कुछ ही दिनों में जनता लोकसभा तथा विभिन्न विधानसमाओं के अपने प्रतिनिधि निर्वाचित करने और आगामी पांच वर्षों के लिए उनके हाथों में सत्ता सौंपने के लिए मतदान करेगी। पांच साल का समय काफी लम्बा होता है। इस काल में उस जनता का हित भी हो सकता है और अहित भी हो सकता है; जो प्रतिनिधियों की प्रकृति पर अवलंम्बित है। संविधान में इस प्रकार की कोई व्यवस्था नहीं है कि ऐसे प्रतिनिधियों को वापस बुलाया जा सके, जो मतदाताओं के प्रति अपने कर्तव्य का पालनन कर सकें अथवा जनता को दिए गए अपने वचनों का पालन न कर सकें। इस प्रकारकी विफलता अथवा समय-समय पर जानबूझकर जनता की इच्छा की अवहेलना के उदाहरण कोई कम नहीं हैं।
हिन्दू समाज के मूलाधार की उपेक्षा करते हुए जो विभिन्न कानून पारित किए गए हैं, जनता द्वारा उठाई गई इस मांगकि कानून के द्वारा गोहत्या बन्द की जाए, जिस प्रकार अवहेलना की गई है, उपर्युक्त कथन के कुछ उज्ज्वल उदाहरण हैं। भ्रष्टाचार के अनेकानेक मामले; दक्षता का अभाव (समयसे पूर्व आय-व्ययक प्रकट हो जाना जिसका उज्ज्वल प्रतीक है); विदेश विभाग मंत्रालय से महत्वपूर्ण फाइलों का गायब हो जाना; ससम्मान गोवा और कश्मीर की समस्याओं को सुलझाने में विफल रहना; विश्व में किसी को भी सच्चा मित्र न बना पाना और उसके कारण सुरक्षा परिषद में हमारे राष्ट्रकी प्रतिष्ठा को धक्का लगना, अगणित गलतियों और उपेक्षाओं में से ये कुछ ही उदाहरण हैं-ऐसी बातों के लिए उत्तरदायी प्रतिनिधियों को भी अपदस्थ नहीं किया जा सका, क्योंकि संविधान में इस प्रकार की कोई व्यवस्था नहीं कि मतदाता अपने ऐसे प्रतिनिधियों को वापस बुला सकें, जिनके कृत्यों तथाविचारों से वे सहमत नहीं हैं।
मतदाता का दायित्व
अत: मतदाता का दायित्व अत्यधिक है। यह उसके हाथ में है कि वह आगामी पांच वर्षों के लिए देशके भाग्यका पट्टा किसके नाम लिख दे क्योंकि यदि एक बार उसने इस या उस दल के पक्ष में अपना मत डाल दिया तो उसके पास कोई भी साधन नहीं रहेगा कि जिससे वह अपनी गलती सुधार सके। इतना ही नहीं, उसके गलत निर्णय के कारण देश को जो महानहानि पहुंचेगी, उसे सुधरने या रोकने का भी उसके पास कोई साधन नहीं रहेगा। इसलिए इस समय प्रत्येक मतदाता के लिए सुअवसर है कि वह अपनी सामान्य बुद्धि का ठीक उपयोग करअपना मत प्रदान करे।
मतदाताओं को एक ऐसे अच्छे दल को चुनना होगा, जिसके प्रत्याशी चरित्र सम्पन्न हों,उनके हृदय में समस्त प्रकार की स्वार्थ भावनाओं से मुक्त राष्ट्र कार्य करने की प्रेरणा विद्यमान हो, योग्य हों और राष्ट्रीय विचारों के अनुसार कार्य करने की सिद्धता रखते हों। जबतक इस प्रकार का विवेक नहीं अपनाया जाता, तब तक पश्चात्ताप की स्थिति उत्पन्न होने की सदैव सम्भावना बनी रहेगी।
तब प्रश्न उठता है कि मतदाताओं को क्या करना चाहिए! कौन से दल को चुनना चाहिए? किस प्रकार के प्रत्याशियों का समर्थन करना चाहिए?
मैं किसी व्यक्ति या दल विशेष की वकालत नहीं करता। किन्तु एक ऐसे हिन्दू के नाते, जिसने अपनी सीमित तथा अल्प योग्यताओं को हिन्दू समाज की सेवा में लगा दिया हो, मैं दृढ़ता पूर्वक अपने अनुभव स्पष्ट करने का तथा कुछ सुझाव प्रस्तुत करने का प्रयास करूंगा।
अधिनायकवाद की ओर अग्रसर समाजवाद
यह बात प्रमाणित है कि समाजवाद आधुनिक यूरोप की धारणा है और व्यावहारिक रूप से वह अधिनायकवाद की ओर अग्रसर होती है और सामान्य जनता को दासता की जंजीरों में जकड़ती है। इसलिए वह चिमटी से भी छूने योग्य नहीं। प्रत्येक नागरिक को पूरी सतर्कता के साथ पुरस्कृत स्वाधीनता की रक्षा करनी चाहिए और किसी भी स्थिति में स्वयं को अधिनायकवादी दुष्प्रवृत्ति का दास नहीं बनने नहीं बनने देना चाहिए और न स्वयं को वृत्ति साधन हेतु दासता की जंजीरों में जकड़ने देना चाहिए। इसलिए उसे तथाकथित समाजवादी आदर्शों के प्रति सजग हो जाना चाहिए और इस प्रकार के असामाजिक सिद्धांतों को स्वीकार करने वाले लोगों की ओर से अपना मुंह मोड़ लेना चाहिए।
वास्तव में कम्युनिज्म और समाजवाद में कोई भी ऐसी चीज नहीं है, जिसे ग्रहण किया जाए। दोनों ही उस प्रतिक्रिया वादी विचार की प्रतिक्रिया हैं, जो राज्य और अर्थ तथा उत्पादन के सभी साधनों का केंद्रीकरण कुछ व्यक्तियों के हाथ में करना चाहता है, जीवन के समस्त अंगों प लौह नियंत्रण करना चाहता है और इस प्रकार मानव को जीवन शून्य, आनंद विहीन प्राणी बना देना चाहता है।
हिंदू विरोधी संस्थाएं
यह सभी संस्थाएं स्वयं को हिंदू विरोधी घोषित करती हैं। उदाहरण के बतौर उन विभिन्न कानूनों को देखा जा सकता है जो हिंदू प्रणाली में हस्तक्षेप करते हैं। हमारे समाज की विशिष्ट संस्कृति और धर्म के मूल पर आघात करना, गौ के मामले में हिंदू भावनाओं की अवहेलना करना तथा मुसलमानों के साथ पक्षपात करना, कांग्रेस द्वारा मुसलमानों को अधिक सीटें देकर मुस्लिम परस्त दृष्टिकोण प्रकट किया जाना-इस प्रकार के अनेक दृष्टांत समय-समय पर उपस्थित होकर इन दलों के हिंदू विरोधी दृष्टिकोण को प्रकट किया करते हैं। यदि इस प्रकार अहिंदू -जो प्राय: हिंदू विरोधी रूप में प्रकट होते हैं, शासन की बागडोर सौंप दी गई त हिंदू समाज, हिंदू धर्म, हिंदू संस्कृति और यहां तक कि वह सब कुछ, जिसे वह आदर की दृष्टि से देखते हैं, संकट में पड़ जाएगा।
मैंने अपने विचार हिंदू समाज के समक्ष प्रस्तुत किए हैं-वे सजग तथा सतर्क रहें तथा निश्चय पूर्वक उन्हीं व्यक्तियों और दलों को मत प्रदान करें जो हिंदू समाज और हिंदू तत्वज्ञान के निमित्त सर्वस्व दान कर चुके हैं; संकुचित भावनाओं से मुक्त हैं; प्रगतिशील, उदार तथा पवित्र दृष्टिकोण से युक्त हैं; विभिन्न दृष्टिकोणों के प्रति असहिष्णु नहीं हैं, वास्तव में तथा प्रत्यक्ष में हिंदू हैं; … और जो हृदय से हृदय मिलाकर कार्य करना जानते हैं तथा भारत माता, भारत की जनता तथा राष्ट्र के प्रति अनन्य भक्ति रखते हैं।
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