पाकिस्तान में ईशनिंदा कानून के शिकंजे में आए एक और व्यक्ति को सजाए—मौत की सजा सुनाई गई है। पंजाब सूबे के शिया वसीम अब्बास पर 'पैगंबर को अपमानित' करने का आरोप लगाया गया था। फैसलाबाद की अदालत ने वसीम कोे दोषी पाया और उसे मौत की सजा के साथ ही 5 लाख पाकिस्तानी रुपए का जुर्माना भी भरने को कहा है।
पाकिस्तान में ईशनिंदा कानून की आड़ में किस कदर अत्याचार हो रहे हैं, यह कोई छुपी बात नहीं है। दुनियाभर में पाकिस्तान के इस कानून को 'शैतानी कानून' माना जाता है। अधिकांश मामलों में सुन्नी मुसलमान ज्यादातर अल्पसंख्यक हिन्दुओं, ईसाइयों, शियाओं, कादियानियों आदि पर सरसरी तौर पर कुरान को जलाने, पैगंबर का अपमान करने, इस्लाम को बदनाम करने आदि के आरोप लगाकर उन्हें वर्षों तक जेल में कैद करवाते रहे हैं। अदालतें उन्हें 'दोषी' पाती रही हैं और 'कठोर सजा देकर' दंडित करती रही हैं। कुछ माह पहले तो एक आठ साल के हिन्दू बच्चे को 'ईशनिंदा' के आरोप में जेल में डालने तक की हिमाकत की गई।
वसीम अब्बास शिया है, इसलिए आसानी से निशाने पर ले लिया गया और 'दोषी' करार दे दिया गया। फैसलाबाद की अदालत में अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश राणा सोहेल तारिक को वसीम को सूली टांगने का फरमान सुनाने में एक बार भी हिचक नहीं हुई होगी, क्योंकि उसका 'सबसे बड़ा अपराध' तो उसका शिया होना है।
फैसलाबाद की अदालत की अदालत ने सजाए मौत का फैसला सुनाने पर ही संतोष नहीं किया, बल्कि वसीम पर 5 लाख पाकिस्तानी रुपये का जुर्माना भी लगा दिया। कहा गया कि जुर्माना नहीं भरा तो अपराधी को दो साल कैद की सजा दी जाएगी।
वसीम अब्बास को राजधानी लाहौर से 180 किलोमीटर दूर के फैक्ट्री एरिया इलाके से 2020 में जून महीने में गिरफ्तार किया गया था। शिया मत के वसीम पर स्थानीय सुन्नी मुसलमानों ने पैगंबर के अपमान का दोष लगाते हुए उसकी पुलिस में शिकायत दर्ज करवा कर पकड़वा दिया था। वसीम के घरवाले हैरान—परेशान से कहते फिर रहे थे कि वसीम ने ऐसा कुछ नहीं किया या कहा है। लेकिन उनकी एक नहीं सुनी गई, सुनी जानी भी नहीं थी। इस्लामी पाकिस्तान में कोई अल्पसंख्यक ईशनिंदा कानून के शिकंजे में फंसा तो फिर फंस ही जाता है।
पाकिस्तान में कहीं किसी सुन्नी ने किसी दूसरे मत वाले की तरफ उंगली उठाकर जोर से 'इसने ईशनिंदा कर दी' कहा नहीं कि भीड़ उसे मार—मार कर अधमरा कर देती है और बाकी का 'अपराध साबित करने से लेकर दंड देने' तक का काम वहां की पुलिस और अदालतें कर देती हैं।
दुनिया के अनेक मानवाधिकार संगठनों ने पाकिस्तान के इस 'शैतानी कानून' के विरुद्ध आवाज उठाई है। लेकिन उस आवाज को इमरान खान का 'नया पाकिस्तान' भी सुनने से इनकार ही करता रहा है। मानवाधिकार संगठनों से जुड़े कार्यकर्ता जानते और बोलते हैं कि इस इस्लामवादी देश में अल्पसंख्यकों से 'हिसाब चुकता' करने के लिए सुन्नी मुसलमान इसकी आड़ लेते रहे हैं।
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