फिनटेक में सबसे आगे निकला भारत
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होम मत अभिमत

फिनटेक में सबसे आगे निकला भारत

by बालेन्दु शर्मा दाधीच
Mar 23, 2022, 07:31 am IST
in मत अभिमत, विज्ञान और तकनीक, दिल्ली
प्रतीकात्मक चित्र

प्रतीकात्मक चित्र

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भारत में डिजिटल भुगतान और वित्तीय प्रौद्योगिकी की अपार कामयाबी ने पूरी दुनिया को चौंका दिया है। हालांकि इसकी सुरक्षा की चुनौतियों के समाधान के लिए काफी काम किए जाने की जरूरत

भारत में वित्तीय प्रौद्योगिकी (फिनटेक) ने कमाल की लोकप्रियता हासिल कर ली है। पिछले वित्त वर्ष डिजिटल प्रणालियों के जरिए 22.5 लाख करोड़ रुपये का लेनदेन हुआ। सन् 2026 में इसके बढ़कर 75 लाख करोड़ रुपये तक पहुंच जाने की उम्मीद है। सरकार की कोशिशों और कोविड त्रासदी के मद्देनजर डिजिटल भुगतान और वित्तीय प्रौद्योगिकी ने भारत में जिस किस्म की अपार लोकप्रियता हासिल की है, उसने दुनिया के बड़े-बड़े अर्थशास्त्रियों और तकनीकविदों को चौंकाया है। एसीआई वर्ल्डवाइड नामक कंपनी की रिपोर्ट कहती है कि आज से दो साल पहले ही भारत आनलाइन लेनदेन के मामले में दुनिया में पहले नंबर पर आ गया था। चीन, दक्षिण कोरिया, इंग्लैंड, जापान और अमेरिका हमसे पीछे थे। यह तो तब था जब उस साल भारत में डिजिटल लेनदेन  साढ़े 25 अरब डॉलर पर था। आज तब से एक दर्जन गुना ज्यादा तरक्की हो चुकी है और यह सिलसिला लगातार जारी है

वित्तीय प्रौद्योगिकी क्षेत्र में भारत की कामयाबी के कुछ और भी पहलू हैं, जैसे बैंकों द्वारा तेजी से डिजिटल प्रौद्योगिकी को अपनाना और डिजिटल भुगतान प्रणाली के एक व्यापक सिस्टम का स्थापित होना। यह सिस्टम यूपीआई से लेकर दर्जनों डिजिटल भुगतान अप्लीकेशनों और रूपे जैसे कार्डों से लेकर माइक्रोबैंकिंग तक को अपने में समेटे है। ये प्रणालियां तेजी से परिपक्व हुई हैं और आज हम इस स्थिति में हैं कि चैटिंग अप्लीकेशनों तक में एपीआई का प्रयोग करते हुए पैसे के लेनदेन की सुविधा उपलब्ध है, जिसे वित्तीय क्षेत्र में अगली बड़ी क्रांति माना जा रहा है। देश में ऐसा तकनीकी सिस्टम बन चुका है जिसे दूसरे तकनीकी सिस्टमों में समाहित किया जा सकता है या उनसे जोड़ा जा सकता है। इन सबके अलावा एक अन्य क्षेत्र ब्लॉकचेन तकनीकों का खुल रहा है जिसके भीतर अलग तरह की संभावनाएं निहित हैं।

इतनी तरक्की होने पर दो सवाल स्वाभाविक हैं। पहला यह कि आगे क्या? और दूसरा यह कि इसके भीतर चुनौतियां कैसी उभर रही हैं। पहले सवाल का मतलब यह कि भारत में जब सन् 2019 से 2021 के बीच वित्तीय लेनदेन में दस गुना बढ़ोतरी हो गई तो क्या यह सिलसिला यूं ही आगे भी चलता रहेगा? और अगर हां, तो कब तक? इसका जवाब यह है कि भारत में इस प्रक्रिया को आगे बढ़ाने की अभी काफी गुंजाइश बाकी है और यह दौर अगले पांच साल तक काफी तेज रफ्तार से बढ़ता रह सकता है।

दूसरे सवाल का जवाब यह है कि डिजिटल तकनीकों के आने से जहां धन, संसाधनों, श्रम, प्रक्रियाओं आदि के मामले में अद्भुत बचत हुई है और समय के मामले में बेहद तेजी आई है, वहीं सुरक्षा तथा निजता संबंधी चुनौतियां भी आ खड़ी हुई हैं। जालसाजी, धोखाधड़ी, पहचान की चोरी और ऐसे ही दर्जनों दूसरे संकट आ खड़े हुए हैं जिनका नुकसान आम आदमी के साथ-साथ हमारे वित्तीय तंत्र को भी उठाना पड़ रहा है। हालांकि लाभ के मुकाबले नुकसान का स्तर आंशिक ही है लेकिन वित्त एक ऐसा क्षेत्र है, जिसमें असुरक्षा की जरा भी गुंजाइश नहीं होनी चाहिए।

सवाल उठता है कि इन प्रणालियों को अभेद्य बनाए रखने के लिए क्या करना होगा? आज की बहुत सारी चुनौतियां ऐसी हैं जिन्हें पहले नहीं देखा गया। किसी एक देश में मौजूद अपराधी दूसरे देश में अपराध को अंजाम देकर इंटरनेटीय ब्रह्मांड में न जाने कहां गायब हो जाएं, कहा नहीं जा सकता। एक छोटा सा एसएमएस किसी शख्स के बैंक खाते को खाली करने का जरिया बन जाए, यह भी हम देखते आए हैं। इनके समाधान में इनसान की भूमिका तो है लेकिन सिर्फ इनसान की क्षमताओं के आधार पर परिणाम नहीं आ सकते। प्रौद्योगिकी से उभरती चुनौतियों का समाधान भी उसी तेज रफ्तार से होना चाहिए और यह समाधान भी प्रौद्योगिकी से ही हासिल हो सकता है।

वित्तीय तंत्र में जगह-जगह डिजिटल सुरक्षा प्रणालियां तो आज भी मौजूद हैं और उपभोक्ता भी पहले से ज्यादा सजग हुआ है लेकिन नए जमाने की चुनौतियां मौजूदा सुरक्षा तंत्र की क्षमताओं को लगातार चुनौती दे रही हैं। शायद हमें आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, क्वान्टम कंप्यूटिंग और ब्लॉकचेन की शरण में जाने की जरूरत है। लेकिन ऐसा भी नहीं कि इन नई तकनीकों के प्रयोग की गुंजाइश सिर्फ डेटा की सुरक्षा को दुरुस्त बनाए रखने और कार्यक्षमता बढ़ाने तक सीमित हो। बैंकों के पारंपरिक कामकाज को बेहतर ढंग से संचालित करने में भी इनकी भूमिका हो सकती है।
(लेखक माइक्रोसॉफ़्ट में निदेशक- स्थानीय भाषाएं और सुगम्यता के पद पर कार्यरत हैं।)

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