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कश्मीर लाइव : नया कश्मीर बनाने निकले हैं, चाहे गोली ही क्यों न खानी पड़े

घाटी में हमने सरपंचों से बात की। आतंकियों और कट्टरपंथियों के हमले के बीच वे कैसे काम करते हैं, इसको लेकर उन्होंने एक मुलाकात में अपनी बात हमसे साझा की।

Sudhir Kumar Pandey and Shivam Dixit by Sudhir Kumar Pandey and Shivam Dixit
Apr 6, 2022, 05:10 pm IST
in भारत, जम्‍मू एवं कश्‍मीर
पाञ्चजन्य से बात करते सरपंच विजय रैना

पाञ्चजन्य से बात करते सरपंच विजय रैना

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This entry is part 2 of 5 in the series कश्मीर में पाञ्चजन्य

धारा 370 हटने के बाद कश्मीर में बड़ा बदलाव हुआ है। ग्रामीण स्तर पर सरपंचों को खुलकर काम करने की आजादी है। वे विकास कार्य कर भी रहे हैं, इसलिए आतंकियों से जान का खतरा भी रहता है। घाटी में हमने सरपंचों से बात की। आतंकियों और कट्टरपंथियों के हमले के बीच वे कैसे काम करते हैं, इसको लेकर उन्होंने एक मुलाकात में अपनी बात हमसे साझा की।

कुलगाम जिले के चौगाम (ए) के सरपंच विजय रैना कहते हैं कि जब से हिन्दुस्तान आजाद हुआ तब से 2019 तक जो भी यहां पर कार्य हुए हैं, उससे आप समझ सकते हैं कि वे बिल्कुल लोगों की जेबों में गये है। यहां जितने भी बड़े नेता थे चाहे वह अब्दुल्ला खानदान हो, चाहे मुफ्ती खानदान हो, ये सारे के सारे लूट-खसोट वाले थे। जो भी काम होता था वह उनके घरों में होता था, जमीनी स्तर पर कुछ नहीं दिखता था। लेकिन, अगस्त 2019 के बाद काफी बदलाव आया है। ढाई साल में गांव-गांव में विकास कार्य हो रहे हैं। हमारी पंचायत में लगभग एक करोड़ आता है, उससे ज्यादा यहां विकास कार्य हो रहा है।

अगर घाटी के माहौल की बात करें तो वाकई अभी घाटी बिल्कुल शांत नहीं है। टारगेट किलिंग हो रही है। कश्मीर में अभी ऐसे तत्व हैं जो 70 साल से यहां लूटमार कर रहे थे। उन लोगों की एक तरह से यहां दादागीरी चलती थी। अब शक्ति उनके हाथ से छिन गई है। हमारी जो पंचायतें हैं उसको सरकार ने इतना शक्तिशाली किया है, जिसमें एक सरपंच ग्राम सभा करते हैं। गांव वाले ही काम को देखते हैं। उसका निरीक्षण हम ही करते हैं, और अंत में भुगतान हम ही कर रहे हैं। हमारे हाथ में ही अधिकार हैं, जिसके कारण उन तत्वों को बहुत बड़ा झटका लगा है। यहां के जो अधिकारी थे उनको धमकाकर, बहला-फुसलाकर एवं बंदूक दिखाकर उनको इतना मजबूर कर दिया जाता था, जिसके कारण उनके साथ मिलना पड़ता था क्योंकि उनकी जान का खतरा होता था। हमें भी जान का खतरा है, लेकिन देश सेवा के लिए जब प्रधानमंत्री 24 घंटे काम कर सकते हैं तो हम क्यों नहीं कर सकते। नया कश्मीर बनाने में हम अपना योगदान दे रहे हैं चाहे गोली ही क्यों न खानी पड़े।

घाटी में राष्ट्रवाद और अलगाववाद की चर्चा करने पर विजय रैना कहते हैं- देखिए, ये पिछले 70 साल का नासूर है जो कूट-कूट कर भरा गया था। यहां की स्कूल बुक में भी ऐसा ही था। मदरसों में पढ़ाया जाता था। देशविरोधी भावना बच्चों में भरी जाती थी। लेकिन पिछले 3 साल से यहां का युवा देख रहा है कि उसने क्या खोया और यहां पर 3 साल पहले क्या होता था? पत्थरबाजी होती थी। गोलियां चलती थीं। मारे जाते थे और कुछ दो-तीन घरानों के जो राजनीति में थे उनके इशारों पर ये सब होता था। लेकिन पिछले 3 सालों से पत्थरबाजी बंद है। लोगों को यहां आने में डर लगता था, अब ये डर समाप्त हो चुका है। यहां के युवा हमारे साथ जुड़े हुए हैं। विद्यालय का निजाम बदला गया है। यहां देशभक्ति की टेक्स्ट बुक आ रही है। यहां के लोग देख रहे हैं कि पहले यहां पत्थरबाजी वगैरह होती था उसे कुछ हासिल नहीं हो पाया है। आज उनके हाथ में कम्प्यूटर दिया गया है। कलम उनके हाथ में है। आज पढ़ाई कर रहे हैं। उन्हें हर तरह की सहूलियत दी जा रही है। पहले उनकी दिशा गलत थी। आज सकारात्मक दिशा में काम हो रहा है।

आज पंचायतें काम कर रही हैं। चाहे गांव को शहर से जोड़ने की बात हो, पानी, बिजली हो या फिर इंटरनेट की सुविधा। दूर-दराज के गांवों में भी अब सुविधा मिलेगी। प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना तहत पक्की सड़क मिलेगी। स्कूल से लेकर आंगनबाड़ी के तहत देने वाले आहार की पूरी सुविधा उपलब्ध करायी जा रही है। उद्योग से लेकर टूरिज्म को विकसित किया जा रहा है। मेडिकल कॉलेज खुल रहे हैं, जिससे यहां के युवा को भविष्य में सुनहरा मौका मिलने वाला है। पहले जो युवा पत्थर फेंकते थे, वही आज रोजगार की ओर बढ़ रहे हैं। विजय रैना अपनी वाणी को यहीं विराम देते हैं, लेकिन स्टोरी अभी बाकी है…

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Topics: Jammu and Kashmir News
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