पंजाब विधानसभा चुनाव के लिए मतदान में मात्र चार दिन बचे हैं। लेकिन सियासी परिदृश्य अब साफ होना शुरू हो गया है। एक बात तो स्पष्ट है कि इस बार कांग्रेस पिछली बार की तरह प्रचंड बहुमत नहीं ला पाएगी। पिछली बार कांग्रेस को 77 सीटें मिली थीं। इस बार उसकी सीटें काफी कम हो जाएंगी। इधर, कैप्टन अमरिंदर सिंह भले ही जो भी दावे कर रहे हों, लेकिन उनकी पार्टी पंजाब लोक कांग्रेस भी कोई कमाल करती नजर नहीं आ रही है। यही स्थिति संयुक्त समाज मोर्चा की है। एक दो सीट को छोड़ दें तो मोर्चा सिर्फ वोटकटवा की स्थिति में रहेगा। इसका सबसे ज्यादा नुकसान आम आदमी पार्टी का ही होता नजर आ रहा है।
हालांकि चुनाव के शुरुआत में ऐसा लग रहा था कि इस बार किसान संगठन खासा प्रभाव दिखाएंगे, लेकिन अब ऐसा होता नजर नहीं आ रहा है। पिछले विधानसभा चुनाव की तरह इस बार भी आआपा के पक्ष में आम मतदाता खड़ा तो नजर आ रहा है। लेकिन आआपा किस तरह उन्हें अपने पक्ष में मोड़ती है, यह देखना दिलचस्प होगा। कुल मिलाकर आआपा इस बार किसी चमत्कार की उम्मीद कर रही है।
अंदरूनी कलह से कांग्रेस को नुकसान
पंजाब में अब जो स्पष्ट नजर आ रहा है, वह यह है कि कांग्रेस की सीट कम होगी। पार्टी में आपसी खींचतान है और मुख्यमंत्री चेहरे को लेकर नवजोत सिंह सिद्धू और चरणजीत सिंह चन्नी के बीच शीत युद्ध अभी तक जारी है। ऊपर से कांग्रेस के 16 विधायक पार्टी छोड़ चुके हैं। नेताओं का पार्टी छोड़ने का सिलसिला जारी है। पूर्व कानून मंत्री अश्विनी कुमार और पंजाब महिला आयोग की अध्यक्ष मनीषा गुलाटी ने पार्टी को अलविदा बोल दिया। कांग्रेस की ओर से प्रियंका गांधी वाड्रा और राहुल गांधी ने इस बार पूरी ताकत लगा दी है। लेकिन उनका ज्यादा जोर सिद्धू और चन्नी को जिताने पर ही है।
सिद्धू-चन्नी को जिताने पर जोर
अपनी अमृतसर पूर्व सीट पर सिद्धू खुद फंसते नजर आ रहे हैं। यहां अकाली दल के बिक्रमजीत सिंह मजीठिया उन्हें कड़ी टक्कर दे रहे हैं। अमृतसर में प्रियंका के रोड शो से सिद्धू को कुछ ताकत तो मिली है। लेकिन अभी भी मतदाता उनसे नाराज हैं। इसकी वजह यह है कि सिद्धू मतदाता के साथ खुद को जोड़ ही नहीं पाए।कांग्रेस छोड़ अपनी पार्टी बनाने वाले कैप्टन अमरिंदर सिंह वैसे तो पटियाला सीट पर आगे तो चल रहे हैं। लेकिन इस बार उन्हें अपने ही घर में कड़ी टक्कर मिल रही है। कैप्टन यहां जितना नुकसान कांग्रेस का कर रहे हैं,इसका सीधा फायदा आम आदमी पार्टी को मिल रहा है। आआपा ने यहां शहर से पूर्व मेयर अजीत पाल सिंह कोहली को चुनाव मैदान में उतारा है। वैसे तो कैप्टन बढ़त में तो हैं, लेकिन बढ़त बहुत ज्यादा रहने वाली नहीं है। बाकी की सीटों की बात करें तो उनके उम्मीदवार बस अपनी उपस्थिति दर्ज भर करा पाएंगे।
आआपा की उम्मीद पर खरे नहीं उतरे मान
इस बार आआपा ने भी पंजाब में पूरी ताकत लगा रखी है। उसके लिए अच्छी बात यह है कि शहर हो या गांव हर जगह उनके समर्थक हैं, जो बदलाव की बात करते हैं। आआपा ने चंडीगढ़ से लेकर बाघा बॉर्डर तक मतदाताओं में पैठ बनाई है। पार्टी के पास काडर तो है, लेकिन इसका प्रबंधन करने वाले नेताओं की कमी है। दिल्ली से अरविंद केजरीवाल और उनके नेताओं ने हालांकि प्रयास किए, लेकिन उसका खास फायदा नहीं हुआ। कहना गलत नहीं होगा कि आआपा का प्रदर्शन पिछले विधानसभा चुनाव के आसपास ही रह सकता है। भगवंत मान से उम्मीद थी कि वह बाकी सीटों पर भी पार्टी को मजबूत करेंगे। लेकिन वह उतनी तेजी से भाग-दौड़ नहीं कर पाए। आलम यह है कि भगवंत मान खुद कड़े मुकाबले में फंए गए हैं। कांग्रेस, अकाली दल ने उनकी घेराबंदी अच्छे से कर रखी है। इससे वह निकलने के लिए छटपटा रहे हैं। बाकी कोई ऐसा स्टार प्रचारक पार्टी के पास पंजाब में नहीं है, जो मतदाताओं में जोश भरे और उन्हें मतदान तक पार्टी के साथ जोड़े रखे।
अकाली दल के पास खोने को कुछ नहीं
अकाली दल के लिए इस चुनाव में खोने के लिए ज्यादा कुछ नहीं है। पिछले चुनाव में पार्टी प्रमुख विपक्षी दल तक का दर्जा हासिल नहीं कर पाई। पार्टी के 17 विधायक ही जीत दर्ज कर सके थे। लेकिन इस बार अकाली दल अच्छी स्थिति में है। इसकी वजह भी साफ है, नवजोत सिंह सिद्धू ने जिस तरह से बिक्रमजीत सिंह मजीठिया को घेरा, इसका लाभ अकाली दल को पूरे पंजाब में मिलता नजर आ रहा है। अकाली दल के बढ़त का दूसरा कारण यह है कि इनका काडर काफी मजबूत है। टिकट को लेकर अकाली दल में कोई विवाद नहीं रहा। कार्यकर्ता और नेता अनुशासन में रह कर चुनाव लड़ रहे हैं। एक सधी रणनीति के तहत वे प्रचार को आगे बढ़ा रहे हैं। अकाली दल के लिए चिंता की बात यह है कि उसकी पारंपरिक सीटों पर मतदाता अब नाराज हो रहे हैं। जो सहज ही यह अहसास करा रहे हैं कि जलालाबाद से सुखबीर बादल और लंबी से प्रकाश सिंह बादल चुनौती मिल रही है। उनके विधानसभा में बदलाव की बात मतदाता उठा रहे हैं।
सम्मानजनक स्थिति में भाजपा
भारतीय जनता पार्टी ने अभी तक पंजाब में सम्मानजनक स्थिति बना ली है। शहरी क्षेत्रों के साथ-साथ पार्टी ने ग्रामीण क्षेत्रों में भी पैठ बनाने का काम किया है। भाजपा ने कैप्टन अमरिंदर सिंह और सुखदेव सिंह ढींढसा के साथ मिल कर मतदाता को जोड़ने का काम किया है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी सिख मतदाताओं को साधने में कोई कसर नहीं छोड़ी है। पार्टी का पूरा जोर इस बात पर रहा है कि जो पारंपरिक सीटें हैं, उन पर जीत हासिल की जाए, बाकी ज्यादा से ज्यादा वोटबैंक खड़ा किया जाए ताकि आने वाले समय में पार्टी पंजाब में अपने पैरों पर खड़ी हो सके। भाजपा के रणनीतिकार इस चुनाव को अवसर के तौर पर देख रहे हैं। वह इसमें काफी हद तक कामयाब भी रहे हैं। कैप्टन अमरिंदर सिंह का साथ भी भाजपा को खूब भा रहा है। इसके साथ ही सुखदेव सिंह ढींढसा का साथ मिलने से पार्टी अकाली दल के सिख वोटर में सेंध लगाने की कोशिश में हैं। गांव में भी अब भाजपा के वोटर बढ़ रहे हैं। इसके अलावा, पंथक वोटर भी भाजपा के साथ जुड़ रहा है।
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