पंजाब में विधानसभा चुनाव की सरगर्मी के बीच कांग्रेस को बड़ा झटका लगा है। सुनील जाखड़ के सक्रिय राजनीति से दूर होने की घोषणा से कांग्रेस सकते की हालत में है तो विपक्ष के नेता भी कम चकित नहीं हैं। दरअसल हिंदू नेता होने के कारण कांग्रेस में मुख्यमंत्री पद के लिए खारिज किए जाने से वह बेहद आहत थे। जाखड़ के सक्रिय राजनीति छोड़ने के कई कारण हैं। इसके साथ ही यह भी सवाल उठता है कि उनकी सियासत को लेकर उनकी भविष्य की क्या रणनीति हो सकती है ? हालांकि उन्होंने कहा है कि वह कांग्रेस में ही हैं, लेकिन उनके अगले सियासी पड़ाव को लेकर कई तरह की चर्चाएं हैं।
दरअसल कांग्रेस के लिए यह बहुत बड़ा झटका है। पूर्व प्रदेश प्रधान व तीन बार विधायक रहे हिंदू नेता व प्रचार कमेटी के चेयरमैन सुनील जाखड़ ने जिस तरह सक्रिय राजनीति से संन्यास ले लिया है, उससे पार्टी पर कई सवाल उठ रहे हैं। जाखड़ ने कहा है कि वह सक्रिय राजनीति का हिस्सा नहीं रहेंगे। हालांकि वह कांग्रेस में ही रहेंगे। जाखड़ ने यह फैसला तब लिया है जब पंजाब में चुनाव प्रचार चरम पर आने लगा है।
जमाने में और भी बहुत काम हैं राजनीति के अलावा
जाखड़ का कहना है कि मैं अब सक्रिय राजनीति में हिस्सा नहीं लूंगा। अब चाहे इसे राजनीति संन्यास माने या कुछ और लेकिन अब बस…। पिछले दिनों के कांग्रेस में खुद के साथ हुए घटनाक्रम से आहत जाखड़ ने यहां तक कहा है कि जमाने में राजनीति के सिवाय और भी बहुत काम हैं। अहम बात यह है कि जाखड़ ने यह फैसला पार्टी के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गांधी के साथ लुधियाना में स्टेज साझा करने के एक दिन बाद ही किया था। राहुल गांंधी ने इस दौरान सुनील जाखड़ को ‘हीरा’ और ‘बेहद संजीदा’ इंसान बताया था। इस मौके पर जाखड़ खुद गाड़ी चलाकर राहुल गांधी को लुधियाना लेकर गए थे। बता दें कि सुनील जाखड़ पार्टी द्वारा 42 विधायकों के समर्थन के बावजूद मुख्यमंत्री नहीं बनाए जाने को लेकर खासे नाराज और आहत थे।
जाखड़ की नाराजगी इस बात को लेकर ज्यादा थी कि पार्टी की वरिष्ठ नेता अंबिका सोनी ने उनके और मुख्यमंत्री की कुर्सी के बीच खाई यह कह कर बना दी कि पंजाब में पगड़ीधारी ही मुख्यमंत्री हो सकता है। इससे पहले जब कांग्रेस के विधायकों ने कैप्टन के खिलाफ मोर्चा खोला था तब भी पार्टी ने सबसे पहले उनसे (सुनील जाखड़ से) इस्तीफा लेकर नवजोत सिंह सिद्धू को प्रदेश प्रधान की कमान सौंपी थी।
जाखड़ की नाराजगी को देखते हुए राहुल गांधी बार-बार उन्हें मनाने की कोशिश कर रहे थे। राहुल ने जाखड़ को उपमुख्यमंत्री बनाने का भी प्रस्ताव रखा था लेकिन उन्होंने इसे अस्वीकर कर दिया। सूत्र बताते हैं कि रविवार को लुधियाना में भी मुख्यमंत्री पद का चेहरा घोषित करने से पहले राहुल गांधी ने जाखड़ को चरणजीत सिंह चन्नी के साथ गिले-शिकवे दूर करने के लिए कहा था। इस पर जाखड़ ने स्पष्ट कर दिया था कि पहले पार्टी चुनाव जीत ले, गिले-शिकवे बाद में भी दूर होते रहेंगे। जानकारी के अनुसार जाखड़ इस बात को लेकर भी खासे नाराज थे कि टिकट बंटवारे में पार्टी ने उन नेताओं को भी टिकट दिया, जो रेत बजरी के अवैध कारोबार में संलिप्त थे।
करीबी सूत्र बताते हैं कि जाखड़ ने इसलिए भी सक्रिय राजनीति से संन्यास ले लिया है कि पंजाब में दोबारा कांग्रेस की सरकार आने पर उन पर पुन: डिप्टी सीएम बनने का दबाव न बनाया जाए। वहीं, चुनाव में अगर कांग्रेस को हार का सामना करना पड़ा तो उसके बाद उत्पन्न होने वाली कलह की जिम्मेदारी का वह हिस्सा न रहें। तीन बार विधायक व एक बार लोक सभा सदस्य रहे जाखड़ से आगे की योजना के बारे में पूछने पर वह कहते हैं कि ‘अभी कुछ नहीं सोचा है। दुनिया में और भी बहुत काम हैं राजनीति के अलावा।’
संन्यास से कांग्रेस पर क्या होगा असर
सुनील जाखड़ के सक्रिय राजनीति से संन्यास लेने से कांग्रेस के पास अब कोई ऐसा वरिष्ठ नेता नहीं रह गया है जिसका प्रभाव हरेक वर्ग पर हो। जाखड़ की छवि साफ सुथरे व मुद्दों पर राजनीति करने वाली राजनेता की रही है। चुनाव के बीच में संन्यास लेने से कांग्रेस से हिंदू वोट बैंक और दूर जा सकता है। क्योंकि, हिंदू होने के कारण मुख्यमंत्री न बनाए जाने से पंजाब का हिंदू पहले ही आहत था।
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