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महान साधक श्री रामकृष्ण परमहंस

WEB DESK by WEB DESK
Feb 17, 2022, 10:41 pm IST
in भारत, दिल्ली
स्वामी रामकृष्ण परमहंस

स्वामी रामकृष्ण परमहंस

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उनका जन्म पश्चिम बंगाल के हुगली जिले में कामारपुकुर गांव में 18 फरवरी 1836 को निर्धन ब्राहमण परिवार में हुआ था। जन्म पर ही प्रसिद्ध ज्योतिषियों ने उनके महान भविष्य की घोषणा कर दी थी। उन्हें बचपन में गदाधर नाम से पुकारा जाता था

 

रमेश सर्राफ धमोरा

स्वामी रामकृष्ण परमहंस महान संत एवं विचारक थे। उन्होंने सभी मतों की एकता पर जोर दिया था। उनका जन्म पश्चिम बंगाल के हुगली जिले में कामारपुकुर गांव में 18 फरवरी 1836 को निर्धन ब्राहमण परिवार में हुआ था। जन्म पर ही प्रसिद्ध ज्योतिषियों ने उनके महान भविष्य की घोषणा कर दी थी। उन्हें बचपन में गदाधर नाम से पुकारा जाता था।

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पांच वर्ष की उम्र में ही वे अद्भुत प्रतिभा का परिचय देने लगे। अपने पूर्वजों के नाम व देवी- देवताओं की स्तुतियां, रामायण, महाभारत की कथायें इन्हें कंठस्थ हो गई थीं। 1843 में उनके पिता का देहांत हो गया तो परिवार का पूरा भार इनके बड़े भाई रामकुमार पर आ पड़ा था। रामकृष्ण जब नौ वर्ष के हुए तो उनके यज्ञोपवीत संस्कार का समय निकट आया। ब्राह्मण परिवार की यह परम्परा थी कि नवदीक्षित को इस संस्कार के पश्चात अपने किसी सम्बंधी या किसी ब्राह्मण से पहली भिक्षा प्राप्त करनी होती थी। एक लुहारिन जिसने रामकृष्ण के जन्म से ही परिचर्या की थी। बहुत पहले ही उनसे प्रार्थना कर रखी थी कि वह अपनी पहली भिक्षा उसके पास से प्राप्त करें। लुहारिन के सच्चे प्रेम से प्रेरित हो बालक रामकृष्ण ने वचन दे दिया था। अतः यज्ञोपवीत के पश्चात घर वालों के लगातार विरोध के बावजूद अपना वचन पूरा किया। सत्य के प्रति प्रेम तथा इतनी कम उम्र में सामाजिक कुप्रथा के इस प्रकार ऊपर उठ जाना, रामकृष्ण की आध्यात्मिक क्षमता और दूरदर्शिता को ही प्रकट करता है।

रामकृष्ण का मन पढ़ाई में न लगता देख उनके बड़े भाई उन्हें अपने साथ कलकत्ता ले आये और अपने पास दक्षिणेश्वर में रख लिया। यहां का शांत एवं सुरम्य वातावरण रामकृष्ण को अपने अनुकूल लगा। 1858 में इनका विवाह शारदा देवी के साथ सम्पन्न हुआ। जब शारदा देवी ने अपने अट्ठारहवें वर्ष में पदार्पण किया तब श्री रामकृष्ण ने दक्षिणेश्वर के पुण्यपीठ के अपने कमरे में उनकी षोड़शी देवी के रूप में यथोपचार आराधना की। यही शारदा देवी रामकृष्ण संघ में माताजी के नाम से परिचित हैं।

रामकृष्ण परमहंस के जीवन में अनेक गुरु आये पर अन्तिम गुरुओं का उनके जीवन पर बहुत प्रभाव पड़ा। एक थीं भैरवी, जिन्होंने उन्हें अपने कापालिक तंत्र की साधना करायी और दूसरे श्री तोतापुरी जो उनके अन्तिम गुरु थे। गंगा के तट पर दक्षिणेश्वर के प्रसिद्ध मंदिर में रहकर रामकृष्ण मां काली की पूजा किया करते थे। गंगा नदी के दूसरे किनारे रहने वाली भैरवी को अनुभूति हुई कि एक महान संस्कारी व्यक्ति रामकृष्ण को उसकी दीक्षा की आवश्यकता है। गंगा पार कर वो रामकृष्ण के पास आयी तथा उन्हें कापालिक दीक्षा लेने को कहा। रामकृष्ण ने भैरवी से दीक्षा ग्रहण की। भैरवी द्वारा बतायी पद्धति से वो लगातार साधना करते रहे तथा मात्र तीन दिनों में ही सम्पूर्ण क्रिया में निपुण हो गये।

रामकृष्ण के अन्तिम गुरु तोतापुरी थे जो सिद्ध तांत्रिक तथा हठ योगी थे। वे रामकृष्ण के पास आये तथा उन्हें दीक्षा दी। रामकृष्ण को दीक्षा दी गई परम शिव के निराकार रूप के साथ पूर्ण संयोग की। पर आजीवन तो उन्होंने मां काली की आराधना की थी। वे जब भी ध्यान करते तो मां काली उनके ध्यान में आ जाती और वे भावविभोर हो जाते। निराकार का ध्यान उनसे नहीं हो पाता था।

तोतापुरी ध्यान सिद्ध योगी थे। वे समस्या जान गये कुछ दिनों बाद उन्होने रामकृष्ण को अपने पास बिठाकर साधना करायी। तोतापुरी को अनुभव हुआ कि रामकृष्ण के ध्यान में मां काली प्रतिष्ठित हैं। उन्होंने शक्ति सम्पात के द्वारा रामकृष्ण को निराकार ध्यान में प्रतिष्ठित करने के लिये बगल में पड़े एक शीशे के टुकड़े को उठाया और उसका रामकृष्ण के आज्ञाचक्र पर आघात किया, जिससे रामकृष्ण को अनुभव हुआ कि उनके ध्यान की मां काली चूर्ण-विचूर्ण हो गई हैं और वे निराकार परमशिव में पूरी तरह समाहित हो चुके हैं। वे समाधिस्थ हो गये। ये उनकी पहली समाधि थी जो तीन दिन चली। तोतापुरी ने रामकृष्ण की समाधि टूटने पर कहा- मैं पिछले 40 वर्षों से समाधि पर बैठा हूं पर इतनी लम्बी समाधि मुझे कभी नहीं लगी।

रामकृष्ण परमहंस का जीवन और व्यक्तित्व रहस्यमयी रहा। ढाका के एक मानसिक चिकित्सक ने उनकी युवावस्था में ही कहा था कि असल में यह आदमी एक महान योगी और तपस्वी है। जिसे दुनिया अभी समझ नहीं पा रही है। रामकृष्ण परमहंस के पास जो कोई भी जाता वह उनकी सरलता, निश्छलता, भोलेपन और त्याग से अभिभूत हो जाता। गहन से गहन दार्शनिक सवालों के जवाब भी वे अपनी सरल भाषा में इस तरह देते कि सुनने वाला तत्काल ही उनका मुरीद हो जाता। इसलिए दुनियाभर की तमाम आधुनिक विद्या, विज्ञान और दर्शनशास्त्र पढ़े महान लोग भी जब दक्षिणेश्वर के इस निरक्षर परमहंस के पास आते, तो अपनी सारी विद्वता भूलकर उसे अपना गुरु मान लेते थे।

इनके प्रमुख शिष्यों में स्वामी विवेकानन्द, दुर्गाचरण नाग, स्वामी अद्भुतानंद, स्वामी ब्रह्मानंदन, स्वामी अद्यतानन्द, स्वामी शिवानन्द, स्वामी प्रेमानन्द, स्वामी योगानन्द थे। श्री रामकृष्ण के जीवन के अन्तिम वर्ष करुण रस से भरे थे। 16 अगस्त, 1886 सोमवार ब्रह्म मुहूर्त में अपने भक्तों और स्नेहितों को दुख के सागर में डुबोकर वे इस लोक में महाप्रयाण कर गये।

(लेखक हिन्दुस्थान समाचार से संबद्ध हैं।)

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