उत्तर प्रदेश में अगरा से 12 किलोमीटर दूरी पर स्थित है गांव शम्साबाद। यहां विदेश से आकर दो भाई जैविक खेती कर रहे हैं। बड़े भाई ऋषभ गुप्ता ने बिट्स पिलानी दुबई कैम्पस से बी.टेक, जबकि छोटे भाई आयुष गुप्ता ने एमिटी यूनिवर्सिटी से बीबीए की पढ़ाई की है। पढ़ाई के बाद ऋषभ दुबई में नौकरी करने लगे। वहीं, आयुष आगे की पढ़ाई के लिए लंदन और न्यूयॉर्क गए। आयुष ने लंदन में पढ़ाई के दौरान लॉर्ड पॉल की कंपनी में इंटर्नशिप की। इस दौरान उनकी मुलाकात लॉर्ड पॉल से हुई। उन्होंने बातचीत में आयुष को जैविक खेती का सुझाव दिया। इस बीच, दुनिया कोरोना महामारी की चपेट में आ गई। दोनों भाई देश लौट आए। वे देश में ही कुछ करना चाहते थे। लिहाजा, संभावनाएं तलाशने लगे।
इसी बीच, उनके दादा जी का देहांत हो गया। वे किसान थे और क्षेत्र के दूसरे किसानों की तरह आलू-गोभी उगाते थे। चूंकि दोनों भाइयों के पास खेत थे, इसलिए काफी सोच-विचार के बाद उन्होंने जैविक खेती करने का मन बनाया। इसके लिए दोनों ने हरियाणा में घरौंडा स्थित इंडो-इज्राएल केंद्र में चार दिन का प्रशिक्षण लिया। इसके बाद गांव में अपने एक एकड़ खेत में पौलीहाउस (ग्रीन हाउस) लगाने की योजना बनाई। इसके लिए उन्हें लगभग 50 लाख रुपये की जरूरत थी। लेकिन इसमें उन्हें कोई परेशानी नहीं हुई, क्योंकि प्रशिक्षण के बाद सरकार से उन्हें जो प्रमाण-पत्र मिला था, उसके आधार पर बैंक से पैसा मिल गया। साथ ही, ग्रीन हाउस लगाने के लिए केंद्र सरकार से 50 प्रतिशत सब्सिडी भी मिल गई।
अब दोनों अपने पौली हाउस में खीरा, ब्रोकली, करेले उगा रहे हैं। एक एकड़ में एक बार में 45 से 50 टन खीरा पैदा होता है। वे साल में तीन फसलें उगाते हैं और खुद ही अपने उत्पाद की मार्केटिंग करते हैं और मंडी में भी उत्पाद बेचते हैं। ऋषभ कहते हैं कि बाजार में जैविक उत्पादों की मांग अच्छी है, लेकिन स्थानीय लोगों में इसके प्रति उतनी जागरूकता नहीं है। उन्हें लगता है कि देसी खीरा उन्हें काफी सस्ता मिल जाता है तो उनका महंगा खीरा क्यों खरीदें। वहीं, दिल्ली जैसे बड़े शहरों में चूंकि लोग स्वास्थ्य के प्रति अधिक सजग हैं, इसलिए वे जैविक उत्पाद के महत्व को समझते हैं। इसे देखते हुए उन्होंने दिल्ली की मंडी में अपने उत्पाद बेचना शुरू किया।
आर्गेनिक फार्म नाम से अपने उत्पाद की बिक्री करते हैं। खीरे के अलावा गुलाब और लाल-पीली शिमला मिर्च की खेती में भी अच्छा मुनाफा है। शिमला मिर्च की फसल आठ महीने में तैयार होती है और इससे 30-35 लाख रुपये की आमदनी हो सकती है। ऐसा नहीं है कि दोनों केवल अपने काम तक ही सीमित हैं। वे क्षेत्र के किसानों को भी जैविक खेती के लिए प्रेरित कर रहे हैं। |
लाभ की दृष्टि से देखें तो करीब 12 लाख रुपये की फसल पर उन्हें 8 लाख रुपये की बचत होती है। मतलब, साल में तीन फसल उगाने पर आसानी 25 से 30 लाख रुपये की आमदनी हो जाती है। यानी पौली हाउस लगाने पर जो खर्च आया, वह एक साल के अंदर वसूल हो गया। वहीं, इस इलाके के किसान एक एकड़ में आलू या गेहूं की खेती कर करीब 60,000 रुपये से लेकर एक लाख रुपये तक ही कमा पाते हैं। ऋषभ बताते हैं कि अब वे एग्रो फार्मिंग के क्षेत्र में जाना चाहते हैं। उनकी योजना मशरूम की खेती करने की है। इसमें वे प्रतिदिन करीब 1.2 टन मशरूम उगा सकते हैं।
आयुष उत्पाद को बाजार तक पहुंचाने और वित्त की व्यवस्था की जिम्मेदारी संभालते हैं। दोनों भाई गुप्ता आर्गेनिक फार्म नाम से अपने उत्पाद की बिक्री करते हैं। खीरे के अलावा गुलाब और लाल-पीली शिमला मिर्च की खेती में भी अच्छा मुनाफा है। शिमला मिर्च की फसल आठ महीने में तैयार होती है और इससे 30-35 लाख रुपये की आमदनी हो सकती है। ऐसा नहीं है कि दोनों केवल अपने काम तक ही सीमित हैं। वे क्षेत्र के किसानों को भी जैविक खेती के लिए प्रेरित कर रहे हैं।
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