कांग्रेस आलाकमान ने घोषणा कर दी कि पंजाब में चरणजीत सिंह चन्नी ही मुख्यमंत्री का चेहरा होंगे। इसी के साथ पंजाब कांग्रेस के प्रधान नवजोत सिंह सिद्धू इस दौड़ में पिछड़ गए। मुख्यमंत्री की दौड़ में सिद्धू पहली बार नहीं पिछड़े हैं। एक एक मौका तब आया था, जब कैप्टन अमरिंदर सिंह को मुख्यमंत्री पद से हटाया जा रहा था। दूसरा मौका आया, जब कांग्रेस तय कर रही थी की पंजाब में मुख्यमंत्री का चेहरा किसे बनाया जाए?
सिद्धू ने दोनों बार कड़ी मेहतन की। खुद दांव लगाया। ताकत लगाई। फिर भी पिछड़ गए। क्यों? जानकार बताते हैं कि सिद्धू अचानक ही नहीं पिछड़े, इसकी वजह रही। कैप्टन अमरिंदर सिंह के मुख्यमंत्री पद से हटने से पहले सिद्धू ने बगावत की थी। तब उन्हें कांग्रेस का प्रदेशाध्यक्ष बना दिया गया। सिद्धू को लगा कि अब वह कैप्टन को पीछे छोड़ देंगे, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। कैप्टन से उनकी पटरी नहीं बैठी। वे कैप्टन पर भी भारी नहीं पड़ सके। तब सिद्धू ने एक बार फिर से कैप्टन पर हमला बोलना शुरू किया दिया। नौबत मुख्यमंत्री बदलने की आ गई। जब कैप्टन ने इस्तीफा दिया तो सिद्धू को लगा कि अब वह मुख्यमंत्री बन जाएगे। यहां उन्होंने मेहनत की। खूब तर्क दिए। लेकिन कांग्रेस ने यह तर्क देकर सिद्धू को किनारे कर दिया कि वे प्रदेश अध्यक्ष हैं, इसलिए उन्हें मुख्यमंत्री पद पर नहीं नहीं बैठाया जा सकता। इस तरह, मुख्यमंत्री पद सिद्धू के हाथ आते-आते छिटक गया।
सिद्धू तब फिर से आक्रमक हो गए। उन्होंने नए मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी पर भी सवाल उठाने शुरू कर दिए। कई नियुक्तियों पर सवाल उठाते हुए उन्होंने प्रदेश अध्यक्ष पद से इस्तीफा तक दे दिया। लेकिन कई दिनों तक पार्टी ने इस्तीफे पर फैसला नहीं लिया। जब कांग्रेस ने तय कर लिया कि यदि सिद्धू खुद इस्तीफा वापस नहीं लेंगे तो इसे स्वीकार कर लिया जाएगा, तो सिद्धू ने इस्तीफा वापस ले लिया। यह दूसरा मौका था, जब सिद्धू के व्यवहार ने पार्टी आलाकमान को चिंता में डाल दिया। नेतृत्व को समझ में आने लगा कि सिद्धू को यदि पूरा अधिकार दे दिया गया तो वे दिक्कत पैदा कर देंगे, क्योंकि वे एक नेता की तरह नहीं सोचते। वह सभी को साथ लेकर नहीं चल पाते। वह अपनी बात पर अड़ जाते हैं। यह तीसरा मौका था, जब सिद्धू की छवि पार्टी में कमजोर हुई।
हालांकि मुख्यमंत्री की दौड़ में पिछड़ने बाद भी सिद्धू ने अपना प्रयास नहीं छोड़ा। विधानसभा चुनाव की घोषणा होते ही उन्होंने पंजाब मॉडल नाम से एक प्रोग्राम तैयार किया। इसे लेकर उन्होंने खूब मार्केटिंग की। वह इसमें कामयाब भी हो रहे थे। लेकिन अचानक ही उन्होंने बिक्रमसिंह मजीठिया के खिलाफ नशा तस्करी को लेकर जो आरोप लगाए, उससे निकल नहीं पाए। अकाली दल ने उनके खिलाफ मोर्चा खोल दिया। इसका परिणाम यह निकला कि वह बुरी तरह से घिर गए।
इसी बीच मजीठिया सर्वोच्च न्यायालय से अंतरिम जमानत ले आए। यह सिद्धू के लिए बड़ा झटका था। इससे वह पंजाब और कांग्रेस, दोनो में कमजोर पड़ गए। उन्होंने मजीठिया को अपने विधानसभा क्षेत्र से लड़ने की चुनौती दे दी, जिसे मजीठिया ने स्वीकार कर लिया। इस तरह, सिद्धू ने मुख्यमंत्री पद के लिए जो मेहनत की थी, वह बेकार होती चली गई। नतीजा कांग्रेस ने चन्नी को मुख्यमंत्री का चेहरा घोषित कर दिया।
चन्नी को मुख्यमंत्री का चेहरा घोषित करने के लिए कांग्रेस ने भी बहुत ही रणनीति से काम लिया। पार्टी ने मुख्यमंत्री का चेहरा घोषित करने में इतना अधिक समय इसलिए लगाया, क्योंकि कांग्रेस को डर था कि यदि नामांकन प्रक्रिया के बीच इसकी घोषणा की गई तो सिद्धू बगावत करते हुए पार्टी ही न छोड़ दें। कांग्रेस इससे बचना चाह रही थी। यह भी एक कारण था कि मुख्यमंत्री चेहरे की घोषणा के लिए कांग्रेस ने थोड़ा वक्त लिया। हालांकि सिद्धू हालात को भांप गए थे और उन्होंने अपने तेवर भी दिखाने शुरू कर दिए थे। लेकिन पार्टी ने बहुत ही सधे तरीके से सिद्धू को साधा।
पंजाब में जब स्टार प्रचारकों की सूची तैयार की गई तो सिद्धू का नाम चन्नी से ऊपर रखा गया, जबकि उत्तराखंड में कांग्रेस के स्टार प्रचारकों में पहले मुख्यमंत्री और बाद में पार्टी अध्यक्ष का नाम था। यह इशारा था, जिसमें कांग्रेस ने सिद्धू को तवज्जो देते हुए उन्हें मुख्यमंत्री उम्मीदवार से दूर ले जाने का काम किया। अंतत: जब सिद्धू की चारों तरफ से घेराबंदी हो गई तो कांग्रेस ने सिद्धू की बजाय चन्नी को मुख्यमंत्री का चेहरा बना दिया।
टिप्पणियाँ