नेपाल इन दिनों राजनीतिक अस्थिरता के दौर से ही नहीं गुजर रहा है बल्कि वहां न्यायपालिका में भी भारी उठापटक चल रही है। वहां के सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति चोलेंद्र शमशेर राणा के विरुद्ध वहां सत्तारूढ़ गठबंधन द्वारा ही महाभियोग प्रस्ताव लाया गया है। गठबंधन के सदस्य दल नेपाली कांग्रेस, माओवादी सहित अन्य पार्टियों के मिलाकर कुल 98 सांसदों ने राणा के विरुद्ध यह प्रस्ताव संसद सचिवालय में प्रस्तुत कर दिया है। यहां यह जानना दिलचस्प होगा कि यही न्यायमूर्ति राणा हैं जिनके एक निर्णय की वजह से ही शेर बहादुर देउबा प्रधानमंत्री बने हैं और उनकी अगुआई में सरकार बनी है।
न्यायमूर्ति राणा को फिलहाल निलंबित हो चुके हैं और न्यायमूर्ति दीपक कुमार कर्की को कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश का पदभार सौंपा गया है। राणा के विरुद्ध पिछले कई दिनों से एक अभियान जैसा चल रहा था। इसकी परिणति के तौर पर देश के कानून, न्याय व संसदीय कार्यमंत्री दिलेंद्र प्रसाद बडू, सत्तारूढ़ दल नेपाली कांग्रेस की मुख्य सचेतक पुष्पा भुषाल, माओवादी पार्टी के मुख्य सचेतक देव गुरुंग सहित लगभग 98 सांसदों ने इस महाभियोग प्रस्ताव पर हस्ताक्षर करके इसे पटल पर रखा है।
ये तमाम सांसद कानून मंत्री की अगुआई में कल यानी 13 फरवरी की शाम ये प्रस्ताव लेकर संसद के सचिवालय में पहुंचे थे। वहां इस प्रतिनिधिमंडल ने सदन के अध्यक्ष अग्नि प्रसाद सपकोता से मुलाकात की। कानून मंत्री ने बताया कि महाभियोग प्रस्ताव लाने के पीछे वजह यही है कि न्यायालय सही तरह से काम नहीं कर पा रहा था, न्यायमूर्ति राणा के विरुद्ध भ्रष्टाचार के अनेक आरोप हैं। महाभियोग प्रस्ताव में मुख्य न्यायाधीश पर 21 आरोप लगाए गए हैं। इन आरोपों में प्रमुख हैं कि वे लोकतंत्र को सुरक्षित रखने, मानवाधिकारों, कानून के कायदों, न्यायिक स्वतंत्रता तथा निष्पक्षता को बनाए रखने में असफल रहे हैं।
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समाचारों पर नजर डालें तो आरोप है कि मुख्य न्यायाधीश राणा सर्वोच्च न्यायालय में न्यायिक माहौल बनाए रखने में कामयाब नहीं हो रहे थे। साथ ही, उन पर यह भी आरोप है कि वे नैतिकता का पालन नहीं कर रहे थे। तीन साल पूर्व जनवरी 2019 में मुख्य न्यायाधीश बनाए गए न्यायमूर्ति राणा इस महाभियोग प्रस्ताव के प्रस्तुत होते ही स्वत: ही पद से निलंबित मान लिए गए हैं।
उधर पिछले कई दिनों से अदालत से जुड़े अन्य न्यायाधीश और वकील सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य द्वार पर धरने पर बैठे हैं। उनकी मांग है कि मुख्य न्यायाधीश के कार्यालय में आने पर रोक लगाई जाए, वे उनके त्यागपत्र की भी मांग कर रहे हैं। प्रदर्शनकारी वकीलों का राणा पर आरोप है कि उन्होंने कैबिनेट में राजनीतिक हिस्सेदारी मांगी है। साथ ही वे न्यायपालिका में भ्रष्टाचार को बढ़ावा दे रहे हैं। नेपाल बार एसोसिएशन ने मुख्य न्यायाधीश पर देउबा सरकार में अपने एक निकट रिश्तेदार को मंत्री बनवाने का भी आरोप लगाया हुआ है। हालांकि इस मुद्दे के उछलने के बाद, उक्त मंत्री को मजबूरन अपने पद से त्यागपत्र देना पड़ा था।
वर्तमान स्थिति में अगर महाभियोग प्रस्ताव को प्रतिनिधि सभा या संसद में उपस्थित सदस्यों की कुल संख्या के कम से कम दो तिहाई सांसद अनुमोदित कर देते हैं तो मुख्य न्यायाधीश को उनके पद से जाना पड़ेगा। लेकिन इधर न्यायमूर्ति राणा का कहना है कि वे अपने पद से त्यागपत्र नहीं देंगे और पूरी दमदारी से संसद में महाभियोग का सामना करेंगे। बता दें कि इससे पहले 2017 में तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति सुशीला कर्की के विरुद्ध भी महाभियोग प्रस्ताव लाया गया था।
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