पंजाब कांग्रेस के प्रधान नवजोत सिंह सिद्धू की कमजोरियां उन्हें ले डूबी। उनकी सबसे बड़ी कमजोरी है जल्दबाजी यानी जरूरत से अधिक रफ्तार है। वह तेजी से चीजे बदलना चाह रहे थे। दूसरी कमजोरी है उनका बड़बोलापन। अकाली दल को लेकर वह जिस तरह से आक्रमक हुए, उससे पंजाब के मतदाता और पार्टी के भीतर भी यह संदेश गया कि वह व्यक्तिगत रंजिश के तहत बिक्रमजीत सिंह मजीठिया को फंसा रहे हैं। सिद्धू ने मजीठिया के खिलाफ दर्ज मुकदमे को इतना बड़ा बना दिया कि खुद इसके नीचे दबते से नजर आ रहे थे।
सिद्धू लगातार चन्नी पर भी हमलावर रहे। यहां तक कि उन्हें खुल कर काम करने नहीं दिया। इस वजह से यह माना जाने लगा कि सिद्धू खुद को प्रमोट करने में लगे रहते हैं। अपनी बात को मनवाने के लिए किसी भी हद तक जा सकते हैं। इसके अलावा, सिद्धू की जमीन पर पकड़ भी कमजोर है। उनकी पहचान नेता के तौर पर कम अभिनेता के तौर पर अधिक है। इस वजह से लोग उन्हें सुनते तो जरूर हैं, लेकिन उनके साथ जुड़ नहीं पाते।
कैप्टन अमरिंदर सिंह जब कांग्रेस में थे तो उनकी छवि यह थी कि उनसे मिलना बहुत मुश्किल काम है। इसी तरह की समस्या सिद्धू के साथ भी थी। कांग्रेस की कोशिश थी कि मुख्यमंत्री ऐसा होना चाहिए जो पार्टी कार्यकर्ताओं और विधायकों को आसानी से उपलब्ध हो सके। सिद्धू को अच्छा प्रशासक नहीं माना जा रहा है। उनके बात करने के तरीके पर भी काफी आपत्तियां उठती रहती हैं, जबकि मुख्यमंत्री से यह उम्मीद की जाती है कि वह अच्छा प्रशासक हो, जो सभी का साथ लेकर चल सके।
इसके अलावा, सिद्धू के साथ यह समस्या भी रही कि वे पार्टी नेताओं को अपने साथ जोड़ नहीं पाए। इसलिए पार्टी में उनके समर्थन में ज्यादा नेता भी नहीं हैं, जो उन्हें मुख्यमंत्री का चेहरा बनते हुए देखना चाहते हों या पार्टी के भीतर उनके नाम की वकालत कर सकें। सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि सिद्धू का प्रभाव पूरे पंजाब में नहीं है। यह भी एक वजह है कि पार्टी उन्हें मुख्यमंत्री का चेहरा बनाने से बचती रही। पार्टी ऐसे व्यक्ति को मुख्यमंत्री बनाना चाह रही थी, जो राज्य में पार्टी का नेतृत्व कर सके। इसमें भी सिद्धू पिछड़ते नजर आए।
इसलिए सीएम पद का चेहरा बने
मिलनसार व्यक्तित्व और सभी को साथ लेकर चलने की क्षमता के कारण चन्नी ने पार्टी में अलग जगह बनाई। 111 दिन के कार्यकाल में उन्होंने खुद को मुख्यमंत्री के तौर पर स्थापित किया और अपनी अलग छवि बनाने के साथ पार्टी को भी दिशा दी। वह लगातार पार्टी को मजबूत करने की कोशिश करते रहे। उनके समक्ष सबसे बड़ी चुनौती थी पार्टी को कैप्टन अमरिंदर सिंह के औरा से बाहर निकालना, जिसे उन्होंने उन्होंने बखूबी निभाया। उन्होंने किसी पर भी कोई व्यक्तिगत आरोप नहीं लगाया। यहां तक कि जब सिद्धू ने उन्हें काम नहीं करने दिया, तब भी वह चुप रहे। इससे पार्टी में यह संदेश गया कि वे मौके की नजाकत को भांपते हुए मुख्यमंत्री के तौर पर काम कर सकते हैं। पार्टी का दलित चेहरा होने के कारण पंजाब के दलितों को पार्टी के साथ जोड़ने में बड़ी भूमिका निभा सकते हैं। इतना ही नहीं, कांग्रेस की यह भी कोशिश है कि चन्नी को आधार बनाकर राष्ट्रीय स्तर पर भी यह दिखाया जाए कि पार्टी में दलित समुदाय को पूरी तवज्जो मिलती है। चन्नी ने सीएम पद को लेकर ज्यादा हाय-तौबा नहीं मचाई। सिद्धू से इतर चन्नी अपनी बात इधर-उधर या सोशल मीडिया पर रखने की बजाय पार्टी मंच पर रखना ज्यादा बेहतर समझते हैं। यह भी एक कारण रहा कि पार्टी ने सिद्धू के बजाय चन्नी को तवज्जो दी।
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