तीस्ता जावेद सितलवार, शेहला राशिद और राणा अयूब में वैसे तो कई बातें एक जैसी हैं लेकिन सबसे महत्वपूर्ण बात तीनों पर लगे चंदाखोर होने का आरोप है। तीस्ता ने गुजरात दंगों की लाश का कफन बेचकर पैसा कमाया। वह लाशों का एक संग्राहलय बनाना चाहती थी। उसके नाम पर पैसे भी इकट्ठे हुए। उसका सपना पूरा नहीं हुआ लेकिन पैसे इकट्ठे हो गए। अब इस बात को लंबा अर्सा गुजर गया, पैसे पता नहीं कहां गए?
शेहला ने एक बलात्कार पीड़िता की हत्या के बाद उसके परिवार के लिए पैसे इकट्ठे किए। वह पैसा परिवार तक नहीं पहुंचा। पैसों के हेरफेर का आरोप पीड़ित परिवार ने ही लगाया था। शेहला के अब्बा अब्दुल रशीद शौरा ने बेटी शेहला राशिद से अपनी जान का खतरा होने की बात भी दो साल पहले कही थी और बेटी पर देशद्रोही गतिविधियों में शामिल होने तक का आरोप लगाया था।
इन तीनों में इन दिनों राणा अयूब सबसे अधिक चर्चित किरदार हैं। एक अप्रैल को उन्हें प्रवर्तन निदेशालय के कार्यालय में पेश होने को कहा गया था और वह 29 मार्च को देश छोड़कर लंदन जा रही थी। ईडी की तरफ से चंदाखोर राणा के खिलाफ जारी लुक आउट सर्कुलर के मद्देनजर उन्हें मुंबई अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे पर विदेश जाने से रोक दिया गया। केंद्रीय जांच एजेंसी राणा के खिलाफ मनी लॉन्ड्रिंग के एक मामले में उससे पूछताछ करना चाहती है और उनका बयान दर्ज करना चाहती है। राणा ने ईडी के नोटिस का पालन नहीं किया और वह देश छोड़ कर जाने की कोशिश कर रही थी। यदि वह भारत छोड़कर चली जाती है तो इससे जांच में और बाद में अदालत में आरोप पत्र दाखिल करने में देरी हो सकती है।
पिछले ही महीने मनी लॉन्ड्रिंग मामले मेंं प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने चंदाखोरी की आरोपी राणा अयूब के 1.77 करोड़ रुपए जब्त किए थे। उन पर आरोप है कि उन्होंने समाज कल्याण के लिए जुटाए गए पैसों में धोखाधड़ी की है। उन्होंने सारा पैसा ऑनलाइन क्राउडफंडिंग प्लेटफॉर्म केटो (Ketto) पर इकट्ठा किया था। रुपये जब्त किए जाने के बाद ईडी अधिकारियों ने कहा कि तीन अभियानों के लिए मिले चंदा का इस्तेमाल राणा द्वारा सही उद्देश्य के लिए नहीं किया गया था।
भारत की निष्पक्ष एजेन्सी ईडी की राणा अयूब चंदा खोरी मामले पर जांच में कुछ दिनों पहले संयुक्त राष्ट्र-जिनेवा का हस्तक्षेप अजीब था। उसका बयान संयुक्त राष्ट्र की गरिमा को गिराने वाला था। बयान था कि भारत में राणा का न्यायिक उत्पीड़न किया जा रहा है। इसे तुरंत समाप्त किया जाना चाहिए। भारत ने इस मुद्दे पर अपना दो टूक उत्तर जिनेवा भिजवा दिया। भारत की ओर से कहा गया कि ''भारत के अंदर कानून का राज है और कोई भी इससे ऊपर नहीं है।''
वैसे यह दौर ही मानो ऐसी गरिमाओं के ढहने का है। टाइम मैगजीन पिछले साल चन्द्रशेखर को भारत से दुनिया के उभरते हुए 100 लोगों की सूची में शामिल करता है। जिस सूची में भारत से सिर्फ पांच लोग शामिल थे और राजनीति से चन्द्रशेखर अकेले थे। टाइम मैगजीन के उभरते हुए सर्वश्रेष्ठ नेता उत्तर प्रदेश के चुनाव में अपनी जमानत तक नहीं बचा पाए। ऐसे में सवाल उठता है कि संयुक्त राष्ट्र और टाइम मैगजीन जैसी संस्थाओं की राजनीति क्या है?
बात राणा अयूब की करें तो बीते दो तीन सालों में देश पर कोई ऐसा संकट नहीं गुजरा, जिसके नाम पर उन्होंने पैसे ना खाएं हो। कोरोना से लेकर झुग्गी झोपड़ी और किसानों की मदद तक के लिए राणा अयूब ने पैसे इकट्ठे किए। अयूब ने जमकर नकली बिल बनवाएं और चंदा के पैसों को खुद पर इस्तेमाल किया। उन्होंने 2,69,44,680 रुपए का जो चंदा इकट्ठा किया था, वह पैसा बहन और अब्बा के बैंक खातों में डाल दिया। इसमें से 72 लाख रुपए उसके अपने बैंक खाते में पहुंच गए। बहन इफ्फत शेख के खाते में 37 लाख और अब्बा मोहम्मद अयूब वक्फ के बैंक खाते में डेढ़ करोड़ से भी अधिक रुपए डाले गए। बाद में बहन और अब्बा के खातों से सारी धनराशि राणा के खातों में डाल दी गई। राणा ने ईडी के पास इकट्ठा हुए चंदे में से सिर्फ 31 लाख रुपए के खर्च का हिसाब दिया है। दिलचस्प यह है कि राणा अयूब ने जो लेन-देन की बही प्रस्तुत की है, वहां सिर्फ साढ़े 17 लाख रुपयों का ही खर्च दिखाई पड़ता है। अब एक अप्रैल को राणा ईडी के सामने अपनी सफाई में क्या कहती है, यह देखना दिलचस्प होगा
टिप्पणियाँ