चीन से उइगर दमन के लगातार आ रहे समाचारों के बीच संयुक्त राष्ट्र ने एक सख्त कदम उठाया है। संयुक्त राष्ट्र की एक समिति ने अब अपनी सालाना रिपोर्ट में खुलासा किया है कि कम्युनिस्ट चीन उइगर और दूसरे अल्पसंख्यकों को प्रताड़ित कर रहा है, उनसे काम के तय घंटों से कहीं ज्यादा मजदूरी करवा रहा है। उल्लेखनीय है कि बीजिंग में शीतकालीन ओलंपिक खेलों के बीच ऐसी रिपोर्ट का आना एक बार फिर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर ड्रैगन की असलियत उजागर करता है।
हाल ही में सोशल मीडिया पर एक वीडियो वायरल हुआ है जिसमें सिंक्यांग में किसी कथित यातना शिविर में एक उइगर व्यक्ति चलते दिख रहा है लेकिन उसके दोनों पैर भारी चैन से आपस में जकड़े दिख रहे हैं। वीडियो में दावा किया गया है कि यह उइगर यातना शिविर का लीक हुआ वीडियो है। अगर इस दृश्य पर यकीन करें तो साफतौर पर चीन में उइगर मुस्लिमों की हालत खराब है। उनके साथ बहुत भेदभाव हो रहा है, उन पर अत्याचार हो रहे हैं।
अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन या आईएलओ की इस ताजा रिपोर्ट में बताया गया है कि चीन उत्तर-पश्चिम सिंक्यांग प्रांत में उइगरों का उत्पीड़न कर रहा है। उइगर लोगों से जबरदस्ती मजदूरी करवाई जा रही है। उनके छोटे बच्चों को भी बख्शा नहीं गया है। आईएलओ की रिपोर्ट यह भी बताती है कि सिंक्यांग के उइगर भेदभाव का शिकार हो रहे हैं।
संयुक्त राष्ट्र का साफ कहना है कि चीन को अपने रोजगार के कायदों और नीतियों को अंतरराष्ट्रीय मापदंडों के अनुसार बनाना चाहिए। वैसे भी दुनियाभर के मीडिया में अनेक अवसरों पर चीन में उइगर मुस्लिमों के उत्पीड़न के तथ्यपरक विश्लेषण प्रकाशित होते रहे हैं, लेकिन चीन ने कभी कभी अपनी इस दुर्नीति को स्वीकारा नहीं है। सिंक्यांग में उइगरों का दमन ड्रैगन की उन्हें निशाने पर रखने की नीतियों के तहत ही किया जा रहा है।
संयुक्त राष्ट्र का साफ कहना है कि चीन को अपने रोजगार के कायदों और नीतियों को अंतरराष्ट्रीय मापदंडों के अनुसार बनाना चाहिए। वैसे भी दुनियाभर के मीडिया में अनेक अवसरों पर चीन में उइगर मुस्लिमों के उत्पीड़न के तथ्यपरक विश्लेषण प्रकाशित होते रहे हैं, लेकिन चीन ने कभी कभी अपनी इस दुर्नीति को स्वीकारा नहीं है। सिंक्यांग में उइगरों का दमन ड्रैगन की उन्हें निशाने पर रखने की नीतियों के तहत ही किया जा रहा है।
अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन की रिपोर्ट से साफ है कि चीन ने 1964 में संपन्न् रोजगार नीति कॉन्फ्रेंस के कई अनुच्छेदों की अवमानना की है। हालांकि चीन की कम्युनिस्ट सरकार की तरफ से इसे 1997 में जाकर लागू किया गया था। इस प्रस्ताव में रोजगार चुनने की स्वतंत्रता का अधिकार भी था। लेकिन चीन में उइगरों के लिए ऐसी कोई स्वतंत्रता नहीं है। इसे देखते हुए आईएलओ ने चीन से उसके यहां मानवाधिकारों की वर्तमान स्थिति की विस्तृत रिपोर्ट देने को कहा है। लेकिन विशेषज्ञों को संदेह है कि जोड़—तोड़ में माहिर कम्युनिस्ट सरकार इस तरह की कोई पारदर्शी रिपोर्ट देगी।
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