प्रवीण सिन्हा
भारतीय महिला खिलाड़ियों ने न केवल पुरुष खिलाड़ियों के कंधे से कंधा मिलाकर देश का नाम रोशन किया है, बल्कि कई मौकों पर आगे बढ़कर खुद ही जिम्मेदारियों का बोझ भी उठाया है। सन् 2000 के सिडनी ओलंपिक में कर्णम मल्लेश्वरी ने देश की पहली महिला ओलंपिक पदक विजेता बनने का गौरव हासिल किया, तो उस गौरवपूर्ण सिलसिले को एम. सी. मैरीकॉम व सायना नेहवाल (2012 लंदन ओलंपिक), पी. वी. सिंधू व साक्षी मलिक (2016 रियो ओलंपिक) और मीराबाई चानू व लवलिना बोगोर्हेन (2020 टोक्यो ओलंपिक) ने शान से जारी रखा। इसके अलावा बैडमिंटन, क्रिकेट, कुश्ती, मुक्केबाजी, भारोत्तोलन, हॉकी, निशानेबाजी व टेनिस की विभिन्न अंतरराष्ट्रीय स्पर्धाओं में भारतीय महिला खिलाड़ियों ने उल्लेखनीय सफलताएं अर्जित कीं जो बदलते व सशक्त भारतीय खेल जगत की तस्वीर प्रस्तुत करती हैं।
भागीदारी की शुरुआत
भारतीय खेल जगत में महिला खिलाड़ियों की भागीदारी एक तरह से पिछली सदी के नौवें दशक में शुरू हुई। उस दौरान पी. टी. ऊषा, शाइनी विल्सन और अंजू बॉबी जॉर्ज ही अंतरराष्ट्रीय खेल पटल पर भारत की उपस्थिति दर्ज कराने में सफल रहीं। ये तीनों एथलीट थीं और इनके उभरने में एक सीमित क्षेत्र ही योगदान दे पाया। हालांकि इनकी सफलता और विश्वास ने देश के कोने-कोने में महिलाओं को खेल को एक पेशेवर करिअर के तौर पर अपनाने के लिए निश्चित तौर पर प्रेरित किया। इसके बाद तमाम चुनौतियों का सामना करते हुए भारतीय महिला खिलाड़ियों ने विभिन्न खेल के मैदानों पर सफलताएं अर्जित करने का सिलसिला शुरू कर दिया। अब स्थिति यह है कि पिछले 8-10 वर्षों में भारतीय महिला खिलाड़ियों ने न केवल कई विश्व स्तरीय स्पर्धाओं में सशक्त दावेदारी प्रस्तुत की, बल्कि खुद को ‘रोल मॉडल’ के रूप में भी स्थापित कर लिया। मणिपुर की एम. सी. मैरीकॉम ने महिला मुक्केबाजी में एकछत्र राज करते हुए देश का नाम खूब रोशन किया। इस क्रम में सायना नेहवाल ने बैडमिंटन जगत में चीन व जापान के वर्चस्व को तोड़ते हुए देश का नाम रोशन किया और लंदन ओलंपिक खेलों में कांस्य पदक जीत इतिहास रच दिया। सायना ने ओलंपिक सहित हर अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिता में पदक जीतते हुए देश का नाम रोशन किया। इसके बाद पी. वी. सिंधू ने पिछले दो ओलंपिक खेलों सहित विश्व चैंपियनशिप, एशियाई खेलों व राष्ट्रमंडल खेलों में लगातार पदक जीतते हुए भारत को महिला बैडमिंटन की महाशक्ति के रूप में स्थापित कर दिया। महिला बैडमिंटन में इन दो स्टार खिलाड़ियों के अलावा ज्वाला गट्टा और अश्विनी पोनप्पा विश्व की नंबर एक जोड़ी रह चुकी है। इन महिला खिलाड़ियों ने पिछले एक दशक से विभिन्न अंतरराष्ट्रीय मंचों पर देश का नाम कई बार रोशन किया है।
कुछ इसी तरह साक्षी मलिक और विनेश फोगाट जैसी पहलवानों ने विभिन्न अंतरराष्ट्रीय स्पर्धाओं में भारतीय परचम लहराया, जबकि एथलेटिक्स में स्वप्ना बर्मन, हिमा दास, कृष्णा पूनिया और दूती चंद ने बेहतरीन प्रदर्शन के बल पर पदक जीतते हुए देश को सम्मान दिलाया। कमोबेश ऐसी ही स्थिति महिला टेनिस में छह ग्रैंड स्लैम पदक विजेता सानिया मिर्जा और तीरंदाजी में दीपिका कुमारी की रही।
स्पर्धाओं में भी भरती हैं दम
भारतीय खेल जगत में प्रतिभाशाली खिलाड़ियों के उदय और खेलों को पेशेवर अंदाज में अपनाने की जो परंपरा शुरू हुई, उसमें महिलाओं ने भी बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया। खेलों के प्रति लगाव और जीत का जज्बा महिला खिलाड़ियों में कहीं से भी कमतर नजर नहीं आता। यही कारण है कि व्यक्तिगत स्पर्धाओं के अलावा भारतीय महिला क्रिकेट और हॉकी टीमें भी विश्व की शीर्षस्थ टीमों में शामिल हैं। भारतीय महिला क्रिकेट टीम की कप्तान मिताली राज आज उतना ही सम्मान पा चुकी हैं जितना पुरुष क्रिकेट में सुनील गावस्कर या सचिन तेंडुलकर को मिला है। महिला हॉकी टीम की कहानी भी काफी हद तक मिलती-जुलती है।
मुक्के से दिखाया दम
भारतीय खेल जगत में महिलाओं की सशक्त भागीदारी की जब-जब बात होगी, स्टार मुक्केबाज एम. सी. मैरीकॉम का नाम सम्मान के साथ जरूर लिया जाएगा। छह विश्व कप खिताब विजेता विश्व की एकमात्र मुक्केबाज मैरीकॉम विश्व मुक्केबाजी जगत (महिला व पुरुष) की इकलौती खिलाड़ी हैं जिनके नाम गैरपेशेवर विश्व मुक्केबाजी चैंपियनशिप के कुल आठ पदक दर्ज हैं। यही नहीं, मैरीकॉम 2012 लंदन ओलंपिक में कांस्य पदक जीत कर यह उपलब्धि हासिल करने वाली देश की पहली महिला मुक्केबाज बनीं।
भरी ऊंची उड़ान
अपनी वरिष्ठ बैड़मिंटर खिलाड़ी सायना नेहवाल के शुरू किए सिलसिले को पी. वी. सिंधू ने बखूबी आगे बढ़ाया है। विश्व की कोई ऐसी स्टार खिलाड़ी नहीं है जिसे ओलंपिक खेलों में भारत की ओर से दो पदक जीतने वाली एकमात्र महिला खिलाड़ी सिंधू ने हराया न हो। 2016 रियो ओलंपिक खेलों में रजत पदक जीत उन्होंने ओलंपिक खेलों में भारत की ओर से बैडमिंटन का पहला व्यक्तिगत रजत पदक हासिल करने का गौरव हासिल किया। यही नहीं, इसके बाद 2020 टोक्यो ओलंपिक में भी कांस्य पदक जीत वे लगातार दो ओलंपिक खेलों में भारत की ओर पदक जीतने वाली पहली भारतीय महिला खिलाड़ी बनीं।
इतिहास रचतीं मीराबाई
मणिपुर की 26 वर्षीया मीराबाई चानू ने भारोत्तोलन के 49 किग्रा वर्ग में रजत पदक जीत 2020 टोक्यो ओलंपिक खेलों की पदक तालिका में भारत का खाता खोला था। खेल रत्न से सम्मानित मीराबाई ओलंपिक खेलों की भारोत्तोलन स्पर्धा में रजत पदक जीतने वाली देश की पहली खिलाड़ी बनीं। यही नहीं, मीराबाई के दम पर ही ओलंपिक खेलों के इतिहास में भारत ने पदकों के अभियान की शुरुआत पहली बार पहले ही दिन की थी। 2017 विश्व चैंपियनशिप और 2018 राष्ट्रकुल खेलों की स्वर्ण पदक विजेता मीराबाई महिला भारोत्तोलन के शिखर तक का सफर तय करने के दौरान बचपन में जलावन की लकड़ी का बोझ लिए दो-दो किलोमीटर तक के रास्ते तय करती थीं।
धूमकेतु की तरह उभरीं सायना
विश्व बैडमिंटन जगत में एक समय चीन, जापान, कोरिया और इंडोनेशिया का दबदबा हुआ करता था। उस दौर में सायना नेहवाल भारत की एक युवा सनसनी के तौर पर उभरीं और बैडमिंटन में चीनी दीवार को ध्वस्त करने की उपलब्धि हासिल कीं। 2010 दिल्ली राष्ट्रमंडल खेलों में स्वर्ण पदक जीत सायना ने सफलता के जो झंडे गाड़ने शुरू किए कि उस सिलसिले को 2018 गोल्ड कोस्ट राष्ट्रमंडल खेलों में दो स्वर्ण पदक जीतने तक कायम रखा। वे विश्व वरीयता क्रम में पहले स्थान पर रह चुकीं पहली भारतीय महिला बैडमिंटन खिलाड़ी बनने के अलावा 2015 विश्व चैंपियनशिप में रजत पदक जीतने वाली पहली खिलाड़ी भी बनीं। अर्जुन पुरस्कार, मेजर ध्यानचंद खेल रत्न और पद्मभूषण से सम्मानित सायना भाजपा की ओर से राजनीति में कदम रख चुकी हैं।
दीपिका के तीर ने भेदे पदक
दीपिका देश की नंबर एक तीरंदाज हैं और विश्व की नंबर एक तीरंदाज रह चुकी हैं। उन्हें चैंपियन खिलाड़ियों को हराने का खासा अनुभव रहा है। महिला तीरंदाजी में दक्षिण कोरियाई खिलाड़ियों का हमेशा से बोलबाला रहा है, लेकिन दीपिका ने उनसे डरना नहीं सीखा। हालांकि दीपिका अब तक ओलंपिक पदक से वंचित रही हैं, लेकिन विश्व चैंपियनशिप में दो बार रजत पदक जीतने वाली वे देश की पहली महिला तीरंदाज हैं। इसके अलावा विश्व कप, राष्ट्रमंडल खेलों और एशियाई चैंपियनशिप में स्वर्ण सहित पदकों का अंबार लगा चुकी दीपिका 2010 ग्वांगझू एशियाड में भी कांस्य पदक जीत चुकी हैं।
करमाकर का कमाल
त्रिपुरा की महिला जिम्नास्ट दीपा करमाकर विश्व महिला जिम्नास्टिक में एक सनसनी की तरह उभरते हुए देश का नाम रोशन कर चुकी हैं। दीपा प्रोडूनोवा वॉल्ट में दुनिया की सर्वश्रेष्ठ जिम्नास्ट मानी जाती हैं। दीपा का मानना है कि यह शैली भले ही खतरनाक है, लेकिन विश्व स्तर पर पदक जीतने के लिए वे इसे अपनाने से चूकेंगी नहीं। इन बेटियों की उपलब्धि से हर भारतीय गर्व का अनुभव करता है। उम्मीद है कि ये बेटियां बार-बार गर्व करने का अवसर प्रदान करेंगी।
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