संयुक्त राष्ट्र की एक हैरान करने वाली खबर सामने आई है। प्राप्त समाचारों के अनुसार, संयुक्त राष्ट्र महासभा में 14 मार्च को 15 मार्च का दिन 'इस्लामोफोबिया के प्रतिकार का अंतरराष्ट्रीय दिवस' के तौर पर मनाने का प्रस्ताव पारित हुआ जिससे ह भनक मिलती है कि वहां भी मजहबी तत्व हावी हैं। हालांकि भारत ने इस प्रस्ताव पर गहन चिंता जताई है। संयुक्त राष्ट्र में भारत के स्थायी प्रतिनिधि टी.एस. तिरुमूर्ति ने मजहब विशेष के विरुद्ध फोबिया को इस हद तक तूल देने पर चिंता जताई कि इसके लिए 'अंतरराष्ट्रीय दिवस' घोषित किया जाए!
उल्लेखनीय है कि भारत और यहां की संस्कृति, हिन्दू धर्म पर इस्लामवादी हमेशा से घातक प्रहार करते आए हैं। मजहबी उन्मादी और उनके पोसने, बढ़ाने वाला ईकोसिस्टम और नफरत से भरा विमर्श कहां से और कैसे चलाया जाता रहा है इसके प्रमाण बार—बार सामने आए हैं। ताजा मामला हिजाब मुद्दे का है जिस पर उक्त तत्वों ने न सिर्फ भारत में एक उन्मादी अभियान चलाया हुआ है, बल्कि इनके संजाल ने दुनिया के अनेक देशों में इसे लेकर भारत में 'मजहब विशेष के प्रति असहिष्णुता' का झूठा आंदोलन छेड़ा हुआ है। भारत के आस्था केन्द्रों पर इस्लामवादियों के सतत प्रहार, हिन्दू की बात करने वालों को 'साम्प्रदायिक' और धर्म—संस्कृति से जुड़ी बात को 'भगवा एजेंडा' कहकर दुष्प्रचारित किया जाता रहा है।
भारत के स्थायी प्रतिनिधि ने कहा कि भारत यहूदी-विरोधी, क्रिश्चिनियोफोबिया अथवा इस्लामोफोबिया से प्रेरित होने वाले सभी कृत्यों की भर्त्सना करता है। ये डर सिर्फ अब्राह्मिक पंथों तक सीमित नहीं है। असल में इस बात के साफ सबूत हैं कि दशकों से इस तरह के मजहबी भय ने वास्तव में गैर-अब्राह्मिक पंथों यानी बहुईश्वरवाद के अनुयायियों पर भी असर डाला है।
लेकिन अब 193 सदस्यों वाली संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा 15 मार्च का दिन 'इस्लामोफोबिया के प्रतिकार का अंतरराष्ट्रीय दिवस' के तौर पर मनाने की बात करना हैरानी पैदा कर रहा है। पाकिस्तान के राजदूत मुनीर अकरम ने 'एजेंडा आइटम कल्चर ऑफ पीस' के अंतर्गत यह प्रस्ताव रखा गया था, जो पारित हो गया।
इस्लामिक सहयोग संगठन की तरफ से प्रस्तुत इस प्रस्ताव के सहप्रायोजित किया था अफगानिस्तान, बांग्लादेश, चीन, मिस्र, इंडोनेशिया, ईरान, इराक, जॉर्डन, कजाकिस्तान, कुवैत, किर्गिस्तान, लेबनान, लीबिया, मलेशिया, मालदीव, माली ,पाकिस्तान, कतर, सऊदी अरब, तुर्की, तुर्कमेनिस्तान, युगांडा, संयुक्त अरब अमीरात, उज्बेकिस्तान तथा यमन ने।
पारित हुए इस प्रस्ताव पर टिप्पणी करते हुए महासभा में भारत के स्थायी प्रतिनिधि तिरुमूर्ति ने कहा कि भारत को उम्मीद है कि पारित किया गया यह प्रस्ताव एक उदाहरण के तौर पर नहीं लिया जाएगा। ये प्रस्ताव कुछ खास पंथों के आधार पर ऐसे कई प्रस्तावों को सामने रख सकता है। यह संयुक्त राष्ट्र को पांथिक खेमों में बांट देगा।
तिरुमर्ति ने आगे कहा कि हिंदू धर्म को 1.2 अरब से ज्यादा लोग मानते हैं। बौद्ध धर्म को 53.5 करोड़ से ज्यादा सिख पंथ को 3 करोड़ से ज्यादा लोग मानते हैं। तिरुमूर्ति के अनुसार, अब वक्त आ गया है कि हम केवल एक मजहब को अलग न रखते हुए, किसी भी पंथ से होने वाले डर को फैलने से रोकने की बात अंगीकार की जानी चाहिए। उन्होंने यह भी कहा कि जरूरी है कि संयुक्त राष्ट्र इस तरह के पांथिक विषयों से अलग रहे, जो शांति और सद्भाव को साथ लाकर दुनिया को एक परिवार के रूप में न मान कर हमें आपस में बांटने की कोशिश कर सकते हैं।
भारत के स्थायी प्रतिनिधि ने कहा कि भारत यहूदी-विरोधी, क्रिश्चिनियोफोबिया अथवा इस्लामोफोबिया से प्रेरित होने वाले सभी कृत्यों की भर्त्सना करता है। ये डर सिर्फ अब्राह्मिक पंथों तक सीमित नहीं है। असल में इस बात के साफ सबूत हैं कि दशकों से इस तरह के मजहबी भय ने वास्तव में गैर-अब्राह्मिक पंथों यानी बहुईश्वरवाद के अनुयायियों पर भी असर डाला है।
उन्होंने कहा कि भारत इस बात पर गर्व करता है कि इसके अस्तित्व के मूल में बहुलवाद है। हम सभी पंथों और आस्था के समान संरक्षण तथा प्रचार में गहन विश्वास रखते हैं। इसलिए, यह बहुत दुर्भाग्यपूर्ण है कि बहुलवाद शब्द का इस प्रस्ताव में कहीं कोई जिक्र नहीं है।
A Delhi based journalist with over 25 years of experience, have traveled length & breadth of the country and been on foreign assignments too. Areas of interest include Foreign Relations, Defense, Socio-Economic issues, Diaspora, Indian Social scenarios, besides reading and watching documentaries on travel, history, geopolitics, wildlife etc.
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