लेखक – डॉ अजय खेमरिया
कोविड काल में प्रवासी मजदूरों और व्यवस्थाओं को लेकर दुनियां भर में भारत सरकार की छवि को खराब करने वाली पत्रकार राणा अयूब ने इन्ही गरीबों के नाम पर चंदा जुटाया और उसे अपने पिता एवं बहन के नाम फिक्स डिपॉजिट कर दिया।गोवा में शाही छुटियाँ बिताई,प्रगतिशीलता के नाम पर जकात का चंदा भी गरीबों के चंदे से दिया और एफसीआरए कानून को धता बताकर विदेशी चंदा भी जुटाया।पुलिस में बकायदा प्राथमिकी दर्ज होने और ईडी की कारवाई के बाद राणा अयूब उसी घिसेपिटे बहाने के साथ सामने आई कि उन्हें मुस्लिम होने की वजह से तंग किया जा रहा है।
लोगों की मदद के नाम पर ‘केटो’ क्राउडफंडिंग वेबसाइट के जरिए धन की उगाही की 2020 में जब कोरोना शुरू हुआ था तो उन्होंने गरीबों की मदद करने के लिए अप्रैल 2020, जून 2020 औऱ मई 2021 में केटो प्लेटफॉर्म पर फंडरेजिंग कैम्पेन शुरू किया था। चंदा उगाही के लिए अपने पिता और बहन के खातों का उपयोग किया गया। ईडी ने जब इस मामले में कारवाई की तो राणा अयूब ने बेहद ही बचकाना बचाव करते हुए कहा हैं कि उस दौरान उनके पास पैन कार्ड नहीं था। कोरोना पीड़ितों की मदद करना भी आवश्यक था। इसीलिए मैंने अपने अब्बू और बहन के अकाउंट की डिटेल्स दी थी। अब इस बचाव के आधार पर इतनी सजग पत्रकार की करामात को आसानी से समझा जा सकता है।
कहने को राणा अयूब खुद को प्रगतिशील कहती है और हिन्दू मान्यताओं को रूढ़िवादिता के आधार पर निशाने पर लेती हैं लेकिन आपको जानकर आश्चर्य होगा कि इस प्रतिक्रियावादी और प्रोपेगैंडा पत्रकार के अंदर एक कट्टर मुस्लिम भी जीवित है। इस्लाम में अनुयाइयों को अपनी बचत में से 2.5 प्रतिशत जकात यानी दान के लिए देने का आग्रह है । राणा अयूब ने सार्वजनिक रूप से कोरोना पीड़ितों के नाम से करोड़ों की धन उगाही की और जुटाए गए फंड का एक हिस्सा मुस्लिमों को रमजान के महीने में जकात के तौर पर दे दिया । अपने जबाब में वह स्वीकार करती है कि एक मुस्लिम होने के कारण वो जकात और उसकी पवित्रता के लिए इसके उपयोग को समझती हैं।
पत्रकार राणा अयूब के खिलाफ गाजियाबाद के इंदिरापुरम पुलिस स्टेशन में 7 सितंबर 2021 को आईपीसी की धारा 403, 406, 418, 420, आईटी अधिनियम की धारा 66 डी और मनी लॉन्ड्रिंग एक्ट-2002 की धारा 4 के तहत प्राथमिकी दर्ज की गई थी। इसमें अयूब पर ये आरोप लगाया गया था है कि उसने चैरिटी के नाम पर गलत तरीके से आम जनता से धन की वसूली की थी। हिंदू आईटी सेल के विकास सांकृत्यायन ने अगस्त 2021 में ये एफआईआर दर्ज करवाया था। पुलिस प्राथमिकी में राणा अयूब द्वारा चंदा वसूली के लिए चलाए गए तीन अभियानों का उल्लेख है।
(1) अप्रैल-मई 2020 में झुग्गीवासियों और किसानों के कल्याण के नाम पर चंदा जुटाना।
(2) जून-सितंबर 2020 में असम, बिहार और महाराष्ट्र के लिए राहत कार्य के नाम चंदा।
(3) मई-जून 2021 में कोरोना पीड़ितों के लिए काम हेतु चंदा।
इन तीनों प्रकरणों में प्रवर्तन निदेशालय को 11 नवंबर 2021 को शिकायतकर्ता ने इस मामले की जानकारी के साथ एक ईमेल भेजा था। इसमें उसने केटो( एक ऑनलाइन कम्पनी) द्वारा डोनर्स को भेजे गए एक पत्र को भी अटैच किया था। केटो ने दान करने वाले लोगों को बताया कि तीन अभियानों के लिए ₹1.90 करोड़ और 1.09 लाख डॉलर (कुल 2.69 करोड़ रुपए) मिले थे, जिसमें से केवल ₹1.25 करोड़ खर्च किए गए हैं। दानदाताओं के लिए बेबसाइट पर लिखा गया था कि “दानदाताओं को उपयोग किए गए धन के विवरण के लिए कैम्पेनर rana.ayub@gmail.com से संपर्क करना होगा।”यानी राणा अयूब ने धन अपने नाम से जुटाया और बैंक खातों के लिए अपने पिता और बहन का उपयोग किया।
ईमेल मिलने के बाद जब प्रवर्तन निदेशालय ने मामले की जानकारी के लिए बेबसाइट केटो से संपर्क किया। ईडी के एक्शन के बाद 15 नवंबर 2021 को केटो फाउंडेशन के वरुण सेठ ने ईडी को जानकारी दी और कहा:फंड रेजिंग कैम्पेन को ‘www.ketto.org’ वेबसाइट के जरिए शुरू किया था, जो कि ऑनलाइन माध्यम से शुरू किए गए थे, जो एक निजी कंपनी केटो ऑनलाइन वेंचर्स प्राइवेट लिमिटेड द्वारा संचालित किया जा रहा है। वरण सेठ इसके निदेशकों में से एक हैं।
राणा अयूब ने 23 अगस्त 2021 को केटो को एक ईमेल भेजा था, जिसमें उसने जानकारी दी थी कि उसे केटो से कुल ₹2.70 करोड़ रुपए की राशि मिली थी, जिसमें से उन्होंने लगभग ₹1.25 करोड़ खर्च किए और उन्हें कर के रूप में फंड से ₹90 लाख का भुगतान करना बाकी है। जबकि उसने 50 लाख रुपए को छोड़ दिया, जो लाभार्थियों तक पहुँचे ही नहीं।
पिता के नाम 50 लाख की एफडी
ऑनलाइन एकत्रित चंदे में से राणा अयूब ने 50 लाख अपने पिता के नाम फिक्स डिपॉजिट कर दिए और बेशर्मी के साथ अब दावा कर रही हैं कि ऐसा इसलिए किया ताकि ब्याज की राशि से पीड़ितों की अधिक सहायता की जा सके।दूसरी तरफ सच्चाई यह है कि 2.70 करोड़ में से कुछ राशि पीएम केयर्स में भेजने के बाद अधिकतर धन का उपयोग खुद के लिए किया गया है।ईडी की जांच में यह भी सामने आ गया है कि केवल 17.66 लाख की राशि कोरोना पीड़ितों पर खर्च की गई है।
फर्जी बिल और गोवा की सैर
जांच एजेंसी ने पाया कि चंदे के धन को ठिकाने लगाने के लिए फर्जी बिल बनाये गए,गोवा और अन्य स्थानों पर सैर सपाटे के लिए इस राशि का उपयोग किया गया।पिता औऱ बहन के खातों में आई 2.70 करोड़ की धनराशि को बाद में राणा अयूब ने खुद के खातों में ट्रांसफर कर लिया।सवाल यह कि ऑनलाइन चंदा जुटाने के लिए पहले पिता और बहन के खातों का प्रयोग क्यों किया गया?अगर राणा अयूब के इस दावे को स्वीकार किया जाए कि उनके पास पैन कार्ड नही था तो क्या यह संभव है कि विदेशी अखबारों और पत्रिकाओं के लिए लिखने वालीं अयूब बगैर पैन कार्ड के विदेशों से वेतन प्राप्त करती रही है?जांच एजेंसी के अनुसार पत्रकार अयूब ने बहुत ही सुव्यवस्थित तरीके से इस चंदा उगाही को अंजाम दिया है और इसके दुरूपयोग के बहुत ही पुख्ता सबूत मौजूद हैं।
बगैर एफसीआरए के चंदा
सरकार ने पिछले बर्ष जब विदेशी अभिदाय कानून एफसीआरए में संशोधन किया तो राणा अयूब जैसे लिबरल पत्रकारों ने खूब शोर मचाया लेकिन रोचक तथ्य यह है कि राणा अयूब ने भारत के गरीबों के नाम पर बगैर एफसीआरए लाइसेंस के विदेशी मदद भी ले ली।बाद में एफआईआर हुई तो इस राशि को लौटा दिया इसके बाबजूद उनके खातों में 2 करोड़ की राशि बनी रही लेकिन गरीबों की मदद के नाम पर शाही सैर सपाटे फर्जी बिलों को बनाकर होते रहे।
दो दशक से प्रोपेगैंडा पत्रकारिता में अव्वल
राणा अयूब मूलतः प्रोपेगेंडा और सुपारी पत्रकारिता की प्रतीक हैं। उन्होंने हाल ही में टाइम पत्रिका के लिए 100 प्रभावशाली महिलाओं में शाहीन बाग की दादी बिलकिस बानो पर स्टोरी की थी।इससे पहले वे गुजरात को लेकर मोदी और अमित शाह के विरुद्ध प्रायोजित प्रोपेगैंडा चला चुकी है।उन्होंने एक किताब"गुजरात फाइल्स"-एनाटॉमी ऑफ ए कवरअप'के आधार पर दुनिया भर में मोदी और अमित शाह की बदनामी में कोई कमी नही छोड़ी।इस गुजरात फाइल्स में सभी कहानियां फर्जी और मनगढ़ंत तरीके से लिखकर एक एजेंडा पूरा किया गया।खासबात यह कि इस गुजरात फाइल्स के आधार पर हरेन पांड्या मर्डर केस को जेबी एनजीओ के नाम से सुप्रीम कोर्ट में चुनौती भी राणा अयूब ने दी।हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने राणा अयूब की गुजरात फाइल्स को राजनीतिक आरोपों वाला बताते हुए मनगढ़ंत,मिथ्या और अनुपयोगी करार दिया था।सर्वोच्च अदालत से इस फटकार के बाद भी राणा अयूब का सेक्यूलर एजेंडा निरन्तर जारी है।शाहीन बाग से लेकर दिल्ली दंगो तक उनकी भूमिका बहुत ही खतरनाक रही है।दिल्ली दंगो में उन्होने दो साल पुराना एक वीडियो जारी कर दंगों को भड़काने की कोशिश की थी।विदेशी मीडिया प्रकाशनों में वह लगातार मोदी सरकार पर मुसलमानों के साथ भेदभाव औऱ अत्याचार की मनगढ़ंत कहानियां लिखती रहती हैं।गाजियाबाद के पास लोनी गांव के नाम से भी उन्होंने एक फर्जी वीडियो लिंचिंग का दावा करते हुए जारी किया था जिस पर उनके विरुद्ध प्रकरण दर्ज है।
इस प्रकरण से राणा अयूब का असली चेहरा सामने आने के बाद लिबरल बुद्धिजीवियों औऱ सेक्यूलर लॉबी में छाई चुप्पी भी सवालों के घेरे में हैं।
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