महेश दत्त
आपको याद होगा, कुछ साल पहले तक आप में से बहुत से लोगों को एक खास तरह के ई-मेल मिलते थे। उनमें लिखा रहता था कि ‘मैं फलां देश का राजकुमार या राजकुमारी हूं। मेरे पिता या दादा मेरे लिए बहुत संपत्ति छोड़ गए हैं और मैं उसका आपके देश में निवेश करना चाहता हूं।’ इसके लिए आपसे आपके बैंक खाते की जानकारी मांगी जाती थी और पासवर्ड इत्यादि मांगा जाता था। साथ ही, आपसे थोड़ी-सी रकम भेजने के लिए कहा जाता था। हमें यकीन है कि आप में से बहुत से लोग इस झांसे में आए होंगे। अंतत: जांच में यह देखा गया कि ऐसे ई-मेल किन देशों से आ रहे हैं और फिर उन देशों पर इंटरनेट के प्रतिबंध लगाए गए। अब उन देशों पर ऐसे प्रतिबंध भी हैं कि वे एक सीमा से अधिक रकम को विदेश नहीं भेज सकते। पिछले दिनों पाकिस्तान में भी कुछ ऐसा हुआ है, जिसके कारण ऐसे प्रतिबंधों के उस पर लगने की संभावनाएं बहुत दूर नहीं हैं। ऐसा होने के पीछे तीन घटनाएं हैं, जिन पर हम यहां बात करेंगे।
आपको याद होगा कि जब डोनाल्ड ट्रंप अमेरिका के राष्ट्रपति चुने गए थे, तब इस बात के आरोप लगे थे कि उस चुनाव में रूस सरकार ने कुछ धांधली करवाई थी। बाद में जब राष्ट्रपति जो बाइडन अमेरिका के राष्ट्रपति बने तो पिछले चुनाव में हुई धांधली की रिपोर्ट को सामने लाया गया। इस रिपोर्ट से पता लगा कि उस चुनाव में धांधली के लिए इस्तेमाल हुए सॉफ्टवेयर में हेर-फेर कराची से की गई थी। रिपोर्ट आने के बाद पाकिस्तान में कार्रवाई की गई और इसमें शामिल लोगों को पकड़कर जेल में डाल दिया गया। जिन लोगों को पकड़ा गया, उनका पक्ष था कि उन्हें धांधली के बारे में कोई जानकारी नहीं थी। उन्हें सिर्फ एक सॉफ्टवेयर पर कुछ काम करने की जिम्मेदारी दी गई थी, जिसे उन्होंने किया और इसकी एवज में उन्हें भुगतान किया गया था। यह बात सही हो सकती है, लेकिन अनजाने में ही वे एक अंतरराष्ट्रीय साजिश का हिस्सा बन गए थे।
दूसरी घटना पिछले साल की है। पाकिस्तान पर चल रही हमारी इस लेख शृंखला की पहली कड़ी में हमने आपको अमेरिका स्थित पाकिस्तानी पत्रकार अहमद नूरानी के बारे में बताया था। नूरानी ने यह खबर दी थी कि पाकिस्तान के सर्वोच्च न्यायालय के पूर्व प्रधान न्यायाधीश साकिब निसार ने गिलगित- बाल्टिस्तान की अपनी यात्रा के दौरान अपने एक सहयोगी जज को निर्देश दिया था कि वे नवाज शरीफ और उनकी बेटी मरियम नवाज को पाकिस्तान में होने वाले चुनाव से पहले जमानत न दें। उन्होंने यह भी कहा था कि फौज इमरान खान को चुनाव जिताकर सत्ता में लाने का फैसला कर चुकी है और न्यायपालिका को उसमें अपना सहयोग देना है।
इस संदर्भ में अमेरिका की गैरेट नामी प्रयोगशाला से साकिब निसार की आवाज की फॉरेंसिक जांच कराई गई। यह वही गैरेट प्रयोगशाला है, जहां से अमेरिका की खुफिया जांच एजेंसियां भी फॉरेंसिक जांच करवाती हैं। अहमद नूरानी की खबर बाहर आने के बाद इस प्रयोगशाला के नाम का पता लगा और इसके तुरंत बाद पाकिस्तान में इमरान सरकार के सोशल मीडिया को चलाने वाले भाड़े के लोगों ने इस प्रयोगशाला को धमकी और गालियों भरे संदेश भेजने शुरू कर दिए। इन संदेशों की संख्या इतनी ज्यादा थी कि प्रयोगशाला को अपने नंबर को बंद करना पड़ा। इस बात की जानकारी वहां की सुरक्षा व्यवस्था की जिम्मेदार संस्थाओं को दे दी गई।
तीसरी घटना पिछले हफ्ते की है। लंदन में प्रवास कर रहे पाकिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्री नवाज शरीफ के स्वास्थ्य को लेकर एक रिपोर्ट पाकिस्तान भेजी गई। रिपोर्ट को बनाने वाले डॉक्टर थे, डॉ. फैयाज शॉल। डॉ. शॉल अमेरिका के प्रतिष्ठित हृदय रोग विशेषज्ञ हैं। उनकी प्रतिष्ठा का आलम यह है कि अमेरिका के बहुत से सीनेटर भी उनसे इलाज करवाते हैं। डॉ. शॉल ने अपनी रिपोर्ट में बताया कि नवाज शरीफ अभी यात्रा के काबिल नहीं हैं। उन्होंने अपनी रिपोर्ट में यह भी बताया कि नवाज शरीफ को मारने की तीन कोशिशें हो चुकी हैं और यदि उन्हें एकांतवास में रखा गया या किसी तरह का मानसिक दबाव बनाया गया तो उन्हें हृदय रोग संबंधी परेशानियां हो सकती हैं।
इस रिपोर्ट का आना था कि सोशल मीडिया के सभी भाड़े के लोग डॉ. फैयाज शॉल के पीछे पड़ गए और उन्हें गालियां और धमकी भरे संदेश पहुंचने लगे। डॉक्टर साहब ने तुरंत इसकी जानकारी अमेरिकी कांग्रेस और एफबीआई को दे दी। एफबीआई ने इसकी जांच शुरू कर दी है। अपनी जांच में उन्होंने डॉ. शॉल को आने वाले ई-मेल के आईपी एड्रेस का पता लगाना शुरू किया। यहां यह बताना अनुचित न होगा कि इमरान सरकार के मीडिया सेल के कुछ लोग प्रधानमंत्री कार्यालय में विशेष सलाहकार डॉ. शाहबाज गिल की निगरानी में काम करते हैं। सूत्र बताते हैं कि एफबीआई को अपनी जांच में यह पता लग चुका है कि यह आईपी एड्रेस पाकिस्तान में कहां से उत्पन्न हो रहे हैं। आपको याद होगा कि पाकिस्तान पहले ही एफएटीएफ की ग्रे सूची में है। दूसरी तरफ, पाकिस्तान पर अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष का शिकंजा भी कस रहा है। विश्वस्त सूत्रों का मानना है कि आर्थिक प्रतिबंध लगने में चाहे देर हो लेकिन किसी देश के विरुद्ध लगने वाले इंटरनेट प्रतिबंध पाकिस्तान से बहुत दूर नहीं हैं।
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