कोरोना महामारी ने दफ्तरों का काम घर से करने यानी वर्क फ्रॉम होम की नई रीत चलाई है। इस 'वर्क कल्चर' से घंटों ट्रेफिक की मारामारी झेलकर रोजाना नौकरी पर जाने वालों को जैसे एक नियामत दे दी है। घर में ही एक कोने में लैपटॉप रखकर दफ्तर का काम भी होता है और साथ ही परिवार के बीच रहने का दिमागी सुकून भी मिलता है।
दफ्तर का काम खत्म करके, लैपटॉप बंद करके बच्चों के साथ बैठने, बातें करने और परिवार के साथ 'क्वालिटी टाइम' बिताने की सहूलियत से इस नई रीत की लोकप्रियता इतनी बढ़ गई है कि अब दफ्तर जाकर काम करने को लोग आसानी से तैयार नहीं हैं। और ये सोच यूरोप के कई देशों में असर दिखा रही है। अमेरिका में तो एक रिपोर्ट के अनुसार, 44 लाख लोगों ने अपनी पुरानी नौकरी सिर्फ इसीलिए छोड़ दी है क्योंकि उनको दफ्तर में आकर काम करने को कहा जा रहा था।
अब इस नई रीत का एक दूसरा आयाम। कल्पना कीजिए, दफ्तर का काम पूरा करने के बाद जब कोई अपने परिवार के साथ बैठा खाना खा रहा हो, या बच्चों को होमवर्क करा रहा हो, और उसी वक्त मैनेजर का फोन आए और तत्काल गूगल मीट या जूम पर 'जरूरी मीटिंग' में जुड़ने को कहे, या किसी फाइल को फौरन मेल करने या प्रोजेक्ट रिपोर्ट रात में ही तैयार करके भेजने को कहे तो?
इससे होने वाली झुंझलाहट बढ़ते—बढ़ते इस हद तक पहुंच चुकी है कि कई देशों में तो सरकारों को 'राइट टू डिस्कनेक्ट' कानून बनाना पड़ा है। यानी काम की शिफ्ट के बाद दफ्तर के बॉस के आने वाले किसी फोन कॉल या संदेश का जवाब देने की कोई जरूरत नहीं रही है। यह कानून अभी 1 फरवरी को बेल्जियम में लागू हुआ है। पड़ताल करने पर पाया कि बेल्जियम इस कानून को लागू करने वाला पहला देश नहीं है। उससे पहले फ्रांस, इटली, जर्मनी, फिलीपींस, कनाडा, स्लोवाकिया तथा आयरलैंड सहित कुछ अन्य देश अपने यहां ऐसा नियम लागू कर चुके हैं।
क्या है यह 'राइट टू डिस्कनेक्ट' नियम
दरअसल इस नियम में प्रावधान है कि दफ्तर का समय पूरा होने के बाद कोई अधिकारी अपने कर्मचारियों को कॉल, ईमेल या टेक्स्ट संदेश भेजकर बेवजह तनाव में नहीं डालेगा। फिर भी कोई किसी अन्य तरीके से संपर्क करने या बातचीत करने की कोशिश करेगा तो उसके गैरकानूनी माना जाएगा।
जहां तक भारत की बात है तो यहां यह नियम लोगों को अचरज में डाल सकता है, क्योंकि हमारे यहां अभी ऐसा कोई नियम नहीं है। इसलिए खासतौर पर आईटी के क्षेत्र में काम करने वालों की यह आम शिकायत है कि दफ्तर की तरफ से देर रात तक गूगल मीट या प्रेजेंटेशन के लिए बाध्य किया जाता है। काम के घंटे खींचकर लंबे या बेमियादी कर दिए गए हैं। कई बार तो 'काम जरूरी है' बोलकर वरिष्ठ अधिकारी रात 11 -12 बजे भी अपने अधीनस्थ काम करने वालों से काम लेते हैं।
लेकिन अब अनेक देशों में ऐसे सभी बेमतलब के तनाव से 'राइट टू डिस्कनेक्ट' नियम राहत दे रहा है। इस नियम को फिलहाल चिकित्सा, सेना, पुलिस विभाग के अधिकारियों तथा कर्मचारियों पर लागू नहीं किया गया है। हां, इसमें प्रावधान है कि किसी आपातकालीन स्थिति या बहुत ही असामान्य स्थिति में ही उन कर्मचारियों को संपर्क किया जाए जिनकी शिफ्ट पूरी हो चुकी है या वे छुट्टी पर हैं।
क्या है भारत में इस नियम की स्थिति?
एक आंकड़े के अनुसार, कोरोना महामारी के संक्रमण की शुरूआत के बाद से भारत में करीब 50 से 60 प्रतिशत लोग 'वर्क फ्रॉम होम' कर रहे हैं। इनमें अधिकांश आईटी क्षेत्र के कर्मी हैं। वे भी कुछ इसी तरह की समस्याओं का सामना कर रहे हैं। इसलिए भारत में भी इस नियम को लागू करने की मांग तेज होती जा रही है। हमारे यहां सबसे पहले तीन साल पहले 2019 में इस नियम पर एनसीपी सांसद सुप्रिया सुले ने संसद में एक विधेयक प्रस्तुत किया था। बिल में पेशेवर जीवन कभी ना खत्म होने और उन कंपनियों को इसके प्रभाव में लाने की बात की गई थी जिन कंपनियों में 10 से ज्यादा कर्मचारी काम करते हों। लेकिन तब सदन में इस पर कोई चर्चा नहीं हुई थी।
इसके बाद 3 दिसम्बर 2021 को राइट टू डिस्कनेक्ट बिल कार्यसूची में शामिल किया गया था। लेकिन समयाभाव की वजह से इस पर कोई बहस नहीं हुई थी। भारत में यह नियम कब लागू होगा, इसे लेकर संशय बना हुआ है। लेकिन काम की इस नई संस्कृति को देखते हुए इस नियम के चाहने वाले भारत में भी कम नहीं हैं।
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