भैया पूछो मत। हद से ज्यादा टूरिस्ट आ गए हैं। अभी लोग आ रहे हैं। सब ठीक रहना चाहिए, शांति होनी चाहिए, अमन होना चाहिए। एक-दूसरे से मुहब्बत होनी चाहिए। मिलिटेंसी (आतंकवाद) नहीं है अब इधर। पांच साल में बहुत बदलाव आया है। हम फास्ट चल रहे हैं। श्रीनगर में आटो चलाने वाले आमिर से जब हमने घाटी के बारे में पूछा तो उनका यही जवाब था।
हमें डल लेक से ट्यूलिप गार्डन की तरफ जाना था। व्यस्त डल चौक पर लोग आटो, सूमो और बस का उसी तरह इंतजार कर रहे थे, जैसे दिल्ली जैसे महानगरों में करते हैं। कोई तनाव नहीं। एक आटो को रोका और ओबेराय होटल के लिए चल दिया। कुछ दूर चलने पर आटो चला रहे आमिर से पूछा कि टूरिस्ट आ रहे हैं कि नहीं। जवाब दिया-हद से ज्यादा आ रहे हैं। काम अच्छा चल रहा है।
अलगाववादियों और कट्टरपंथियों पर चर्चा करता, उससे पहले आमिर का जवाब हाजिर था। कहा कि ऐसे भी लोग हैं जो शांति नहीं चाहते। वे लोग दंगा-फसाद करेंगे जिनके पास कोई काम नहीं होगा। उनका बिजनेस ही है दंगा-फसाद करना। जब तक यह सब नहीं होगा, तब तक उनका काम नहीं चलेगा। जो रोजगार कर रहे हैं, वे यह सब नहीं करते। ऐसे भी लोग हैं जो शांति चाहते हैं। अगर कोई बाहर का आदमी आ रहा है तो सम्मान करो। उसे प्यार दो। अपने दिल में बिठाओ। हम तेज चल रहे हैं। प्रौद्योगिकी कितनी विकसित हो गई है। हमें अब आगे चलना है।
नब्बे के दशक में घाटी में चरम पर रहे आतंकवाद की चर्चा की तो जवाब मिला कि उस समय लोगों का दिमाग कम था। जो बोला जाता था, वे वही करते थे। उस समय कोई बात करता था तो उस बात को पकड़ता था, आज ऐसा नहीं है। आज लोग एक-दूसरे की नहीं सुनते। आज प्रौद्योगिकी का समय है। उस समय तो चलता था। आज अगर मां अपनी पसंद से सब्जी बनाती है और बेटे को पसंद नहीं तो बोलता है क्या बना लिया। बाहर वाले बोलेंगे कि भाई कश्मीरी है, कश्मीरी है यह, वह गलत बात है, इससे दंगा-फसाद होता है। आज कोई तनाव नहीं। इतने में स्टॉप आ जाता है और हम आॅटो से उतरते हैं, लेकिन स्टोरी अभी बाकी है…
फख्र है कि उस धरती से हूं, जहां शंकराचार्य…
लाल चौक पर तिरंगा शान से लहराता है। शेर-ए-कश्मीर पार्क में राष्ट्रवादियों की सभाएं होती हैं। अलगाववाद और आतंकवाद के खिलाफ लोग बोलते हैं। श्रीनगर में अब पत्थर नहीं फेंके जाते। सुरक्षा से कोई समझौता नहीं। अलगाववादियों और चरमपंथियों की रीढ़ टूटी है तो सेना के शौर्य से, राष्ट्रवादी विचारों से।
शेर-ए-कश्मीर पार्क में एक कार्यक्रम में कश्मीरी लेखक जावेद बेग कहते हैं-मैं उस परिेवार का सदस्य हूं, जिसे कश्मीर कहते हैं। हमें उस सभ्यता पर बड़ा फख्र है जिसने पांच हजार साल पूरे और मुकम्मल कर लिये। हमें फख्र है कि हम एक खूबसूरत भारत का हिस्सा हैं। यह धरती जितनी जावेद बेग की है, उतनी ही उस शख्स की है जो हिंदुस्तानियत में यकीन रखने वाला हो। दुश्मनों ने कोई कसर बाकी नहीं रखी, वे आज फिर विफल हो गए जब आज यहां कश्मीरी मुसलमान और कश्मीरी हिंदू एकसाथ इस पार्क में जुटे।
हमें बड़ा दुख होता है जब कोई इस पवित्र धरती के खिलाफ होता है। हमें बड़ा दुख होता है जब हमारे ही घर से कोई हमारे लोगों को अपना न समझकर पराए लोगों के कहने पर उनके खिलाफ होता है। मैं जिस दौर से गुजरा हूं, कोई और उस दौर से न गुजरे, खासकर मेरे कश्मीरी हिंदू भाई। तीस साल में कश्मीरी मुसलमान भी मारे गए, लेकिन कश्मीरी हिंदुओं ने तो अपनी धरती खो दी। अपना आसमां खो दिया। जिसका मुझे काफी दुख है। हमें उस दिन की प्रतीक्षा है। मेरा दिल कहता है, हम अपने मोहल्लों में, अपने गांवों में एक साथ रहेंगे।
मुझे बड़ा फख्र है कि मैं जिस धरती से हूं, उस धरती पर शंकराचार्य जी हजार साल पहले नंगे पांव आए। मुझे फख्र है कि जिस पर्वत पर मखदूम साहब की जियारत है, उसी हरि पर्वत पर माता शारिका देवी जी भी हैं। उसी पर्वत पर छठी पादशाही भी है। हम क्यों न फख्र करें अपने कश्मीर पर। हमारा कर्तव्य है कि हम कश्मीर की सुरक्षा करें। कश्मीर और कश्मीरियों की रक्षा करना हमारे मजहब का एक हिस्सा होना चाहिए। जब तक आखिरी कश्मीरी हिंदू अपने घर न आ जाए, तब तक हम अधूरे हैं। हमें फख्र्र है कि हम हिंदुस्तान का हिस्सा हैं। हिंदुस्तान जिंदाबाद।
बात यहीं रुकती है, लेकिन स्टोरी अभी बाकी है…
अब कश्मीर में धड़कता है हिंदुस्तान
डॉ. संदीप मावा कश्मीरी हिंदू हैं। नब्बे के दशक में उनके पिता पर आतंकियों ने गोलियां बरसाई थीं। वर्ष 2019 में उन्हें निशाना बनाया गया था। संदीप मावा कहते हैं, ‘नब्बे के दशक में लोगों को बरगलाया गया था। उन्हें यह बताया गया था कि आप इसका विरोध करेंगे तो पाकिस्तान हमला करेगा और आप लोगों को आजाद करेंगे। यहां के लोगों का स्थानीय पार्टी ने इस्तेमाल किया। मुफ्ती, शेख जैसे एजेंट और कांग्रेस के लोगों ने प्रायोजित तरीके से उन्हें इस्तेमाल किया। जब पाकिस्तान से बांग्लादेश को अलग किया गया तो उसी वक्त पाकिस्तान ने ब्लीड इंडिया पॉलिसी (Bleed India with a Thousand Cuts) बनाई। उसमें यह कहा गया कि हम तो हिन्दुस्तान को नहीं हरा पाएंगे पर हिन्दुस्तान में हजार चीरे लगाकर उसे दर्द दे सकते हैं।’ मावा तल्ख लहजे में कहते हैं, ‘धीरे-धीरे फारुख अब्दुल्ला, मुफ्ती ने उसका समर्थन किया। 1986 में इसकी पहली झलकी निकली। उसके बाद 1990 में हुर्रियत, पाकिस्तान, नेशनल कॉन्फ्रेंस की मदद से कश्मीरी हिंदुओं को कश्मीर से भगाया गया। कुछ को मरवाया गया और घाटी में जो राष्ट्रवादी मुसलमान थे, जो देश के साथ थे, उनको मारा गया।’
अक्टूबर 1990 में मेरे पिताजी को चार गोलियां मारी गयी थीं। भगवान की कृपा है कि वो बचे हुए हैं और अच्छा जीवन व्यतीत कर रहे हैं। 2019 में मैंने फिर सोचा कि कश्मीर अपने वतन जाऊं। पहले तो बहुत मदद मिली। लेकिन, जो देश के खिलाफ और आपस में फूट डलवाने वाले लोग हैं और आपको जानकर हैरानी होगी कि 8 नवंबर, 2021 को मुझ पर कातिलाना हमला हुआ, जिसमें चार गोलियां मेरे भाई सरीखे सहयोगी इब्राहिम को लगीं क्योंकि रात को मेरी गाड़ी लेकर चला गया था। शायद उनको लगा होगा कि गाड़ी में मैं हूं जिनके कारण मेरा वह भाई मारा गया।
अलगाववादियों से आपको डर नहीं लगता? इस सवाल पर संदीप मावा ने कहा- देखिए मैं भगवद्गीता को मानने वाला हूं। उसमें लिखा है कि जीवन के लिए जितनी सांसें हैं, वह पहले ही लिखी होती हैं। जब मरना होगा तो जरूर मरेंगे, बचना होगा तो जरूर बचेंगे। मारने वाले और बचाने वाले सिर्फ श्रीराम हैं।
घाटी लौटना चाहते हैं कश्मीरी हिंदू, लेकिन…
कश्मीरी हिंदुओं से जब हमने बात की तो उन्होंने कहा कि नब्बे का दौर बहुत बुरा था। हमारा सबकुछ छिन गया। हमसे हमारी मां की गोद छीन ली गई। अब हम वह दौर दोबारा नहीं देखना चाहते। कश्मीरी हिंदू घाटी में बसना चाहते हैं, लेकिन अलग जगह। उनके लिए अलग व्यवस्था हो, अलग कॉलोनी हो, जिससे कि वे अपने को सुरक्षित महसूस कर सकें।
आतंकी बिट्टा कराटे ने कश्मीरी हिंदुओं की हत्या की थी। उसने कैमरे के सामने भी यह बात स्वीकार की थी। उसके खिलाफ भी संदीप मावा मोर्चा खोले हुए हैं। वह कहते हैं कि हमने लाल चौक पर बिट्टा का पुतला फूंका था। वो जेल में है। हमने सरकार के सामने तीन मांगें रखी हैं। पहली बिट्टा कराटे का केस खोला जाए, दूसरा अल्पसंख्यक और बहुसंख्यक के बीच फसाद कराने वाली देशविरोधी ताकतों, जो सरकार में थीं, उनको दंडित किया जाए और तीसरा जो मुसलमान कश्मीरी हिंदुओं के साथ थे, जिन्हें मारा गया, उनके लिए कमीशन बनाया जाए।
आपको जानकर खुशी होगी- इसमें दो मांगें पूरी हुर्इं। अब कमीशन की मांग बची है। इसकी अंतिम तिथि हम लोगों ने 19 अप्रैल रखी है। अगर इस समय तक हमारी बात नहीं मानी गई, तो 20 अप्रैल से हम लोग आमरण अनशन करेंगे। अनुच्छेद 370 हटने के बाद आपने क्या बदलाव देखा? इस पर संदीप मावा कहते हैं कि आज जो बदलाव हुआ, वह यह है कि कश्मीर हिंदुस्तान बन गया। आज हम खुलेआम बिट्टा कराटे का पुतला फूंक रहे हैं। हिंदुस्तान का झंडा इस समय लाल चौक पर लहरा रहा है। इससे पहले तो आप सोच नहीं सकते थे, 370 हटने से पहले।
बदल रहा है नैरेटिव : ताबिश बुखारी
घाटी के हालात पर जब स्थानीय पत्रकार और बुलंद आवाज के एडीटर इन चीफ ताबिश बुखारी से बात की तो उन्होंने कहा कि कश्मीरी हिंदुओं को लेकर हमने क्लियर स्टैंड लिया है। नब्बे के दशक में जो हुआ, वह मैंने सुना है, फितूर सारा पाकिस्तान का था। मेरे भाई शुजात बुखारी की भी हत्या हुई है। वह राइजिंग कश्मीर के एडीटर थे। उनको धमकी मिली। महबूबा मुफ्ती ने उनको मिली धमकी पर गौर नहीं किया। गौर होता तो वह आज हमारे बीच होते। जो मुसलमान राष्ट्र के बारे में सोचते हैं, राष्ट्र के लिए समर्पित हैं, राष्ट्रवादी हैं, उन्हें सुरक्षा मिलनी चाहिए। कश्मीरी हिंदुओं पर हमारा रुख स्पष्ट है। वह कहते हैं कि सबसे पहले है देश और सबसे बड़ा धर्म है इंसानियत। इसके बाद वह धर्म है जिस पर आप यकीन करते हो।
संदीप मावा कहते हैं कि आज जो बदलाव हुआ, वह यह है कि कश्मीर हिंदुस्तान बन गया। आज हम खुलेआम बिट्टा कराटे का पुतला फूंक रहे हैं। हिंदुस्तान का झंडा इस समय लाल चौक पर लहरा रहा है। इससे पहले तो आप सोच नहीं सकते थे, 370 हटने से पहले
ताबिश बुखारी कहते हैं कि आज दहशतगर्दों की रीढ़ की हड्डी टूट चुकी है। राष्ट्रवादी मुसलमान सामने आने लगे हैं। वे देश के लिए बोलते हैं। नरेटिव चेंज हो रहा है। वह कहते हैं कि और लोग भी साथ हैं, लेकिन खतरा होने की वजह से खुलकर सामने नहीं आ रहे हैं। कश्मीर में राष्ट्रवादी मुसलमानों की सुरक्षा का भी ध्यान रखा जाना चाहिए। घाटी में राष्ट्रवाद जितना मजबूत होगा, आतंकवादियों की कमर उतनी ही टूटेगी।
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