हाल ही में संपन्न पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों में कांग्रेस को मिली हार के नतीजे दूसरे राज्यों में भी दिखने लगे हैं। कुछ राज्यों में संभावित भगदड़ के संकेत मिल रहे हैं। महाराष्ट्र और झारखंड में इसकी सुगबुगाहट है। खासतौर से महाराष्ट्र से किसी भी समय बड़े राजनीतिक-परिवर्तन की खबर आ जाए, तो हैरत नहीं होगी। कहीं न कहीं कुछ पक रहा है। एक तरफ शिवसेना, राकांपा और कांग्रेस के महाविकास अघाड़ी के बीच दरार बढ़ी है, वहीं तीनों पार्टियों के भीतर से भी खटपट सुनाई पड़ने लगी है।
सबसे बड़ा असमंजस कांग्रेस के भीतर है। पार्टी के विधायकों का एक दल अप्रैल के पहले हफ्ते में हाईकमान से मिलने दिल्ली आया। सूचना थी कि विधायकों की 3 या 4 अप्रैल को हाईकमान से मुलाकात होगी।
इन पंक्तियों के लिखे जाने तक विधायकों की मुलाकात पार्टी के वरिष्ठ नेता मल्लिकार्जुन खड़गे और महासचिव केसी वेणुगोपाल से हुई भी है। उस मुलाकात की जानकारी नहीं है। ये विधायक सोनिया गांधी या राहुल गांधी से मिलने के इच्छुक बताए जाते हैं। यह मुलाकात होगी या नहीं, यह भी स्पष्ट नहीं है। दिल्ली आए विधायकों ने एक टीवी चैनल से कहा, ‘‘सोनिया गांधी से मुलाकात के बाद ही सनसनीखेज खुलासे होंगे।’’ उधर, पार्टी का शीर्ष नेतृत्व तमाम संगठनात्मक गतिविधियों से घिरा है। कुछ और राज्यों से भी असंतोष की खबरें हैं। हालांकि शीर्ष नेतृत्व ने जी-23 के नेताओं से भी संवाद शुरू किया है। दूसरी तरफ लगता है कि सुनवाई नहीं हुई, तो महाराष्ट्र का असंतोष मुखर होता जाएगा।
गत 10 मार्च को विधानसभा चुनाव परिणाम आने के कुछ दिन बाद राकांपा के राज्यसभा सदस्य मजीद मेमन ने एक ट्वीट में लिखा कि पीएम मोदी में कुछ गुण होंगे या उन्होंने कुछ अच्छे काम किए होंगे, जिसे विपक्षी नेता ढूंढ़ नहीं पा रहे हैं। उनकी यह टिप्पणी ऐसे समय में आई थी, जब नवाब मलिक की गिरफ्तारी को लेकर उनकी पार्टी और केंद्र सरकार के बीच तलवारें तनी हुई थीं। मजीद मेमन वाली बात तो आई-गई हो गई, पर अघाड़ी सरकार के भीतर की कसमसाहट छिप नहीं पाई।
पार्टी के 25 विधायक गठबंधन सरकार से नाराज तो हैं ही, उनकी और भी शिकायतें हैं, जिन्हें लेकर उन्होंने पार्टी अध्यक्ष सोनिया गांधी को चिट्ठी भी लिखी है। हाईकमान से अपनी बात कहने के लिए वे दिल्ली आए भी, पर उनकी मुलाकात वास्तविक हाईकमान से नहीं हो पाई। इससे उनकी निराशा बढ़ी है।
कांग्रेस के नेता दबे-छुपे पंजाब और उत्तर प्रदेश में पार्टी की दुर्दशा देखकर परेशान हैं और उन्हें लगने लगा है कि यहां अब और रुकना खतरे से खाली नहीं है। उनका विचार है कि 2024 के विधानसभा चुनाव तक अघाड़ी बना भी रहा, तो वह सफल नहीं होगा। इसलिए उन्होंने विकल्प की तलाश शुरू कर दी है। इन विधायकों का कहना है कि राज्य में जब अघाड़ी सरकार बनी थी, तब मंत्रियों को यह जिम्मेदारी दी गई थी कि वे विधायकों की बातों को सुनें। हर मंत्री के साथ तीन-तीन विधायक जोड़े गए थे। विधायकों का कहना है कि यह व्यवस्था हुई भी होगी, तो हमें पता नहीं।
अलबत्ता, सरकार बनने के ढाई साल बाद एक मंत्री एचके पाटील ने जब तीन विधायकों के साथ बैठक की, तब इस व्यवस्था की जानकारी शेष विधायकों को हुई। पार्टी के 25 विधायक गठबंधन सरकार से नाराज तो हैं ही, उनकी और भी शिकायतें हैं, जिन्हें लेकर उन्होंने पार्टी अध्यक्ष सोनिया गांधी को चिट्ठी भी लिखी है। हाईकमान से अपनी बात कहने के लिए वे दिल्ली आए भी, पर उनकी मुलाकात वास्तविक हाईकमान से नहीं हो पाई। इससे उनकी निराशा बढ़ी है।
दिल्ली महाराष्ट्र के इस शक्ति प्रदर्शन का केंद्र बनती दिखाई पड़ रही है। राकांपा प्रमुख शरद पवार भी दिल्ली पहुंचे हैं। उन्होंने अघाड़ी के सांसदों व विधायकों को रात्रिभोज पर बुलाया। हालांकि इस मेल-मुलाकात को स्थानीय राजनीति से न जोड़कर कहा गया कि यह गतिविधि भाजपा विरोधी राष्ट्रीय मोर्चा बनाने की प्रक्रिया का अंग है। लेकिन इसके पीछे भाजपा और महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना के बीच अचानक सम्पर्क बढ़ने के कारण चिंता है।
शायद असली चिंता अघाड़ी सरकार पर आसन्न खतरे को लेकर है। मनसे प्रमुख राज ठाकरे के बयानों और केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी की मुलाकात ने पर्यवेक्षकों का ध्यान खींचा है। कुछ निर्दलीय और छोटे दलों ने भी भाजपा से सम्पर्क साधा है। उधर, कोल्हापुर जिले की उत्तरी विधानसभा सीट पर 12 अप्रैल को होने वाले उपचुनाव परिणाम का इंतजार भी है। इस चुनाव में कांग्रेस ने दिवंगत विधायक चंद्र्रकांत जाधव की पत्नी जयश्री जाधव को उम्मीदवार बनाया है, जिनका मुकाबला भाजपा के सत्यजीत कदम से है। इस चुनाव में कांग्रेस की संगठन-क्षमता का परीक्षण भी होगा।
2 अप्रैल को मुंबई के शिवाजी पार्क की गुड़ी पड़वा रैली में राज ठाकरे द्वारा अघाड़ी की कड़ी आलोचना के बाद से पर्यवेक्षकों की निगाहें इस तरफ गई हैं। इस भाषण के बाद ही नितिन गडकरी की 3 अप्रैल को राज ठाकरे से उनके आवास पर मुलाकात हुई। हालांकि राज ठाकरे की पार्टी के पास एक ही विधायक है, पर राज्य की मराठा-राजनीति में उनकी अच्छी पैठ है। शिवसेना और राकांपा के कुछ विधायक उनके सम्पर्क में हैं। उधर, केंद्रीय राज्य मंत्री रावसाहेब दानवे ने कहा कि अघाड़ी के 25 विधायक भाजपा के सम्पर्क में हैं। उन्होंने यह नहीं बताया कि किस पार्टी के नेताओं ने सम्पर्क किया है, किन्तु यह संकेत जरूर किया कि ये सरकार में अपनी उपेक्षा से नाराज हैं। ज्यादातर मानते हैं कि शिवसेना और राकांपा सरकार के भीतर और बाहर भी हावी हैं।
गठबंधन में सिर्फ कांग्रेस के नेता ही नाराज नहीं हैं। शिवसेना के पास मुख्यमंत्री पद होने के बावजूद उसके नेता भी नाराज हैं। यह नाराजगी राकांपा से है। गत 22 मार्च को शिवसेना के सांसद श्रीरंग बारने ने कहा था कि सबसे ज्यादा फायदा शरद पवार की राकांपा ने उठाया है। नेतृत्व करने के बावजूद शिवसेना को नुकसान उठाना पड़ रहा है। शिवसेना विधायक तानाजी सावंत ने भी ऐसी ही बात कही थी।
अघाड़ी को 170 विधायकों का समर्थन प्राप्त है, जबकि बहुमत के लिए 145 सदस्यों की जरूरत है। 2019 विधानसभा चुनाव में भाजपा-शिवसेना का गठबंधन था। भाजपा (105) और शिवसेना (56) गठबंधन को स्पष्ट बहुमत भी मिला, पर मुख्यमंत्री पद को लेकर शिवसेना ने अड़ंगा लगा दिया। अंतत: शरद पवार की पहल पर अघाड़ी की सरकार बनी। यदि कांग्रेस के 25 विधायक पाला बदलते हैं, तब भी भाजपा के पास 130 विधायक होंगे, जो बहुमत से 15 कम हैं। निर्दलीय तथा छोटे दलों के 25 विधायकों को भाजपा अपनी तरफ करने में कामयाब होती है तो राजग के पास 155 विधायक हो जाएंगे। बहरहाल, इस गणित और दल-बदल कानून की पेचीदगियों को लेकर कई तरह की बातें हवा में हैं।
पर्यवेक्षक इतना जरूर मानते हैं कि अघाड़ी सरकार की दरारें नजर आने लगी हैं। कर्नाटक और मध्य प्रदेश में जिस तरह से सरकारें बदली हैं, वैसा यहां भी सम्भव है, पर दल-बदल कानून के तोड़ निकालने होंगे। भाजपा के सामने तत्काल सत्ता में वापस आने की तुलना में भविष्य के गठबंधन की रूपरेखा बनाने का लक्ष्य ज्यादा महत्वपूर्ण है। राज्य में विधानसभा चुनाव अक्तूबर 2024 में होंगे, पर उससे पहले पार्टी अप्रैल-मई 2024 के लोकसभा चुनाव की रणनीति को सुनिश्चित कर लेना चाहेगी।
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