दिलीप धारूरकर
एक मंत्री आतंकवाद से जुड़े लोगों से जमीन खरीदने के और मनी लांड्रिंग के आरोप में जेल जाता है और महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उसको अपने मंत्रिपरिषद से हटाते नहीं, यह ज्यादा गंभीर विषय है। नवाब मलिक पिछले डेढ़ महीने से रोज प्रेस को संबोधित कर रहे हैं। नवाब मलिक के दामाद को जब से एनसीबी ने ड्रग्स के मामले में गिरफ्तार किया तब से मलिक बेचैन हैं। आठ महीने जेल में रहने के पश्चात दामाद को बेल मिली। लेकिन आर्यन खान का मामला शुरू होते ही नवाब मलिक एनसीबी के विरोध में आक्रामक हो गए। नशा के विरोध में शिकंजा कसना है इसलिए तो एनसीबी बनी है, वह अगर यह काम करती है तो आम लोगों को तो उसका समर्थन करना चाहिए। नशीली चीजें और उसका कारोबार समाज से खत्म हो जाय, यह एक आदर्श व्यवस्था है। लेकिन एनसीबी के विरोध में राज्य का एक कैबिनेट मंत्री निजी कारणों से सामने आकर खुल कर विरोध करता है और सारा मराठी मिडिया उसे रोज प्रस्तुत करता है यह चित्र स्वस्थ समाज का नही लगता।
भारतीय जनता पार्टी का विरोध करना तो मानो मीडिया का स्थायीभाव बन गया। उसके लिए जो भी भाजपा, केंद्र सरकार, केंद्र की जांच एजेंसियों का विरोध करेगा उसे मीडिया प्रथम प्राथमिकता देकर प्रकाशित करेगा। यही अनुभव मलिक के विषय में आया। अब नवाब मलिक को प्रवर्तन निदेशालय ने मनी लांड्रिंग के आरोप में हिरासत में लिया है। न्यायालय ने उन्हें 3 मार्च तक कस्टडी में रखने का आदेश दिया है। लेकिन तबीयत खराब होने से मलिक अस्पताल में हैं।
कबाड़ के कारोबार से मंत्री तक
मुंबई में एनसीपी का मुस्लिम चेहरा बने नवाब मलिक का परिवार मूल रूप से उत्तर प्रदेश के बलरामपुर ज़िले का रहने वाला है। नवाब के जन्म से पहले उनके पिता,मोहम्मद इस्लाम मलिक मुंबई में बस गए थे। मलिक परिवार के पास एक होटल था। इसके अलावा उनके कबाड़ के कारोबार के साथ कुछ और छोटे मोटे काम धंधे थे। एक कबाड़ कारोबारी से मंत्री तक का इनका सफर रोचक है।
नवाब मलिक ने कॉलेज के आंदोलन में भाग लिया था। इसी दौरान उनकी राजनीति में रुचि हो गई। नवाब उस समय संजय विचार मंच से जुड़ गए। 1984 के लोकसभा चुनाव में नवाब मलिक ने संजय विचार मंच से चुनाव लड़ा था। चुनाव में उन्हें केवल 2620 वोट मिले थे। दिसंबर 1992 में बाबरी की घटना के बाद, मुंबई में दंगे भड़क उठे। उसके बाद हर तरफ संवेदनशील माहौल था। उस समय नवाब मलिक ने नीरज कुमार के साथ मुंबई में सांझ समाचार नामक एक समाचार पत्र शुरू किया। लेकिन कुछ साल बाद यह बंद हो गया। बाबरी ढांचा गिरने के बाद मुंबई और आस-पास के इलाकों में मुस्लिम वोट बैंक की राजनीति करने वाली समाजवादी पार्टी मुस्लिम मतदाता का समर्थन हासिल कर रही थी। इसी लहर में नवाब मलिक भी समाजवादी पार्टी में शामिल हो गए।
1995 के विधानसभा चुनाव में उन्हें पार्टी से मुस्लिम बहुल नेहरू नगर निर्वाचन क्षेत्र से टिकट मिला। लेकिन शिवसेना के सूर्यकांत महादिक 51 हजार 569 वोट पाकर जीते थे और मलिक हार गए, नवाब मलिक 37,511 वोट के साथ दूसरे नंबर पर रहे। विधायक महादिक के ख़िलाफ़ दायर याचिका पर उन्हें दोषी पाया गया और चुनाव आयोग ने चुनाव रद्द कर दिया और 1996 में नेहरू नगर निर्वाचन क्षेत्र में फिर से चुनाव हुआ। इस बार नवाब मलिक ने करीब साढ़े छह हज़ार मतों से जीत हासिल की।
1999 के विधानसभा चुनाव में नवाब मलिक फिर से समाजवादी पार्टी से जीते। तब कांग्रेस और राकांपा सत्ता में आई। समाजवादी पार्टी से दो विधायक चुने गए। उन्हें भी मोर्चे का समर्थन करने के लिए सत्ता में भागीदारी मिली। नवाब मलिक आवास राज्य मंत्री बने। लेकिन समय के साथ समाजवादी पार्टी के नेताओं के साथ मलिक के मतभेद सामने आ गए। उन्होंने एनसीपी में शामिल होने का फैसला किया। उच्च और तकनीकी शिक्षा और श्रम मंत्री बने। जरीवाला चाल पुनर्विकास परियोजना में कदाचार के कई आरोप लगे थे। जांच शुरू की गई और नवाब मलिक को इस्तीफ़ा देना पड़ा। 2008 में नवाब मलिक को मंत्री बनाया गया था। तब से ये महाशय एनसीपी के मंत्री, प्रवक्ता के रूप में बार बार सुर्खियों मे आते रहें हैं। मंत्री और बडा रसूख रहने पर भी उनके दामाद को एनसीबी के समीर वानखेड़े ने गिरफ्तार किया, यह अपमान इन्हें बार-बार तकलीफ दे रहा था। इसलिए वानखेड़े को सबक सिखाने हेतु उनके विरोध में उनके पिताजी की शादी से लेकर उनके बेल्ट जैसी चीजे नवाब मलिक ने प्रेस कांफ्रेंस का विषय बनाई।
एक दिन अचानक नवाब मलिक ने महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री और भाजपा नेता देवेन्द्र फडणवीस पर आरोप लगाए और उनका किसी ड्रग्स के कारोबारी के साथ एक कहीं कार्यक्रम में निकाली गयी फोटो प्रेस को दे दी। फडणवीस ने यह फोटो कहां, कब और क्यूं निकाला गया था और उसमें गलत कुछ नही था इसका स्पष्टीकरण तुरंत दिया लेकिन कह दिया कि अब नवाब मलिक के बारे में वे धमाका करेंगे। देवेंद्र फडणवीस जब बोलते हैं तो कागज और सबूत के अलावा नही बोलते। जबकि नवाब मलिक सबूत के बिना। समीर वानखेड़े के मामले में सबूत के आभाव में आरोप लगाने के कारण नवाब मलिक को कोर्ट में दो बार माफी मांगना पड़ी है। फडणवीस ने मलिक पर जो आरोप लगाए वह बेहद गंभीर और आतंकवाद से जुड़े थे।
दाऊद के लोगों से अवैध खरीद-फरोत
फडणवीस ने दावा किया कि नवाब मलिक के परिवार ने दाऊद के लोगों से सस्ते में जमीन खरीदी थी। इसमें उन्होंने सरदार शाह वली खान और मोहम्मद सलीम पटेल का जिक‘ किया। ये दोनों आतंकवादी गतीविधियों में संलिप्त थे। सरदार शाह वली खान 12 मार्च 1993 को मुंबई में घटित सीरियल बम ब्लास्ट का गुनाहगार है, जिसे इस विषय में उम्रकैद हुई थी। उसने टाइगर मेमन का सहयोग किया था, साथ ही बॉम्बे स्टॉक एक्सचेंज, मुंबई महानगर पालिका में बम कहां रखना है इसकी रेकी की थी। शाह वली खान ने ही टाइगर मेमन की गाड़ियों में आरडीएक्स लोड कराया था।
मोहम्मद सलीम पटेल दाऊद इब्राहीम का आदमी था। फडणवीस ने संवाददाताओं को बताया कि, मोहम्मद सलीम पटेल हसीना पारकर का ड्राइवर व बॉडीगार्ड था। 2007 में हसीना पारकर के साथ सलीम पटेल भी अरेस्ट हुआ था। रिकॉर्ड से पता चला कि दाऊद के फरार होने के बाद दाऊद की संपत्तीयां हसीना के नाम से जमा होती थीं। इसमें सलीम का अहम रोल था। संपत्तियों की पावर अटॉर्नी इसके नाम से ली जाती थी। कुर्ला में गोवा वाला कंपाउंड के नाम से परिचित तीन एकड़ जगह की रजिस्ट्री सोलिडस नाम की कंपनी के नाम पर हुई। यह कंपनी नवाब मलिक के परिवार की है। जिसका एक मालिक नवाब मलिक का बेटा फराज मलिक है।
देवेन्द्र फडणवीस ने आरोप लगाया कि जमीन की कीमत काफी ज्यादा थी, बावजूद इसके इसे सिर्फ 30 लाख में ख़रीदा गया। इसमें यह अहम बात है कि जब यह सौदा हुआ तब बेचनेवालों को टाडा लगा था। कानून के मुताबिक, टाडा के दोषी की संपत्ति सरकार जब्त करती है। मतलब इन आरोपीयों की जमीन सरकार जब्त करती, उससे पहले वह सस्ते में नवाब मलिक के परिवार की कंपनी ने कम कीमत में खरीद ली। प्रत्यक्ष रूप में इस सौदे के लिए कुछ ज्यादा रकम दी होगी तो वह टेरर फंडिंग कहलाएगी।
जब यह जमीन खरीदी गयी तब नवाब मलिक महाराष्ट्र सरकार में मंत्री थे। नवाब मलिक समाजवादी पार्टी से एनसीपी तक का राजनीतिक प्रवास कर चुके हैं। जब बम विस्फोट 1993 में हुए तब एनसीपीके मुखिया शरद पवार ही महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री थे। शरद पवार के ऊपर भी दाऊद गैंग के आरोपीयों को रक्षामंत्री रहते अपनेे रक्षा मंत्रालय के हवाई जहाज में मुंबई लाने का आरोप चर्चा में बार बार लगता आया है। जिसका ठीकरा तत्कालीन मेयर के सर फोड़ कर शरद पवार ने भले ही अपने आप को दरकिनार किया था लेकिन हवाई जहाज तो रक्षा मंत्रालय का था और हवाई जहाज में पवार रक्षामंत्री की भूमिका में सफर कर रहे थे, यह कैसे नकारा जा सकता है? शरद पवार की पार्टी का चेहरा बने नवाब मलिक अब जमीन खरीदने के कारण टेरर फंडिंग से इस विषय से जुड़ गए हैं।
अवैध खरीद-फरोत दाऊद के लोगों से
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राजनीति और आतंक का संबंध जब गहरा बनता है तो आम जनता का व्यवस्था से विश्वास उठने लगता है। राजनीति और आतंकवाद के संबंधों पर अधिक स्पष्टता से मुंबई के दंगों के संबंध में वोरा कमेटी की रिपोर्ट में तथ्य दिए गए हैं ऐसा कहा जाता है। बार बार यह रिपोर्ट सार्वजनिक करने की मांग होती है, लेकिन अभी वह प्रकट नहीं हुई है। हाल ही में वकील अश्विनी उपाध्याय ने उच्चतम न्यायालय में भी वोरा कमेटी की रिपोर्ट सार्वजनिक करने और उसपर उचित कारवाई हेतु याचिका दायर की है। मलिक के इस कांड से यह रिपोर्ट सार्वजनिक करने की जरूरत ज्यादा लग रही है। राजनेताओं के नकाब उतर गए तो गलत लोगों को आदर्श मान कर देश और समाज का होने वाला नुकसान तो टाला जा सकता है।
दहशतवाद से जुड़े इस संगीन मामले में नवाब मलिक गिरफ्तार होने से शिवसेना ज्यादा दिक्कत में है। हाल ही में कार्यकर्ता संमेलन में उद्धव ठाकरे ने 1993 के दंगों में शिवसेना ने मुंबई में हिंदुओं का रक्षण किया ऐसा दावा किया था। हर चुनाव में शिवसेना हिंदू की रक्षा करने का दावा करते हुए वोट बटोरने का काम करती आयी है। अब नवाब मलिक को आतंकवाद के संगीन मामले में गिरफ्तार होने के बावजूद मलिक का इस्तीफा मुख्यमंत्री नही ले सके। मुख्यमंत्री की कुर्सी बचाने हेतु शिवसेना को किस हद तक समझौता करना पड रहा है यह आम जनता देख रही है।
मुंबई नगर निगम के चुनाव अब कुछ दिन के बाद होंगे। मुंबई नगर निगम शिवसेना की असली शक्ति का केंद्र है। मुंबई नगर निगम में पिछले चुनाव में भारतीय जनता पार्टी ने लगभग शिवसेना की बराबरी की सफलता हासिल की थी। अब यह नगर निगम हाथ से फिसल जाने का डर शिवसेना को सता रहा है। इसलिए नवाब मलिक का खुल कर समर्थन करना उनके लिए बड़ा मुश्किल है। मुस्लिम वोट मिलने के लिए यह विषय आंदोलन के रूप में उछालना एनसीपी को फायदेमंद लगता है। कांग्रेस इस विषय में कोई भूमिका लेने को तैयार नही है। महाविकास आघाड़ी के तीनों दल इस विषय में तीन दिशा में बटें लग रहे हैं। नवाब मलिक को जब ईडी के हिरासत से कड़ी निगरानी में न्यायालय लाया जा रहा था तब बाहर निकलते ही वे किसी योद्धा की तरह हाथ ऊपर करके नारा देने का इशारा करके हम लड़ने को तैयार हैं, ऐसा इशारा कर रहे थे। एनसीपी के कुछ लोग सोशल मीडिया पर ‘वी स्टैंड फार नवाब मलिक’ यह मुहिम चला रहे थे। यह चित्र देशभक्त समाज के लिए शर्मनाक है।
राजनीतिक दल और नेता अपने निजी फायदे के लिए देशहित और समाज के हित को ताक पर रखते हैं। यहां तक कि दहशतवाद का साथ देने में उन्हें जरा भी हिचकिचाहट नहीं है। यह चित्र जो नवाब मलिक के विषय में सामने आया है दुर्भाग्यपूर्ण है। जो देशहित से सौदा करेगा उसे चुनाव में अगर मतदाताओं ने वोट न देने का निर्णय किया तो यह चित्र तुरन्त दुरूस्त हो सकता है। इस दिशा में जनजागरण करना आवश्यक है। सिद्धांत को छोड़ जब राजनीतिक लड़ाई निजी संकुचित स्वार्थ का क्षेत्र बन जाती है तो देश और समाज का हित खतरे में पड़ जाता है।
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