बढ़ते शहरीकरण के दौर में एक अच्छी खबर ये भी है कि देश मे जंगल का रकबा बढ़ गया है।1540 वर्ग किमी जंगल का बढ़ना हालांकि इसे मामूली वृद्धि माना जा रहा है, लेकिन पर्यावरण की दृष्टि से इसे शुभ संकेत इस लिए कहा जा सकता है कि जंगलों में रहने वाले जीव जंतुओं का इससे संरक्षण बढ़ेगा। देश में 2021 में जंगल 713789 वर्ग किमी में जंगल दर्ज किए गए है। जोकि देश के भौगोलिक क्षेत्रफल का 21.71 प्रतिशत है जबकि 2019 में 21.67 फीसदी क्षेत्र में ही जंगल थे। इन जंगलों में 1200 प्रजाति और 900 से ज्यादा उप प्रजाति के पंछी पाए जाते हैं और वन्यजीवों की प्रजातियों की संख्या करीब 81000 है। इन्ही प्रजातियों की सुरक्षा और संरक्षण के लिए भारतीय वन्य जीव संस्थान ने इन्हें अलग-अलग श्रेणी के दुर्लभ प्राणियों में सूचीबद्ध किया हुआ है।
देश में 566 वन्यजीव संरक्षित जंगल, 103 राष्ट्रीय उद्यान और 53 टाइगर रिजर्व घोषित है, जहां इंसानों के दखल को स्वीकार नहीं किया जाता। यहां वन्यजीवों का राज चलता है, वन विभाग इन वन्य जीव जंतुओं की सुरक्षा के लिए जिम्मेदार माना जाता है। हिमालय, शिवालिक और भाबर ऐसे भौगोलिक क्षेत्र है, जहां सबसे ज्यादा घने जंगल हैं। जिनमे हिमालय शिवालिक की तलहटी में बाघ, हाथी, तेंदुए, मगरमच्छ, ऊदबिलाव, घड़ियाल जैसे संरक्षित श्रेणी के जीव मिलते हैं। पश्चिम हिमालय में जंगली गधे, कस्तूरी मृग, भेड़, बकरी, हिरण आदि मिलते हैं, जबकि पूर्वी हिमालय में पंडा, सुअर, रीछ, भालू, हिरण प्रजाति के जीव मिलते हैं। मध्य हिमालय के उत्तराखंड में बाघ और हाथी सबसे ज्यादा सुरक्षित और संरक्षित हैं। कॉर्बेट टाइगर रिजर्व और राजा जी टाइगर रिजर्व के संरक्षित जंगल वन्य जीवों के लिए सबसे महफूज घर साबित हुआ है।
उत्तराखंड के बाघों की संख्या 442 से ज्यादा है, जिनमें से 70 प्रतिशत बाघ जिम कॉर्बेट पार्क और राजा जी पार्क में हैं। 1936 से जिम कॉर्बेट पार्क का जंगल आरक्षित वन क्षेत्र घोषित है। इसी तरह राजा जी और नंधौर वाइल्ड लाइफ सेंचुरी अंग्रजी शासन काल से वन्य जीवों के लिए आशियाना घोषित किया हुआ है। शिवालिक की पहाड़ियों और भावर के बीच घने जंगल से बहने वाली नदियों को इन वन्यजीव जंतुओं के लिए वरदान माना गया है। शारदा नदी से लेकर यमुना घाटी के बीच के जंगल को एशियन एलिफेंट कॉरिडोर का हिस्सा माना जाता है, जहां हाथी विचरण करते हैं। इस मार्ग को जब- जब बाधित किया है हाथियो ने वहां आकर उत्पात मचाया है। हाथियों को जंगल का निर्माता माना जाता है, हाथी पेड़ो से शाखाओं को गिराता है और उसके मल से खाद बनती है और वही शाखा फिर पौधे जंगल का रूप लेती है। उत्तराखंड में हाथियों की आबादी 2021 में 2026 दर्ज की गई है। इसी कॉरिडॉर में 152 मगरमच्छ, 96 घड़ियाल, 142 ऊदबिलाव देखे गए थे।
फ़ॉरेस्ट सर्वे ऑफ इंडिया की रिपोर्ट कहती है उत्तराखंड के कॉर्बेट टाइगर रिजर्व में बाघों की सबसे घनी आबादी है। कॉर्बेट पार्क के 1318.54 वर्ग किमी जंगल मे 792.72 बफर जोन है, जहां 250 से ज्यादा बाघ मौजूद हैं। सर्वे रिपोर्ट कहती है प्रति सौ वर्ग किमी में 14 बाघ रह रहे हैं। जबकि असम के काजीरंगा में 13.6 कर्नाटक के नागरहोल में11.82 बाघों के औसत घनत्व प्रति सौ किमी का है। उत्तराखंड के बारे में सर्वे रिपोर्ट ये भी कहती है कि कॉर्बेट टाइगर रिज़र्व के सटे जंगल जैसे तराई वेस्ट, रामनगर फ़ॉरेस्ट में भी बाघों की संख्या में इजाफा हो रहा है और इसके पीछे मुख्य कारण बाघों की अपनी-अपनी टेरेटरी होती है जवान बाघ को बूढ़ा बाघ अपने क्षेत्र से खदेड़ देता है और बूढ़े बाघ अपने लिए नए जंगल की तलाश में रामनगर, तराई वेस्ट और नंधौर तक पहुंच गए हैं। देश मे बाघों की संख्या 2967 है जिनमे आधे कर्नाटक में 524, उत्तराखंड में 442 और मध्यप्रदेश में 526 हैं।
भारत में हैं 53 टाइगर रिजर्व:
बाघों के लिए बनाए गए 53 टाइगर रिजर्व के बारे में ये कहा जाता है कि ये जंगल न सिर्फ बाघों के संरक्षण के लिए उपयोगी है, बल्कि ये सभी जीव जंतुओं के आश्रय स्थल माने जाते हैं। जंगल में जब राजा यानि टाइगर की मौजूदगी है तो इसका सीधा अर्थ ये है कि वो जंगल इंसानी दखल से दूर है क्योंकि जहां-जहां इंसानों ने दखल दिया है तो वहां जैव विविधता समाप्त हुई है। इन टाइगर रिजर्व में यदि कोई पेड़ गिर भी जाये तो उसे उठाने की अनुमति नहीं है। वो पेड़ वही सड़ेगा और दीमक का आहार बनेगा। इस वक्त सबसे ज्यादा टाइगर रिजर्व मध्यप्रदेश और महाराष्ट्र में 6-6 है, कर्नाटक में 5 असम, तमिलनाडु, राजस्थान में 4-4, अरुणाचल, छत्तीसगढ़, यूपी में 3-3, केरल, ओडिशा, तेलंगाना, बंगाल, उत्तराखंड में 2-2 और आंध्र, मिजोरम, बिहार, झारखंड में 1-1 टाइगर रिजर्व बनाये गए हैं। सबसे पहला बाघ संरक्षित क्षेत्र जिम कॉर्बेट टाइगर रिजर्व उत्तराखंड का 1973 में बनाया गया था।
चिंता वाली बात:
बाघों के संरक्षण के साथ-साथ बाघों की मौत भी हो रही है। कुछ मौतें वास्तविक है कुछ को वन्य जीव तस्करो ने मारा है। एक अनुमान है कि हर दूसरे दिन एक बाघ की मौत देश के जंगलों में हो रही है। बाघ की उम्र दस से बारह साल होती है। इसलिए बाघों के जीवन चक्र में स्वाभाविक मौतें ज्यादा है। इस साल फरवरी तक 28 बाघों की मौत की सूचना एनटीसीए में दर्ज हैं, जिनमें 20 बाघों की मौत आपसी संघर्ष यानी टेरेटरी की झगड़े की वजह से मानी गयी है। 2021 में 171 बाघों की मौत हुई, जिनमें से 56 का शिकार किया गया, जबकि 115 की मौत अन्य कारणों से हुई। तेंदुए जिसे गुलदार भी कहते हैं 2021 में इनकी मौतों की संख्या 614 पहुंच गई है, जिनमें 182 शिकारियों के हाथों मारे गए। यानि हर रोज चार तेंदुए मर रहे हैं या मारे जा रहे हैं। हालांकि इनकी आबादी बाघों की तुलना में चार गुना तेज़ी से बढ़ती है। तेंदुए और मानव के बीच संघर्ष पिछले कुछ सालों में तेज़ी से बढ़ा है। इसकी वजह जंगल किनारे रहने वाले लोगों का जंगल जाना रहा है। पहाड़ी क्षेत्रों में बाघ नहीं होते, लेकिन तेंदुए वहां बाघ कहलाते हैं और इनके इंसानों पर हमले तेज़ी से बढ़े हैं। मध्य हिमालय में सबसे ज्यादा चिंता की बात ये है कि यहां गिद्द पंछी, लकड़बग्घे, जंगल जीव, डॉल्फिन पानी का जीव, आदि ऐसे है जोकि तेज़ी से विलुप्त हो रहे हैं। जिनके संरक्षण की बेहद जरूरत है।
उत्तराखंड के वन्यजीव प्रतिपालक डॉ पराग मधुकर धकाते कहते हैं कि भारत दुनिया का एक मात्र ऐसा देश है, जहां सबसे ज्यादा करीब 81000 वन्य जीव प्रजातियों के निवास है। ये ऐसा देश है, जहां साइबेरिया से हजारों मील दूर उड़कर पंछी अपने रैन बसेरे बनाने हर साल आते हैं। हमारे समुंदर में 2500 से ज्यादा किस्म की मछलियां हैं, जो और कहीं नहीं हैं। बाघ दुनिया में खत्म हो रहे हैं, लेकिन हमारे यहां जंगल में उन्हें बेहतर वातावरण मिला तो वो संरक्षित होने लगे। हम इस कोशिश में है कि अफ्रीका में पाए जाने वाले "चीता" को भारत मे संरक्षित करें। इस ओर काम चल रहा है। उन्होंने बताया कि वन्यजीवों के संरक्षण के लिए अभी और काम करने की जरूरत है, इसके लिए हमें जंगल की आग को रोकने के पुख्ता बंदोबस्त करने होंगे। मानव जीव संघर्षों को रोकने के लिए भी लोगों में जागरुकता लाने की जरूरत है। जंगल इंसानों का नहीं जीव जंतुओं का घर है। उनके घर में हमें नहीं जाना चाहिए।
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