अफगानिस्तान में जिहादी इस्लामवादी तालिबान के अगस्त 2021 में काबुल में आ धमकने के वक्त 29 साल की पत्रकार जहरा जोया परिवार के साथ ब्रिटेन जा बसी थीं। और आज वे और उनकी टीम दुनियाभर में अफगानी महिलाओं की पीड़ा को मुखरित कर रही है। अफगानिस्तान में कुर्सी हथियाने के फौरन बाद से ही तालिबान ने महिलाओं पर ऐसी ऐसी पाबंदियां लगानी शुरू कर दीं कि सबके मन में एक बार फिर उसके पिछले 1996—2001 के मध्ययुगीन कार्यकाल की तस्वीर घूमने लगी।
तालिबान की सरकार ने महिलाओं के आधुनिक पहनावे, तालीम आदि पर नए फरमान जारी किए, उन पर रोक लगा दी। इन सब और ऐसी ही कई बातों को जहरा ने पूरी हिम्मत के साथ दुनिया के सामने रखने का बीड़ा उठाया है। शायद यही वजह है कि टाइम्स पत्रिका की वूमेन आफ द ईयर की सूची में उनका नाम शामिल किया गया है। अफगानिस्तान की पत्रकार जहरा जोया इस वक्त अपने परिवार को शरण देने वाले देश ब्रिटेन में रह रही हैं। वहां वह अपनी एक समाचार एजेंसी चलाती हैं।
सुप्रसिद्ध समाचार पत्र द गार्जियन की रिपोर्ट बताती है कि अफगानिस्तान में तालिबान के पिछले इस्लामी राज में बच्चियों के स्कूल जाने पर कड़ी पाबंदी थी। लेकिन जहरा पढ़ना चाहती थीं। वह स्कूल जाना चाहती थीं इसलिए लड़कों के कपड़े पहनकर लड़कों सा रूप धरकर स्कूल जाती रही थीं। वह स्कूल तब रोज दो घंटे पैदल चलकर जाती थीं। वहां जहरा को महिलाओं के साथ बदसलूकी होते देख गुस्सा आता था। उन्होंने तभी तय कर लिया था कि बड़े होकर वह दुनिया को बताएंगी कि अफगानिस्तान में महिलाओं का जीना कैसे मुहाल किया हुआ है।
जहरा ने 2020 में ही अफगानिस्तान में कुछ महिला पत्रकारों के साथ मिलकर एक समाचार एजेंसी शुरू की थी। वे अफगानी महिलाओं की मुश्किलों को दुनिया के सामने लाना चाहती हैं। इसीलिए उन्होंने तालिबान के भय के साए में जीने को मजबूर अफगानी महिलाओं के जीवन पर रिपोर्टिंग करनी शुरू की। तालिबान के आतंक की वजह से वे ज्यादातर दबे—छुपे रिपोर्टिंग करती रहीं।
जहरा अफगानिस्तान के अल्पसंख्यक हजारा समुदाय में जन्मी हैं। बहुत छोटी उम्र से ही उन्होंने पत्रकारिता शुरू कर दी थी। पिछले साल जब तालिबान ने अफगानिस्तान पर कब्जा किया तब उन्हें परिवार के साथ देश छोड़ना पड़ा। उन्होंने ब्रिटेन में शरण ली। यहां पत्रकारिता जारी रखते हुए उन्होंने राहत कार्यों के लिए पैसा भी जमा किया।
29 साल की जहरा ने 2020 में ही अफगानिस्तान में कुछ महिला पत्रकारों के साथ मिलकर एक समाचार एजेंसी शुरू की थी। वे अफगानी महिलाओं की मुश्किलों को दुनिया के सामने लाना चाहती हैं। इसीलिए उन्होंने तालिबान के भय के साए में जीने को मजबूर अफगानी महिलाओं के जीवन पर रिपोर्टिंग करनी शुरू की। तालिबान के आतंक की वजह से वे ज्यादातर दबे—छुपे रिपोर्टिंग करती रहीं।
उल्लेखनीय है कि उनकी पत्रकार टीम की कुछ लड़कियां आज भी अफगानिस्तान में रहकर वहीं से महिलाओं के दमन से जुड़े समाचार भेजती रहती हैं। जहरा की इस हिम्मत भरे काम की सब जगह तारीफ हुई। जहरा का कहना है कि तालिबान लड़ाकों ने महिलाओं के आधुनिक पहनावे, तालीम वगैरह पर कई पाबंदियां लगा दी हैं। वहां आज महिलाओं से बहुत बुरा सलूक किया जा रहा है।
A Delhi based journalist with over 25 years of experience, have traveled length & breadth of the country and been on foreign assignments too. Areas of interest include Foreign Relations, Defense, Socio-Economic issues, Diaspora, Indian Social scenarios, besides reading and watching documentaries on travel, history, geopolitics, wildlife etc.
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