समान नागरिक संहिता समय की मांग
July 16, 2025
  • Read Ecopy
  • Circulation
  • Advertise
  • Careers
  • About Us
  • Contact Us
android app
Panchjanya
  • ‌
  • विश्व
  • भारत
  • राज्य
  • सम्पादकीय
  • संघ
  • वेब स्टोरी
  • ऑपरेशन सिंदूर
  • अधिक ⋮
    • जीवनशैली
    • विश्लेषण
    • लव जिहाद
    • खेल
    • मनोरंजन
    • यात्रा
    • स्वास्थ्य
    • धर्म-संस्कृति
    • पर्यावरण
    • बिजनेस
    • साक्षात्कार
    • शिक्षा
    • रक्षा
    • ऑटो
    • पुस्तकें
    • सोशल मीडिया
    • विज्ञान और तकनीक
    • मत अभिमत
    • श्रद्धांजलि
    • संविधान
    • आजादी का अमृत महोत्सव
    • मानस के मोती
    • लोकसभा चुनाव
    • वोकल फॉर लोकल
    • जनजातीय नायक
    • बोली में बुलेटिन
    • पॉडकास्ट
    • पत्रिका
    • ओलंपिक गेम्स 2024
    • हमारे लेखक
SUBSCRIBE
  • ‌
  • विश्व
  • भारत
  • राज्य
  • सम्पादकीय
  • संघ
  • वेब स्टोरी
  • ऑपरेशन सिंदूर
  • अधिक ⋮
    • जीवनशैली
    • विश्लेषण
    • लव जिहाद
    • खेल
    • मनोरंजन
    • यात्रा
    • स्वास्थ्य
    • धर्म-संस्कृति
    • पर्यावरण
    • बिजनेस
    • साक्षात्कार
    • शिक्षा
    • रक्षा
    • ऑटो
    • पुस्तकें
    • सोशल मीडिया
    • विज्ञान और तकनीक
    • मत अभिमत
    • श्रद्धांजलि
    • संविधान
    • आजादी का अमृत महोत्सव
    • मानस के मोती
    • लोकसभा चुनाव
    • वोकल फॉर लोकल
    • जनजातीय नायक
    • बोली में बुलेटिन
    • पॉडकास्ट
    • पत्रिका
    • ओलंपिक गेम्स 2024
    • हमारे लेखक
Panchjanya
panchjanya android mobile app
  • होम
  • विश्व
  • भारत
  • राज्य
  • सम्पादकीय
  • संघ
  • ऑपरेशन सिंदूर
  • वेब स्टोरी
  • जीवनशैली
  • विश्लेषण
  • मत अभिमत
  • रक्षा
  • धर्म-संस्कृति
  • पत्रिका
होम भारत

समान नागरिक संहिता समय की मांग

by WEB DESK
Feb 24, 2022, 12:24 am IST
in भारत, दिल्ली
प्रतीकात्मक चित्र

प्रतीकात्मक चित्र

FacebookTwitterWhatsAppTelegramEmail
किसी भी सेकुलर देश में पांथिक आधार पर अलग-अलग कानून नहीं होता, लेकिन भारत में आज भी हिंदू विवाह कानून, पारसी विवाह कानून और ईसाई विवाह कानून लागू हैं। जब तक भारतीय नागरिक संहिता लागू नहीं होगी, तब तक भारत को सेकुलर देश नहीं कहा जा सकता

अश्वनी उपाध्याय
राष्ट्रीय एकता के लिए समान नागरिक संहिता जरूरी है। भारत जैसे लोकतांत्रिक देश के लिए यह एक शक्ति का काम कर सकती है। चूंकि भारत अनेकता में एक वाला देश है, इसलिए समान नागरिक संहिता के जरिये अनेकता में एकता को सुदृढ़ किया जा सकता है। व्यावहारिक दृष्टि से देखा जाए तो यह भविष्य में एक सामाजिक उत्थान करने वाला उपकरण साबित हो सकता है। देश में अलग-अलग ‘पर्सनल लॉ’ लागू होने से अनेक परेशानियां हैं। इन कानूनों को खत्म कर समान कानून लागू करने पर एकरूपता तो आएगी ही, समुदाय व समाज भी एक सूत्र में बंधेगा। 

मुस्लिम पर्सनल लॉ में बहु-विवाह करने की छूट है, लेकिन अन्य धर्म-पंथ मेंं ‘एक पति-एक पत्नी’ का नियम बहुत कड़ाई से लागू है। बांझपन या नपुंसकता जैसा उचित और व्यावहारिक कारण होने पर भी हिंदू, पारसी और ईसाई के लिए दूसरा विवाह गंभीर अपराध है। बहुविवाह के लिए भादंसं की धारा 494 के तहत 7 साल की सजा का प्रावधान है। लेकिन मुस्लिम समुदाय पर यह लागू नहीं होता। भारत जैसे सेकुलर देश में मुसलमान कई निकाह कर सकता है, लेकिन इस्लामिक देश पाकिस्तान में पहली बीवी की इजाजत के बिना शौहर दूसरा निकाह नहीं कर सकता। हिंदू विवाह कानून में तो महिला-पुरुष को लगभग समान अधिकार प्राप्त है, लेकिन मुस्लिम और पारसी पर्सनल लॉ में लड़कियों के अधिकारों में काफी भेदभाव है। मुस्लिम और पारसी लड़कियों को पुरुषों से कमतर समझा जाता है। कहने को तो देश में संविधान यानी समान विधान है, लेकिन विवाह की न्यूनतम उम्र भी सबके लिए समान नहीं है। मुस्लिम लड़कियों के वयस्क होने की उम्र तय नहीं है। माहवारी शुरू होने पर लड़की को निकाह योग्य मान लिया जाता है। इसलिए 9 वर्ष की लड़कियों का निकाह कर दिया जाता है, जबकि दूसरे धर्म-मत में लड़कियों की शादी की उम्र 18 वर्ष और लड़कों की 21 वर्ष है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार, 21 वर्ष से पहले न तो लड़की शारीरिक और मानसिक रूप से परिपक्व होती है और न ही लड़का। चूंकि 21 वर्ष से पहले बच्चे ग्रेजुएशन भी नहीं कर पाते और आर्थिक रूप से माता-पिता पर निर्भर होते हैं, इसलिए भी विवाह की न्यूनतम उम्र सबके लिए समान यानी 21 वर्ष करना नितांत आवश्यक है।

 
इसी तरह, विवाह विच्छेद का आधार भी सबके लिए समान नहीं है। तीन तलाक के अवैध घोषित होने के बावजूद इस्लाम में दूसरे मौखिक तलाक (तलाक-ए-हसन एवं तलाक-ए-अहसन) प्रचलित हैं। व्यभिचार के आधार पर मुस्लिम शौहर बीवी को तलाक दे सकता है, लेकिन बीवी अपने शौहर को तलाक नहीं दे सकती। हिंदू, पारसी और ईसाई मत में तो  व्यभिचार तलाक का आधार ही नहीं है। कोढ़ जैसी लाइलाज बीमारी के आधार पर हिंदू और ईसाई में तलाक हो सकता है, पर पारसी और इस्लाम में नहीं। हिंदू धर्म में कम उम्र में विवाह को आधार बनाकर विवाह विच्छेद हो सकता है, लेकिन पारसी, ईसाई और इस्लाम में यह संभव नहीं है। वहीं, हिंदू, ईसाई, पारसी में विवाह-विच्छेद केवल न्यायालय के माध्यम से ही हो सकता है। एक ओर विवाह-विच्छेद के बाद हिंदू बेटियों को गुजारा-भत्ता मिलता है, लेकिन मुस्लिम बेटियों को नहीं। भारतीय दंड संहिता की तर्ज पर सभी नागरिकों के लिए एक समग्र समावेशी और समान कानून होना चाहिए चाहे वह हिंदू हो या मुसलमान, पारसी हो या ईसाई। इससे धार्मिक-पांथिक और लिंग आधारित विसंगति समाप्त होगी।  मुसलमानों में प्रचलित मौखिक तलाक की न्यायपालिका के प्रति जवाबदेही नहीं होने के कारण मुस्लिम बेटियों को हमेशा भय के वातावरण में रहना पड़ता है। तुर्की जैसे मुस्लिम बहुल देश में भी अब मौखिक तलाक मान्य नहीं है। 

इसी तरह, मुस्लिम कानून में संपत्ति की मौखिक वसीयत और दान मान्य है, लेकिन दूसरे धर्म-पंथ में पंजीकृत वसीयत व दान ही मान्य है। मुस्लिम कानून में एक-तिहाई से अधिक संपत्ति की वसीयत नहीं की जा सकती है, जबकि धर्म-पंथ में शत-प्रतिशत संपत्ति की वसीयत की जा सकती है। मुस्लिम कानून में ‘उत्तराधिकार’ की व्यवस्था अत्यधिक जटिल है। पैतृक संपत्ति में बेटा-बेटी के अधिकार में बहुत भेदभाव है, जबकि दूसरे धर्म में विवाहोपरांत अर्जित संपत्ति में पत्नी के अधिकार पारिभाषित नहीं हैं और उत्तराधिकार कानून भी बहुत जटिल हैं। विवाह के बाद पैतृक संपत्ति में बेटा-बेटी तथा बेटा-बहू को समान अधिकार प्राप्त नहीं है। इसमें धर्म व लिंग आधारित तमाम विसंगतियां हैं। 

हिंदू, मुस्लिम, पारसी और ईसाई के लिए गोद लेने व भरण-पोषण का नियम भी अलग-अलग है। मुस्लिम महिला गोद नहीं ले सकती है, जबकि धर्म-मत में भी पुरुष द्वारा ही गोद लेने की व्यवस्था लागू है। इसके अलावा, अलग-अलग मत-मजहब के लिए अलग-अलग पर्सनल लॉ होने से मुकदमों की सुनवाई में बहुत समय लगता है। भारतीय दंड संहिता की तरह सभी नागरिकों के लिए राष्ट्रीय स्तर पर एक समग्र समावेशी एवं एकीकृत भारतीय नागरिक संहिता लागू होने से न्यायालय का बहुमूल्य समय बचेगा और नागरिकों को त्वरित न्याय मिलेगा। अलग-अलग संप्रदाय के लिए लागू अलग-अलग ब्रिटिश कानूनों से लोगों के मन में हीन भावना व्याप्त है। समान नागरिक संहिता लागू होने से समाज को सैकड़ों जटिल, बेकार और पुराने कानूनों से ही नहीं, गुलामी की हीन भावना से भी मुक्ति मिलेगी। पर्सनल लॉ के कारण रूढ़िवाद, सम्प्रदायवाद, क्षेत्रवाद, भाषावाद के साथ अलगाववादी और कट्टरपंथी मानसिकता भी बढ़ रही है और हम एक अखंड राष्ट्र के निर्माण की दिशा में तेजी से आगे नहीं बढ़ पा रहे हैं। सभी नागरिकों के लिए राष्ट्रीय स्तर पर एक समग्र समावेशी एवं एकीकृत भारतीय नागरिक संहिता लागू होने से 'एक भारत, श्रेष्ठ भारतझ् का सपना साकार होगा।  

अनुच्छेद-14 के अनुसार देश के सभी नागरिक समान हैं। अनुच्छेद-15 जाति, पांथिक, भाषा, क्षेत्र और जन्म के आधार पर भेदभाव की अनुमति नहीं देता। अनुच्छेद -16 सबको समान अवसर उपलब्ध कराता है, अनुच्छेद-19 देश मे कहीं भी पढ़े, बसने ओर रोजगार करने का अधिकार देता है, जबकि अनुच्छेद-21 सबको सम्मानपूर्वक जीने तथा अनुच्छेद-25 मत-मजहब पालन का अधिकार देता है। विवाह की न्यूनतम उम्र, विवाह विच्छेद का आधार, गुजारा भत्ता, गोद लेने का नियम, विरासत और वसीयत का नियम तथा संपत्ति का अधिकार सहित उपरोक्त सभी विषय नागरिक अधिकार, मानवाधिकार, लैंगिक न्याय, लैंगिक समानता और जीवन जीने के अधिकार से संबंधित हैं। इनका मजहब से कोई संबंध नहीं है। लेकिन आजादी के 75 साल बाद भी मजहब के नाम पर महिला-पुरुष में भेदभाव जारी है। 

संविधान निर्माताओं ने अनुच्छेद-44 के माध्यम से ‘समान नागरिक संहिता’ की कल्पना की थी, ताकि सभी को समान अधिकार व समान अवसर मिले और देश की एकता-अखंडता मजबूत हो। लेकिन वोट बैंक की राजनीति के कारण आज तक ‘समान नागरिक संहिता या भारतीय नागरिक संहिता’ का खाका भी नहीं बनाया गया। 

अनुच्छेद- 37 में स्पष्ट रूप से लिखा है कि नीति निर्देशक सिद्धांतों को लागू करना सरकार का नैतिक कर्तव्य है। किसी भी सेकुलर देश में पांथिक आधार पर अलग-अलग कानून नहीं होता, लेकिन हमारे यहां आज भी हिंदू विवाह कानून, पारसी विवाह कानून और ईसाई विवाह कानून लागू है। जब तक भारतीय नागरिक संहिता लागू नहीं होगी, तब तक भारत को सेकुलर देश नहीं कहा जा सकता। यदि गोवा के सभी नागरिकों के लिए एक ‘समान नागरिक संहिता’ लागू हो सकती है तो देश के सभी नागरिकों के लिए एक ‘भारतीय नागरिक संहिता’ क्यों नहीं लागू हो सकती है?

जाति, धर्म, भाषा, क्षेत्र और लिंग आधारित अलग-अलग कानून 1947 के विभाजन की बुझ चुकी आग में सुलगते हुए धुएं की तरह हैं जो विस्फोटक रूप अख्तियार कर किसी भी समय देश की एकता को खंडित कर सकते हैं। इसलिए पर्सनल लॉ को खत्म कर एक ‘भारतीय नागरिक संहिता’ को लागू करना होगा।      
 

ShareTweetSendShareSend
Subscribe Panchjanya YouTube Channel

संबंधित समाचार

ए जयशंकर, भारत के विदेश मंत्री

पाकिस्तान ने भारत के 3 राफेल विमान मार गिराए, जानें क्या है एस जयशंकर के वायरल वीडियो की सच्चाई

Uttarakhand court sentenced 20 years of imprisonment to Love jihad criminal

जालंधर : मिशनरी स्कूल में बच्ची का यौन शोषण, तोबियस मसीह को 20 साल की कैद

पिथौरागढ़ में सड़क हादसा : 8 की मौत 5 घायल, सीएम धामी ने जताया दुःख

अमृतसर : स्वर्ण मंदिर को लगातार दूसरे दिन RDX से उड़ाने की धमकी, SGPC ने की कार्रवाई मांगी

राहुल गांधी ने किया आत्मसमर्पण, जमानत पर हुए रिहा

लखनऊ : अंतरिक्ष से लौटा लखनऊ का लाल, सीएम योगी ने जताया हर्ष

टिप्पणियाँ

यहां/नीचे/दिए गए स्थान पर पोस्ट की गई टिप्पणियां पाञ्चजन्य की ओर से नहीं हैं। टिप्पणी पोस्ट करने वाला व्यक्ति पूरी तरह से इसकी जिम्मेदारी के स्वामित्व में होगा। केंद्र सरकार के आईटी नियमों के मुताबिक, किसी व्यक्ति, धर्म, समुदाय या राष्ट्र के खिलाफ किया गया अश्लील या आपत्तिजनक बयान एक दंडनीय अपराध है। इस तरह की गतिविधियों में शामिल लोगों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई की जाएगी।

ताज़ा समाचार

ए जयशंकर, भारत के विदेश मंत्री

पाकिस्तान ने भारत के 3 राफेल विमान मार गिराए, जानें क्या है एस जयशंकर के वायरल वीडियो की सच्चाई

Uttarakhand court sentenced 20 years of imprisonment to Love jihad criminal

जालंधर : मिशनरी स्कूल में बच्ची का यौन शोषण, तोबियस मसीह को 20 साल की कैद

पिथौरागढ़ में सड़क हादसा : 8 की मौत 5 घायल, सीएम धामी ने जताया दुःख

अमृतसर : स्वर्ण मंदिर को लगातार दूसरे दिन RDX से उड़ाने की धमकी, SGPC ने की कार्रवाई मांगी

राहुल गांधी ने किया आत्मसमर्पण, जमानत पर हुए रिहा

लखनऊ : अंतरिक्ष से लौटा लखनऊ का लाल, सीएम योगी ने जताया हर्ष

छत्रपति शिवाजी महाराज

रायगढ़ का किला, छत्रपति शिवाजी महाराज और हिंदवी स्वराज्य

शुभांशु की ऐतिहासिक यात्रा और भारत की अंतरिक्ष रणनीति का नया युग : ‘स्पेस लीडर’ बनने की दिशा में अग्रसर भारत

सीएम धामी का पर्यटन से रोजगार पर फोकस, कहा- ‘मुझे पर्यटन में रोजगार की बढ़ती संख्या चाहिए’

बांग्लादेश से घुसपैठ : धुबरी रहा घुसपैठियों की पसंद, कांग्रेस ने दिया राजनीतिक संरक्षण

  • Privacy
  • Terms
  • Cookie Policy
  • Refund and Cancellation
  • Delivery and Shipping

© Bharat Prakashan (Delhi) Limited.
Tech-enabled by Ananthapuri Technologies

  • Search Panchjanya
  • होम
  • विश्व
  • भारत
  • राज्य
  • सम्पादकीय
  • संघ
  • ऑपरेशन सिंदूर
  • वेब स्टोरी
  • जीवनशैली
  • विश्लेषण
  • लव जिहाद
  • खेल
  • मनोरंजन
  • यात्रा
  • स्वास्थ्य
  • धर्म-संस्कृति
  • पर्यावरण
  • बिजनेस
  • साक्षात्कार
  • शिक्षा
  • रक्षा
  • ऑटो
  • पुस्तकें
  • सोशल मीडिया
  • विज्ञान और तकनीक
  • मत अभिमत
  • श्रद्धांजलि
  • संविधान
  • आजादी का अमृत महोत्सव
  • लोकसभा चुनाव
  • वोकल फॉर लोकल
  • बोली में बुलेटिन
  • ओलंपिक गेम्स 2024
  • पॉडकास्ट
  • पत्रिका
  • हमारे लेखक
  • Read Ecopy
  • About Us
  • Contact Us
  • Careers @ BPDL
  • प्रसार विभाग – Circulation
  • Advertise
  • Privacy Policy

© Bharat Prakashan (Delhi) Limited.
Tech-enabled by Ananthapuri Technologies