हिजाब अपने शरीर को ढकने के लिए होता है यह कोई पहचान का आधार नहीं है। हिजाब और भगवा में फर्क है, इस फर्क को लोगों को समझना चाहिए। रही बात स्कूलों की तो स्कूल अपने हिसाब से फैसला कर सकते हैं। यह बातें गुरुवार को कानपुर में जमीयत उलेमा के प्रदेश उपाध्यक्ष मौलाना अमीन उल हक अब्दुल्ला कासमी ने प्रेस वार्ता के दौरान कही।
उन्होंने कहा कि जमीयत उलेमा तीन दिवसीय इजलास मेराजुन्नबी कार्यक्रम करेगा। बताया कि 25, 26 और 27 फरवरी को रिजवी परेड ग्राउंड पर एक भव्य कार्यक्रम का आयोजन किया जा रहा है। इसमें महिलाओं को भी जरूर भेजें। उनका कहना है कि दीनी माहौल को बेहतर बनाने में महिलाओं की बड़ी भूमिका होती है। इस हकीकत को समझे और अपने बच्चों की बेहतरीन तबीयत के लिए महिलाओं को जागरूक करें।
केरल के राज्यपाल ने भी इसे साजिश करार दिया
कर्नाटक से शुरू हुए हिजाब विवाद को केरल के राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान एक साजिश करार देते हैं। वह कहते हैं कि इस साजिश का मकसद मुस्लिम बच्चियों के लिए अच्छी नौकरियों के दरवाजे बन्द करना है, ताकि धीरे—धीरे उनकी रुचि शिक्षा में समाप्त हो जाए और एक बार फिर से वे घरों में कैद होकर रह जाएं। अगर हम हिजाब को मजहब के ढांचे का बुनियादी स्तंभ मान लें तो फिर सामाजिक दबाव के चलते या तो हर मुस्लिम बच्ची हिजाब पहनने के लिए मजबूर होगी और अगर वह हिजाब नहीं पहनेगी तो फिर वह गुनाह के इस बोध के साथ जिंदा रहेगी कि वह अपने मजहब के आवश्यक सिद्धांत का उल्लंघन कर रही है। आज महिलाओं के लिए अच्छी नौकरियों के सभी दरवाजे खुले हुए हैं, जिसमें प्रशासनिक और पुलिस सेवाओं से लेकर जल, थल और वायुसेना भी शामिल हैं। हिजाब पहनकर उच्च शिक्षा लेने के बाद इन्हें कौन कंपनी या सुरक्षा एजेंसी नौकरी देंगी? क्या पुलिस सेवा, सुरक्षा, हवाई जहाज चलाने वाली संस्थाएं इनको स्वीकार करेंगी या नौकरी करने के लिए यह उस अवस्था में हिजाब उतारेंगी। इस साजिश का मकसद मुस्लिम बच्चियों के लिए अच्छी नौकरियों के दरवाजे बन्द करना है, ताकि धीरे—धीरे उनकी रुचि शिक्षा में समाप्त हो जाए और वे एक बार फिर घरों के अन्दर कैद हो जाएं। इसका नुकसान इन बच्चियों, उनके परिवारों के साथ देश को भी होगा। क्योंकि उनकी क्षमता और प्रतिभा देश को बनाने के काम में लगने के बजाय कुंठा में कैद होकर रह जाएगी।
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