अमृतसर में कांग्रेस प्रदेशाध्यक्ष नवजोत सिंह सिद्धू की आलिशान कोठी है। कोठी में चार दरवाजे हैं और सभी बंद हैं। सुरक्षाकर्मी से अंदर जाने का रास्ता पूछा तो उसने बगल वाली गली में भेज दिया। बड़ा-सा दरवाजा जोर लगा कर धकेल कर अंदर जाने पर सिद्धू की कोठी की भव्यता नजर आती है। लॉन में स्वीमिंग पुल है। पेड़-पौधों के साथ पत्थरों की सुंदर मूर्तियां यहां वहां रखी हैं। सामने बड़ा गेट। समर्थकों से ज्यादा सुरक्षाकर्मी, जो कैमरा बाहर निकालने की इजाजत नहीं देते।
बड़े दरवाजे से होकर सिद्धू की कोठी के अंदर प्रवेश करते ही सामने डाइनिंग टेबल दिखा। बगल में ड्राइंग रूम है, जहां 14 समर्थक बैठे दिखे। दोपहर के 12 बजे हैं, लेकिन सिद्धू अभी नहा रहे हैं। काफी देर इंतजार करते रहे। सिद्धू नीचे नहीं आए। आमतौर पर चुनाव प्रचार में जहां नेता सुबह ही अपने विधानसभा क्षेत्र में निकल जाते हैं, इसके विपरीत सिद्धू आधा दिन बीत जाने के बाद भी प्रचार के लिए तैयार नहीं हुए हैं। समर्थक भी इत्मीनान से बैठे हैं। जब नेता को ही जल्दी नहीं तो फिर समर्थक क्यों उतावला हो?
अब यदि समर्थक किसी नेता की लोकप्रियता का पैमाना है, तो कम से कम इस पैमाने पर सिद्धू खरे नहीं उतरते। फिर भी सिद्धू निश्चिंत हैं। हो भी क्यों न। आखिर अमृतसर पूर्वी सीट पर उनका एक छत्र राज है। 18 साल से कभी वह तो कभी उनकी पत्नी यहां से विधायक बनती रही हैं। वह भी इसी तरह के जीवन और राजनीतिक अंदाज से। सिद्धू कभी हारे नहीं, लेकिन हारे तो कभी बिक्रमजीत सिंह मजीठिया भी नहीं। लेकिन इस बार इन दो राजनीति दिग्गजों में कोई एक तो हर हालत मे हार का स्वाद चखने वाला है। वैसे, अगर दोनों को ही मतदाता मात दे दे तो कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी, क्योंकि जिस तरह से दोनों के बीच कांटे की टक्कर है, ऐसे में किसी तीसरे की किस्मत खुल भी सकती है। यूं भी अमृतसर पूर्व में इस बार आम आदमी पार्टी के प्रति भी मतदाता का अच्छा खासा रुझान देखने को मिल रहा है।
दरअसल, 18 साल से सियासत कर रहे सिद्धू को कभी कड़ी टक्कर मिली ही नहीं, मगर इस बार मतदान से 10 दिन पहले तक सिद्धू बुरी तरह फंसे नजर आ रहे हैं। रही-सही कसर आआपा पूरी कर रही है। आआपा उम्मीदवार जीवनजोत कौर बेशक बहुत बड़ा नाम न हो, मगर लोग झाड़ू को पसंद कर रहे हैं। इनके बीच, भाजपा ने इस सीट पर उपस्थिति दर्ज कराने के उद्देश्य से सेवानिवृत्त आईएएस अधिकारी जगमोहन राजू पर दांव खेला है। ये सभी मिलकर सिद्धू के वोट काट रहे हैं, जिससे उनकी परेशानियां बढ़ रही हैं।
दुविधा में मतदाता
कांग्रेस की परंपरागत सीट समझी जाने वाली अमृतसर पूर्व के मतदाता वैसे तो आआपा के गुण गाता है, लेकिन कुछ देर साथ बैठकर चर्चा करने पर वह कभी मजीठिया तो कभी भाजपा की ओर झुकने लगता है। यानी मतदाता भी दुविधा में है और काफी हद तक यह स्वाभाविक भी है। आज से पहले उसके पास इतने विकल्प कभी रहे ही नहीं। इस बार वह दुविधा में है, किसे छोड़े और किसे पसंद करे?
सिद्धू से नाराजगी की वजह
– वे सेलिब्रिटी वाली छवि से बाहर नहीं निकल पाए। विधानसभा क्षेत्र में विकास भी नहीं हुआ।
– सिद्धू दंपती लोगों के लिए आसानी से उपलब्ध नहीं हैं। वे कुछ लोगों तक ही सीमित रहे।
– रही-सही कसर कांग्रेस की ओर से मुख्यमंत्री का चेहरा नहीं बनाए जाने से पूरी हो गई।
– सिद्धू के पास क्षेत्र में प्रचार के लिए न टीम है और न रणनीति बनाने वाले लोग।
– इलाके का मतदाता भी समझ रहा है कि ये लोग 5 साल बाद सिर्फ वोट मांगने आते हैं।
सिद्धू का मजबूत पक्ष
– अमृतसर पूर्व खांटी कांग्रेसी सीट है। पार्टी का प्रदर्शन यहां लगातार अच्छा रहा है।
– सिद्धू कांग्रेस के प्रदेशाध्यक्ष हैं। इसका लाभ निश्चित रूप से उन्हें मिल रहा है।
– अच्छे वक्ता हैं। उनका अंदाज पसंद किया जाता है। वह लोगों को अपनी ओर मोड़ने में सक्षम हैं।
– आक्रामक अंदाज व ईमानदार छवि उन्हें सबसे अलग करती है। भ्रष्टाचार का कोई आरोप नहीं है।
मजीठिया की सबसे बड़ी चुनौती
– अकाली दल के बिक्रमजीत सिंह मजीठिया सियासी जीवन में पहली बार शहरी सीट से लड़ रहे हैं। मतदाता उनकी दबंग छवि से हिचक रहा है।
– सिद्धू से सीधी टक्कर है और नया इलाका होने की वजह से उन्हें शून्य से शुरुआत करनी पड़ रही है।
– अमृतसर पूर्व सीट पहले भाजपा के पास थी। इसलिए अकाली दल का खास वोटबैंक नहीं है।
– प्रचार के लिए ग्रामीण टीम पर निर्भर होने के कारण शहरी मतदाता से जुड़ने में मुश्किल हो रही है।
– 2-2 सीटों पर प्रचार का जिम्मा। मजीठा सीट से पत्नी गुनीव कौर अपना पहला चुनाव लड़ रह हैं।
मजीठिया का मजबूत पक्ष
– अकाली दल का मजबूत कैडर जो मददगार साबित हो रहा है। धुआंधार प्रचार से हवा बनाने की कोशिश कर रहे हैं।
– पंजाब के मतदाताओं में उन्हें लेकर खास तरह का क्रेज। सिद्धू के मुकाबले जमीन पर बेहतर पकड़।
– इलाके के मुद्दों पर लगातार बात कर रहे हैं ताकि मतदाताओं में यह भरोसा जागे कि वह समस्याओं को हल कराएंगे।
– सियासी समीकरण साधने में महारत। सिद्धू की टीम में लगातार सेंधमारी। कई पार्षद भी संपर्क में।
– पार्टी का वरिष्ठ नेता होने के नाते अपनी एक खास टीम भी है जो दिन-रात लगातार काम कर रही है।
आआपा की मुश्किल
– जमीन पर खास गतिविधि नहीं। शहरी इलाका होने के कारण संगठन मजबूत नहीं है।
– सिद्धू-मजीठिया के बीच सीधा मुकाबला होने से पार्टी उम्मीदवार फिलहाल चर्चा से बाहर हैं।
भितरखाने आआपा की बात
– ग्रामीण इलाके और शहर की झुग्गी बस्तियों में आआपा की पकड़ है। लोग भी आआपा की बात कर रहे हैं। ।
-इस बार मतदाता ‘बदलाव’ चाह रहा है। हालांकि प्रत्याशी नया है, लेकिन पार्टी पर लोगों को भरोसा है।
भाजपा के लिए चुनौती
– 2017 के विधानसभा चुनाव में भाजपा प्रत्याशी राजेश हनी को 17,668 वोट मिले। सिद्धू 42,809 वोटों से जीते।
– पार्टी ने सेवानिवृत्त आईएएस अधिकारी जगमोहन राजू को टिकट दी। उनकी इलाके में पहचान ही नहीं है।
हिंदू वोट बैंक पर नजर
– शहरी क्षेत्र होने की वजह से यहां भाजपा का प्रभाव है। यहां हिंदू मतदाता 32% और दलित मतदाता 38% हैं।
– रा.स्व.संघ के मजबूत संगठनात्मक ढांचे का फायदा पार्टी उम्मीदवार को मिल रहा है। वोट भी पक्का है।
क्या कहते हैं मतदाता
1. गुरप्रीत क्लॉथ हाउस के मालिक हरप्रीत सिंह कहते हैं, ‘’मेरी दुकान पर रोज कई ग्राहक आते हैं। इनमें से अधिकतर की जुबान पर आम आदमी पार्टी का नाम हैं। मेरे बच्चे भी ऑस्ट्रेलिया में हैं और आआपा का समर्थन करते। वे कह रहे हैं इस बार वोट आआपा को ही देना चाहिए। हर कोई इस बार रिवायती पार्टियों से उठकर वोट देना चाहता है।‘’
2. क्षेत्र के मतदाता रोहित शर्मा कहते हैं, ‘’मतदान से पहले हर कोई सोचता है। आआपा ने मजबूत उम्मीदवार नहीं उतारा। अगर उतारते तो उसके बारे में सोच सकते थे। फिलहाल सिद्धू व मजीठिया के बारे में ही सोच रहे हैं। अमृतसर पूर्व में नशा बड़ी समस्या है। 60% युवा बाहर रहते हैं, जो 40% यहां हैं, वे नशे की गिरफ्त में फंस रहे हैं। युवाओं का समय पढ़ाई की जगह नशा करने में जा रहा है।‘’
3. लखबीर सिंह कहते हैं, ‘’चुनाव की बातें होती रहती हैं, लेकिन कोई सच नहीं बता रहा है। इस इलाके के लोग अभी चुप हैं। सिद्धू भले ही ज्यादा बोलते हैं, लेकिन बोलते सच ही हैं। बिक्रम मजीठिया कहेंगे कुछ और करेंगे कुछ। इसलिए तस्वीर तो मतदान से दो-चार दिन पहले ही साफ होगा।‘’
4. अमतृसर पूर्व के अन्य मतदाता कुलजीत सिंह का कहना है, ‘’सिद्धू के पंजाब मॉडल का क्या कहें, अमृतसर पूर्व में तो विकास कार्य हुआ ही नहीं। पहले सिद्धू की पत्नी विधायक थीं और 5 साल से वे विधायक हैं। इस बार लोग बदलाव चाहते हैं। आआपा ने मजबूत उम्मीदवार नहीं उतारा, इसलिए इस बार मजीठिया को चुनना चाहेंगे।
अमृतसर पूर्व सीट का इतिहास
– इस विधानसभा सीट पर पहला चुनाव 1951 में हुआ और सरूप सिंह ने जीते।
– 1957, 1962 व 1967 में भारतीय जनसंघ के बलदेव प्रकाश यहां से लगातार जीते।
– 1969 और 1972 में इस सीट पर कांग्रेस का कब्जा हो गया।
– 2012 में इस विधानसभा क्षेत्र में वेरका और शहर के कुछ इलाके मिला दिए गए।
– 2012 में भाजपा ने अकाली दल से यह सीट ली और सिद्धू की पत्नी को टिकट दिया, जो जीत गईं।
– 2017 में सिद्धू ने भाजपा प्रत्याशी राजेश हनी को 42,809 वोटों से हराया।
2017 का चुनाव परिणाम
कुल मतदाता : 1,53,288
कुल मतदान : 99306 (64.78%)
नवजोत सिद्धू (कांग्रेस) को वोट मिले : 60,447
राजेश हनी (भाजपा) को वोट मिले : 17,668
सर्बजोत सिंह धांजल (आआपा) को वोट मिले : 14,715
जीत का अंतर: 42,809
2022 में बढ़ गए 14,725 मतदाता
कुल मतदाता: 1,68,013
मतदान केंद्र: 171
मतदान लोकेशन: 64
टिप्पणियाँ