भारत की तीन चौथाई आबादी अब साक्षर हो चुकी है लेकिन नए दौर में साक्षरता का अर्थ लिखने-पढ़ने तक सीमित नहीं है। साक्षरता का अगला पड़ाव है- डिजिटल साक्षरता, क्योंकि आज सफल और सक्षम समाज का अर्थ है- विज्ञान, तकनीक और कारोबार के साथ तालमेल बनाने में सक्षम, जागरूक समाज। वर्तमान में, भारत में केवल 38 प्रतिशत परिवार ही डिजिटल रूप से साक्षर हैं। शहरी इलाकों में यह आंकड़ा 61 प्रतिशत है लेकिन ग्रामीण इलाकों में यह महज 25 प्रतिशत है।
डिजिटल साक्षरता अत्यावश्यक है, क्योंकि डिजिटल प्रौद्योगिकी आज हर जगह : वैश्विक, राष्ट्रीय और स्थानीय स्तर पर और हमारे पेशेवर, सामाजिक और व्यक्तिगत जीवन में एक सशक्त भूमिका निभा रही है। वह डिजिटल परिवर्तन की एक अभूतपूर्व प्रक्रिया से गुजर रही हमारी शिक्षा प्रणाली के लिए तेजी से महत्वपूर्ण होती जा रही है। महामारी के बाद के दौर में आज जिस तरह से शिक्षा दी जा रही है, उसमें बहुत से आश्चर्यजनक और शक्तिशाली बदलाव देखने को मिलते हैं। इन्हें देखने के बाद, यह आसानी से कहा जा सकता है कि आज की शिक्षा कल जैसी नहीं रही और कल की शिक्षा आज जैसी नहीं होगी।
आखिर डिजिटल साक्षरता क्या है? बुनियादी डिजिटल साक्षरता को भारत सरकार ने इस तरह से परिभाषित किया है कि यह नागरिकों और समुदायों की वह क्षमता है जिसका प्रयोग करते हुए वे डिजिटल तकनीकों को समझ सकें और सार्थक कामों के लिए उनका उपयोग कर सकें। कोई भी व्यक्ति जो कंप्यूटर/लैपटॉप/टैबलेट/स्मार्टफोन संचालित कर सकता है और आईटी से संबंधित अन्य उपकरणों का उपयोग कर सकता है, उसे डिजिटल रूप से साक्षर माना जा रहा है।
डिजिटल तकनीक ने शिक्षा को काफी सकारात्मक तरीके से प्रभावित किया है- सामग्री के वितरण, सामग्री के निर्माण, शिक्षकों और शिक्षार्थियों के बीच बातचीत आदि के मामले में नए अवसरों के द्वार खोल दिए हैं। उन्होंने हमारी पहुंच को ऐसे दर्शकों तक बढ़ाया है जो अब तक हमारे दायरे से बाहर थे। साथ ही साथ इन तकनीकों ने हमारे लिए विकास के नए अवसर खोले हैं, हमारी प्रक्रियाओं को सुव्यवस्थित किया है और हमारे कामकाज को सुचारु ढंग से चलाने तथा सुसंगठित बनाने में मदद की है।
चूंकि भारत एक विशाल और विविधतापूर्ण देश है, इसलिए इस प्रक्रिया में कुछ चुनौतियों का भी सामना करना पड़ रहा है, जैसे कि डिजिटल विभाजन और हमारे यहां मौजूद विभिन्न प्रकार की आर्थिक-सामाजिक-ढांचागत असमानताएं आदि। फिर भी, इन चुनौतियों की वजह से हम डिजिटल साक्षरता के महत्व को कम करके नहीं देख सकते। हमें यह सुनिश्चित करना होगा कि ऐसी चुनौतियों के बावजूद हम व्यक्तिगत, पेशेवर, संस्थागत, सामाजिक और राष्ट्रीय स्तर पर पर्याप्त डिजिटल साक्षरता सुनिश्चित करने की दिशा में आगे बढ़ते रहें। अगर हम ऐसा नहीं करते तो हम न केवल एक ऐतिहासिक अवसर खो देंगे, बल्कि आज की अत्यधिक प्रतिस्पर्धी दुनिया में जहां प्रौद्योगिकी हमारे जीवन के लगभग हर क्षेत्र में अहमियत रखती है, आगे बढ़ना और समृद्ध होना भी हमारे लिए मुश्किल होगा।
हमारी सरकार डिजिटल साक्षरता के महत्व को अच्छी तरह से समझती है और इसे प्राथमिकता देती है। हमने इस संबंध में केंद्र सरकार की ओर से तीन बहुत महत्वपूर्ण पहलें देखी हैं, जो हैं- राष्ट्रीय डिजिटल साक्षरता मिशन (एनडीएलएम), डिजिटल साक्षरता अभियान (दिशा) और प्रधानमंत्री ग्रामीण डिजिटल साक्षरता अभियान (पीएमजी-दिशा)। सरकार का लक्ष्य है कि प्रत्येक भारतीय परिवार में कम से कम एक व्यक्ति डिजिटल रूप से साक्षर हो और हम इस संबंध में अपने लक्ष्यों को प्राप्त करने की राह पर हैं। सरकारी प्रयासों के अतिरिक्त, और भी कई स्तरों पर कार्य हो रहे हैं।
डिजिटल साक्षरता मिशन और पीएमजीदिशा जैसे कार्यक्रम डिजिटल साक्षरता की खाई को पाटने में मदद कर रहे हैं। लगभग 5 करोड़ 26 लाख लोगों ने पीएमजीदिशा के लिए पंजीकरण कराया है। हालांकि, एक नागरिक के रूप में, हम सब भी भारत को डिजिटल रूप से साक्षर बनाने में योगदान दे सकते हैं।
अंत में एक जरूरी सलाह : जो लोग बुनियादी डिजिटल साक्षरता स्तर हासिल कर लेते हैं, उनको वहीं पर रुक नहीं जाना चाहिए बल्कि डिजिटल स्पेस में और भी अधिक क्षमताएं हासिल करने की दिशा में आगे बढ़ना चाहिए। आदर्श रूप से, हमें न केवल उपयोग और उपभोग करने में सक्षम होना चाहिए, बल्कि हमें सृजन और नवाचार करने में भी सक्षम होना चाहिए। डिजिटल साक्षरता और तकनीकी कौशल का प्रयोग हमें देश के विकास के लिए करना है।
(लेखक माइक्रोसॉफ़्ट में निदेशक- स्थानीय भाषाएं और सुगम्यता के पद पर कार्यरत हैं)
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