झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन राज्य के खनन मंत्री भी हैं। अपने पद का दुरुपयोग करते हुए उन्होंने पत्थर खदान का पट्टा अपने नाम ही कर लिया। विरोध हुआ तो पट्टा वापस कर दिया, लेकिन यह मामला उच्च न्यायालय से लेकर राज्यपाल तक पहुंच गया है। यदि सही तरीके से जांच हुई तो उनकी कुर्सी खतरे में पड़ सकती है।
झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन पर अपने पद का दुरुपयोग करने का आरोप लगा है। बता दें कि वे मुख्यमंत्री के साथ—साथ खनन मंत्री भी हैं। आरोप के अनुसार उन्होंने रांची जिले के अनगड़ा मौजा, थाना नंबर-26, खाता नंबर—187, प्लाट नंबर—482 में हो रहे पत्थर के खनन का पट्टा अपने नाम ही ले लिया। इस मामले का फंडाफोड़ पूर्व मुख्यमंत्री रघुबर दास ने 10 फरवरी, 2022 को प्रदेश भाजपा कार्यालय में आयोजित प्रेस वार्ता में किया था। उस दिन उन्होंने कहा था कि उपरोक्त खनन के पट्टे की स्वीकृति लेने के लिए हेमंत सोरेन 2008 से ही प्रयासरत थे।
कहा जा रहा है कि हेमंत सोरेन के मुख्यमंत्री बनने के बाद 16 जून, 2021 को पत्थर खनन की स्वीकृति के लिए सैद्धांतिक सहमति के आशय का पत्र विभाग ने जारी कर दिया। इसके बाद जिला खनन कार्यालय द्वारा 10 जुलाई, 2021 को खनन योजना की स्वीकृति दी गई। उसके बाद हेमंत सोरेन ने 9 सितंबर, 2021 को सिया (स्टेट लेबल इंवायरमेंट इंपेक्ट असेसमेंट ऑथोरिटी) को आवेदन भेजा। सिया द्वारा 15-18 सितंबर के बीच पर्यावरण स्वीकृति की अनुशंसा की गई। यानी हेमंत सोरेन ने अपने ही विभाग से अपने ही नाम से खदान का पट्टा ले लिया, जो गंभीर अपराध है। जब फरवरी, 2022 में रघुबर दास ने इस मामले को उजागर किया तो पट्टा वापस कर दिया गया।
भाजपा हुई हमलावर
अब यह मामला तूल पकड़ता जा रहा है है। पूर्व मुख्यमंत्री रघुबर दास और नेता प्रतिपक्ष बाबूलाल मरांडी ने राज्यपाल से मिलकर उन्हें एक ज्ञापन सौंपा है और इस मामले में कड़ी कार्रवाई करने की उम्मीद जताई है। भाजपा का कहना है कि यह मामला भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम, 1988 की धारा 13 (1) (डी) के तहत आपराधिक कृत्य है। इसलिए हेमंत सोरेन के खिलाफ कड़ी कार्रवाई करते हुए उन्हें तुरंत पद से बर्खास्त कर देना चाहिए।
मुख्य सचिव से मांगा जवाब
इधर भारत निर्वाचन आयोग ने मामले को गंभीरता से लिया है। बता दें कि इस मामले में झारखंड के राज्यपाल रमेश बैस ने भारत निर्वाचन आयोग से परामर्श मांगा था। इसके बाद आयोग ने झारखंड के मुख्य सचिव सुखदेव सिंह को पत्र लिखकर जवाब मांगा है। साथ ही शिकायती दस्तावेजों की सत्यता बताने को कहा गया है।
गंभीर हुआ उच्च न्यायालय
इस मामले में झारखंड उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति डॉ. रवि रंजन एवं न्यायमूर्ति एसएन प्रसाद की अदालत में एक जनहित याचिका भी दाखिल की गई है। इसके बाद न्यायालय ने कहा कि यह बहुत ही गंभीर मामला है, जहां अपने पद का दुरुपयोग किया गया है। इस पर झारखंड के महाधिवक्ता राजीव रंजन ने कहा कि 2008 में खनन का पट्टा मिला था। 2018 में पट्टा समाप्त हो गया था। इसके बाद नवीनीकरण के लिए आवेदन दिया गया था, लेकिन शर्तों को पूरा नहीं करने पर पट्टा नवीनीकरण नहीं हो पाया। फरवरी, 2022 में पट्टे को लौटा दिया गया। इस पर अदालत ने मौखिक रूप से पूछा कि क्या इसे पद का दुरुपयोग नहीं कहा जाएगा? जानकारों के अनुसार पद के दुरुपयोग का मामला सत्य साबित होता है तो मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन को विधानसभा की सदस्यता तक गंवानी पड़ सकती है। हालांकि इस मामले में न्यायालय ने सरकार से जवाब मांगा है।
दो कानूनों का उल्लंघन
जानकारों के अनुसार मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने 2 कानूनों का उल्लंघन किया है। पहला भ्रष्टाचार निरोधक कानून काऔर दूसरा जनप्रतिनिधित्व कानून का। भ्रष्टाचार निरोधक कानून के तहत कोई भी व्यक्ति अपने पद का उपयोग करते हुए खुद को आर्थिक लाभ नहीं पहुंचा सकता है। इसलिए अब ऐसे कयास लगाए जा रहे हैं कि अगर यह आरोप सही पाया गया तो उनकी कुर्सी के साथ-साथ विधानसभा की सदस्यता भी जा सकती है।
‘बन्नाबांट’ की चर्चा
अभी कुछ ही दिन पहले झारखंड के स्वास्थ्य मंत्री बन्ना गुप्ता पर भी ऐसे ही आरोप लगे थे। उन्होंने कोरोना काल में अच्छे कार्य करने वाले अपने विभाग के अधिकारियों और कर्मचारियों को कोरोना प्रोत्साहन राशि देने का निर्णय लिया। इसके साथ ही उन्होंने अपने लिए भी यह राशि स्वीकृत कर ली। इसके अंतर्गत संबंधित लोगों को एक महीने का अतिरिक्त वेतन दिया जा रहा है। कुछ लोगों को दे भी दिया गया है।
कह सकते हैं कि चाहे मुख्यमंत्री हों या फिर मंत्री अपने ही हस्ताक्षर से अपने ही लिए काम कर रहे हैं। ऐसे में राज्य के खजाने की रक्षा कौन करेगा!
दस वर्षों से पत्रकारिता में सक्रिय। राजनीति, सामाजिक और सम-सामायिक मुद्दों पर पैनी नजर। कर्मभूमि झारखंड।
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