीएमएल-एन की ओर से ख्वाजा मुहम्मद आसिफ, अहसान इकबाल चौधरी, राणा सना उल्लाह खान, सरदार अयाज सादिक, राणा तनवीर हुसैन, खुर्रम दस्तगीर खान, मरियम औरंगजेब, ख्वाजा साद रफीक, मियां जावेद लतीफ, मियां रियाज हुसैन पीरजादा, मुर्तजा जावेद अब्बासी, आजम नज़ीर तरारी और मिफ्ताह इस्माइल शामिल किये गए हैं। वहीं, इस गठबंधन के दूसरे सर्वाधिक महत्वपूर्ण घटक पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी पीपीपी की ओर से सैयद खुर्शीद अहमद शाह, सैयद नवीद कमर, शेरी रहमान, अब्दुल कादिर पटेल, शाजिया मर्री, सैयद मुर्तजा महमूद, साजिद हुसैन तुरी, एहसान उर रहमान मजारी और आबिद हुसैन भायो को मंत्री बनाया गया है। मौलाना फजलुर्रहमान के नेतृत्व वाली जमीयत उलेमा ए इस्लाम एफ (जेयूआई-एफ) के कोटे से असद महमूद, अब्दुल वासय, मुफ्ती अब्दुल शकूर और मुहम्मद तलहा महमूद मंत्री बनाये गए हैं। मुत्ताहिदा कौमी मूवमेंट पी (एमक्यूएम-पी) के सैयद अमीन-उल-हक और सैयद फैसल अली सब्जवारी ने मंत्री के रूप में शपथ ली।

इसके साथ ही बलोचिस्तान अवामी पार्टी के मुहम्मद इसरार तरीन जम्हूरी वतन पार्टी के नवाबज़ादा शाज़ैन बुगती, पीएमएल-क्यू के तारिक बशीर चीमा भी मंत्रिमंडल में शामिल किये गए हैं। इसके साथ ही राज्य मंत्री के रूप में पीएमएल-एन की डॉ. आयशा गौस पाशा एवं अब्दुल रहमान खान कांजू तथा पीपीपी की ओर से पूर्व विदेश मंत्री हिना रब्बानी खार को तथा प्रधानमंत्री के सलाहकार के रूप में पीएमएल-एन के आमिर मुक़ाम, पीपीपी के कमर जमां कैरा तथा एक समय इमरान खान के सर्वाधिक विश्वस्त रहे जहांगीर खान तारिन के नेतृत्व में अलग हुए सदस्यों के समूह अर्थात जेकेटी ग्रुप से औन चौधरी को शामिल किया गया है।

इस जम्बो मंत्रिमंडल में सर्वाधिक समस्या घटक दलों में महत्वपूर्ण मंत्रालयों पर कब्जा जमाने में लगी होड़ के कारण आई जिसके कारण कई घटक दलों में गहरी नाराजगी व्याप्त है। अवामी नेशनल पार्टी के अध्यक्ष इसफंदयार वली खान ने इस सरकार में शामिल होने से इनकार ही कर दिया है। मंत्रालयों के बांटने में मंत्रियों की योग्यता से अधिक उनकी वफादारी को पैमाना बनाया गया है। इस मंत्रिमंडल में 20 ऐसे मंत्री शामिल हैं, जिन्हें पहली बार संघीय स्तर पर ऐसी महत्वपूर्ण जिम्मेदारी दी जा रही है। उदाहरण के लिए राना सनाउल्लाह खान जो पिछले वर्षों में पंजाब की प्रांतीय असेम्बली के सदस्य रहे, उन्हें आंतरिक मंत्रालय जैसा महत्वपूर्ण विभाग दे दिया गया है। मुफ़्ती अब्दुल शकूर जो कट्टर तकरीरों के कारन जाने जाते हैं। अब मजहबी मामलों के मंत्री बन गये हैं। भ्रष्टाचार के मालों में लिप्त पूर्व रेल मंत्री साद रफीक, एक बार फिर रेल मंत्री बनाये गए हैं।

इस मंत्रिमंडल में अनेक मंत्री ऐसे हैं जो किसी प्रभावशाली नेता के पुत्र-पुत्री या रिश्तेदार हैं। आयशा गौस पाशा पूर्व मंत्री हफीज पाशा की पत्नी हैं। मौलाना असद महमूद, मौलाना फजलुर्रहमान के पुत्र हैं तो वहीं मुर्तजा महमूद के पिता मखदूम अहमद महमूद पंजाब के गवर्नर रहे हैं। शाहजैन बुगती, बलोचिस्तान के नेता और परवेज मुशर्रफ के द्वारा चलाये गए सैन्य अभियान में मारे गए अकबर खान बुगती के पोते हैं और उनके साथ उनके चचेरे भाई अहसान उर्रहमान मजारी भी मंत्री बनाये गए हैं। हिना रब्बानी खार जो इस बार एक राज्य मंत्री के रूप में मंत्रिमंडल में शामिल की गई हैं, अपनी योग्यता से अधिक अपने परिवार और अपने संबन्धों के कारण अधिक चर्चित हैं। ऐसे और भी पारिवारिक मामले इस मंत्रिमंडल में मौजूद हैं।

इस समय जबकि पाकिस्तान अपने बदतरीन हालात का सामना कर रहा है जब उसकी साख दांव पर लगी है और ऐसे समय में आई राजनीतिक अस्थिरता ने इस परिस्थिति से निपटने के प्रयासों को कहीं न कहीं नुकसान ही पहुंचाया है। पाकिस्तान की स्थितियों का गहनता से अध्ययन करने वाले विशेषज्ञों का मानना है कि सत्ता परिवर्तन पाकिस्तान की मुसीबतों का अंत नहीं है, बल्कि कई मायनों में यह नए प्रकार की समस्याओं का आरंभ बिंदु बनने जा रहा है। देश के अर्थशास्त्री व्यापक चेतावनियां दे रहे हैं कि बढ़ती महंगाई पाकिस्तान में नई सरकार के लिए एक बड़ी चुनौती होगी और उसे इमरान खान के नेतृत्व वाली सरकार द्वारा घोषित तथाकथित आर्थिक उपायों में आमूल परिवर्तन लाना होगा। आर्थिक हालात इतने बदतर हैं कि इसका विदेशी मुद्रा भंडार घटकर 11.3 अरब डॉलर के निचले स्तर पर आ गया है और महंगाई तथा बेरोजगारी अपने सर्वोच्च स्तर पर हैं और ये अब आर्थिक से गहन राजनीतिक समस्या के रूप में परिवर्तित होने की प्रक्रिया में हैं।

इमरान खान के विरोध में एकजुट हुआ गठबंधन अब सत्ता में है और अधिकांश दल अब इस सत्ताधारी गुट के हिस्से हैं और कुछ समय के लिए शहबाज़ शरीफ के लिए यह राहत की बात हो सकती है कि अब पाकिस्तान तहरीके इंसाफ, एक अलग थलग सा शक्तिहीन विपक्ष है। परन्तु पाकिस्तान की विखंडित सी राजनीति जहां एक ओर लोकतंत्र को स्थिर नहीं होने देती और इस प्रकार सेना के लिये सत्ता में प्रवेश का द्वार लगभग खुला ही रहता है। पहले नवाज़ शरीफ और फिर इमरान खान और अब शहबाज शरीफ इन सभी को इनके कार्यकाल के आरंभ में सेना का करीबी बताया गया। यह शाहबाज़ शरीफ के लिए एक परीक्षा का समय है कि कैसे अनेकों क्षेत्रीय और राजनीतिक आकांक्षाओं के परस्पर विरोधी गठबंधन को साथ में लेकर सरकार चला पाते हैं, खासकर तब जब इसमें सत्ता में अधिकांश वे लोग ही आये हैं जो एक प्रकार से वंशानुगत विशेषाधिकारों का लाभ उठाते आये हैं और उनमें राजनीतिक परिपक्वता की कमी है। अब जबकि सत्ता प्राप्त हो गई है कुछ ही समय में इमरान खान की नाकामियों का बोझ शाहबाज़ शरीफ के सर आने वाला है और बहुत जल्द नए आमचुनाव आने वाले हैं ऐसे में कोई भी राजनीतिक दल इन नाकामियों के तले चुनाव लड़ना पसंद नहीं करेगा तब इस गठबंधन की वास्तविक परीक्षा होगी। अभी के लिए यथार्थ यह है कि कुल मिलाकर यह मंत्रिमंडल किसी भी तरह से सरकार बनाने की कोशिशों का परिणाम है और इससे गंभीर परिणामों की आशा रखना बेमानी ही होगा।

Topics: shahbaz sharifपाकिस्तान का मंत्रिमंडलPakistan CabinetPakistan Politicsपाकिस्तान की राजनीतिशहबाज शरीफpakistan newsपाकिस्तान समाचार
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