पाकिस्तान में इन दिनों सियासी हलचलें इतनी तेजी से चल रही हैं कि इस्लामाबाद से जब तक खबर रावलपिंडी तक पहुंचती है तब तक उसमें नया मोड़ आ जाता है। प्रधानमंत्री इमरान खान और जनरल बाजवा की सेना के बीच जबरदस्त खींचतान चल रही है। अंदर की खबर है कि जनरल बाजवा अपना कार्यकाल बढ़ाने के इमरान के मीठे बोलों से इतर सरकार को ही बदलने की जुगत में लगे हैं। इस बीच कल की एक खबर चौंकाने वाली तो है लेकिन वहां की वर्तमान परिस्थितियों को देखते हुए इतनी अचंभे वाली भी नहीं।
अब इमरान खान की सरकार ने एक नया कानून बना दिया है जो बहुत हद तक अभिव्यक्ति की आजादी पर ही सवाल खड़े कर रहा है। इस कानून में सरकार को ऐसे व्यक्ति को पांच साल की सजा देने का प्रावधान है जो पाकिस्तान की सेना को लेकर टीका—टिप्पणी करता हो। साथ ही, कोई सोशल मीडिया पर सेना के विरुद्ध 'झूठी खबरें' फैलाने की कोशिश करेगा तो वह पांच साल तक के लिए जेल भेजा जा सकता है।
पाकिस्तानी मानवाधिकार आयोग तक ने इस नए कानून को लोकतंत्र विरोधी करार दिया है। आयोग ने कहा है कि भविष्य में इस कानून का प्रयोग सरकार विरोधी स्वरों को कुचलने के लिए किया जाएगा और सवाल उठाने वालों के विरुद्ध कड़ी कार्रवाई की जाएगी। इसके तहत हिरासत में लिए जाने वाले व्यक्ति को जमानत नहीं मिल पाएगी, पूरे मुकदमे के दौरान वह जेल में रहने को मजबूर होगा।
इस कानून ने पाकिस्तान के राजनीतिक—सामाजिक गलियारों में एक बहस को जन्म दिया है। इस पर सवाल उठाने वाले कहते हैं कि देश में 'अभिव्यक्ति की आजादी' पर तेजी से रोक लगाई जा रही है। इस नए कानून के अंतर्गत सेना ही नहीं, बल्कि अदालतों, जजों, वकीलों तथा सरकारी अफसरों तक को भी सोशल मीडिया पर किसी तरह की शिकायत का सामना नहीं करना पड़ेगा, उन्हें भी आलोचनाओं से राहत मिल जाएगी। गत सप्ताह पाकिस्तान सरकार ने इस नए कानून को हरी झंडी दिखा दी है। इतना ही नहीं, राष्ट्रपति भी इस कानून पर दस्तखत कर चुके हैं। यानी अब यह कानून देश में लागू हो चुका है।
उल्लेखनीय है कि इस नए कानून को 90 दिनों के भीतर संसद में पारित किया जाना जरूरी है। फिलहाल परिस्थितियों ऐसी हैं कि इमरान खान की अगुआई वाली सत्तारूढ़ गठबंधन सरकार को इसे पारित कराने में दिक्कत नहीं होगी। पिछले कुछ वर्षों में पाकिस्तान में बोलने, लिखने की आजादी पर अंकुश लगा है। जिस तरह से वहां हाल में सरकार या इमरान खान के विरुद्ध टिप्पणी करने वाले वरिष्ठ पत्रकारों की धरपकड़ की गई है, उससे संकेत साफ हैं कि सरकार अपनी आलोचना नहीं सुनना चाहती है। वरिष्ठ पत्रकार मोहसिन बेग को गिरफ्तार हुए अभी चार—पांच दिन ही हुए हैं। उन्होंने टेलीविजन चैनल पर एक बहस में इमरान पर टिप्पणी की थी। कहते हैं, इसी बात पर उन्हें बिना कारण बताए घर से पकड़कर बंद कर दिया गया।
इतना ही नहीं, इमरान सरकार ने अनेक पुराने मीडिया संस्थानों और सोशल मीडिया के विरुद्ध भी कड़े कदम उठाए हैं। उस इस्लामी देश में फौज का ऐसा दबदबा रहा है कि उस पर या उसकी एजेंसियों पर छींटाकशी बर्दाश्त के बाहर की बात रही है। आजाद ख्याल लोग मानते हैं कि अब इस नए कानून से इस ओर दिक्कतें और बढ़ जाएंगी।
दिलचस्प बात यह है कि पाकिस्तानी मानवाधिकार आयोग तक ने इस नए कानून को लोकतंत्र विरोधी करार दिया है। आयोग ने कहा है कि भविष्य में इस कानून का प्रयोग सरकार विरोधी स्वरों को कुचलने के लिए किया जाएगा और सवाल उठाने वालों के विरुद्ध कड़ी कार्रवाई की जाएगी। ध्यान देने की बात यह भी है कि इस कानून में मानहानि के वर्तमान कानून में भी बदलाव किया गया है। इसके तहत पांच साल की सजा के दायरे में अब कोई भी कंपनी, संस्था व संगठन, सरकारी प्राधिकरण या कोई एजेंसी को भी आ गई है। इसमें पहले तीन साल दंड का प्रावधान था जो अब पांच साल कर दिया गया है। इसके तहत हिरासत में लिए जाने वाले व्यक्ति को जमानत नहीं मिल पाएगी, पूरे मुकदमे के दौरान वह जेल में रहने को मजबूर होगा।
पूरे पाकिस्तान में इस कानून के विरुद्ध उठ रही आवाजों के संदर्भ में कानून मंत्री फारुक नसीम का कहना है कि यह कोरी अफवाह है कि इस कानून को मीडिया का मुंह बंद करने में इस्तेमाल किया जाएगा। नसीम ने कहा है कि मीडिया कैसी भी आलोचना तो कर सकता है, लेकिन फर्जी खबरें नहीं फैलानी चाहिए। इस बारे में उन्होंने तलाक से जुड़ी कुछ झूठी खबरों का जिक्र किया। बहरहाल, पाकिस्तान के विपक्षी दल कह रहे हैं कि साइबर अपराध कानूनों में परिवर्तन के लिए राष्ट्रपति की तरफ से अध्यादेश जारी करने के तरीके का इस तरह इस्तेमाल करना एक कठोर और आसुरी कदम है।
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