विजय नगरकर
महाराष्ट्र के संगमनेर शहर में हनुमान जन्मोत्सव धूमधाम से मनाया जाता है। इस कार्यक्रम की एक विशेषता यह है कि हनुमान जी का रथ खींचने का मान महिलाओं को प्रदान किया जाता है। सभी महिलाएं हनुमान जन्मोत्सव के अवसर पर संगमनेर के हनुमान मंदिर में रथ उत्सव हेतु एकत्रित होती हैं। इस परंपरा की पीछे एक ऐतिहासिक कहानी है।
बैरियर लाए थे अंग्रेज
संगमनेर के चंद्रशेखर चौक स्थित हनुमान मंदिर से जन्मोत्सव के दिन हनुमान जी का रथ निकालने की परंपरा कई वर्षों से चली आ रही है। हालांकि अंग्रजों के समय वर्ष 1927 से 1929 तक तीन वर्षों की अवधि के दौरान तत्कालीन ब्रिटिश सरकार ने विभिन्न कारणों से इस उत्सव में बाधा डाली। 23 अप्रैल 1929 को अलसुबह ब्रिटिश पुलिस ने चंद्रशेखर चौक को पुलिस छावनी में तब्दील कर दिया था। आदेश के अनुसार हनुमान रथ यात्रा पर रोक लगा दी। संगमनेर के निवासी बहुत दुःखी थे। उन्हें लग रहा था कि यह प्राचीन धार्मिक परंपरा खंडित हो जाएगी। कुछ लोग इस परंपरा को अखंड रखना चाहते थे।
हनुमान जयंती के प्रातः काल में एक क्रांतिकारक घटना हुई। अंग्रेजों के दबाव के बावजूद एक धर्मपरायण महिला झुंबराबाई अवसाक (शिंपी) ने पुलिस की अनदेखी की। बड़ी हिम्मत करके रथ में हनुमान जी की मूर्ति स्थापित करके अकेले रथ खींच कर बाहर रास्ते पर ले आयी। उसकी यह हिम्मत देखकर उत्साहित होकर अन्य महिलाओं ने ‘ जय श्रीराम ‘ ‘जय बजरंग बली ‘ का नारा देकर सहभाग लिया। उस समय पुलिस बल के पास रथ यात्रा पर नजर रखने के अलावा कोई चारा नहीं था। तभी से इस वार्षिक उत्सव में महिलाओं को हनुमान जी के जन्म उत्सव में निकलने वाले इस प्राचीन रथ को खींचने का पहला सम्मान दिया जाता है। पिछले दो वर्षों से कोविड संक्रमण के चलते यह पर्व साधारण और केवल औपचारिक रूप से मनाया जाता रहा है। लेकिन शनिवार सुबह यह ऐतिहासिक रथ उत्सव शुरू हो गया। इस कार्यक्रम में केंद्रीय स्वास्थ्य राज्य मंत्री डॉ. भारती पवार, भाजपा नेता चित्रा वाघ, पूर्व जिला परिषद अध्यक्ष शालिनी विखे पाटिल, संगमनेर नागराध्यक्षा दुर्गा तांबे समेत कई महिलाओं ने इस ऐतिहासिक रथ को खींचा।
(लेखक भाषाविद् हैं)
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