कांग्रेस हिंदू विरोधी है, यह बात नई नहीं है। चूंकि अब लोग अधिक स्पष्टता से यह देख पा रहे हैं, इसलिए अब यह बात पुख्ता होती दिख रही है। पंजाब कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष चौधरी सुनील कुमार जाखड़ को पार्टी ने सिर्फ इसलिए मुख्यमंत्री नहीं बनाया, क्योंकि वे हिंदू हैं। कांग्रेस की इस साम्प्रदायिक सोच से पंजाब के हिंदुओं के मन को गहरी चोट पहुंची है। इसलिए बरसों से पंजाब में उपेक्षित हिंदू समाज उद्वेलित हो रहा है। कांग्रेस और हिंदू विरोधी नेता इसे समझ रहे हैं, इसलिए चुनाव नजदीक आते ही मंदिर-मंदिर भागना शुरू कर दिया है।
2014 लोकसभा चुनाव में कांग्रेस की दुर्दशा के कारणों का पता लगाने के लिए पार्टी ने ए.के. एंटनी की अगुआई में एक जांच समिति गठित की। समिति ने कांग्रेस की हार के कई कारण गिनाए, जिनमें एक एक प्रमुख कारण था पार्टी की हिंदू विरोधी छवि। राष्ट्रीय परिदृश्य में ढूंढने पर ऐसे कई उदाहरण मिल जाएंगे, जब हिंदुओं के प्रति कांग्रेस का व्यवहार साम्प्रदायिक रहा।
मदनलाल बिरमानी ने अपनी पुस्तक ‘भारत विभाजन का दुखांत और संघ’ में कांग्रेस की एक हिंदूघाती घटना का जिक्र किया है। इसके अनुसार, देश विभाजन के समय पंजाब में जब मुस्लिम लीग के हथियारबंद दंगाइयों का बोलबाला था तब जवाहर लाल नेहरू अमृतसर दौरे पर आए थे। यहां हिंदुओं का एक शिष्टमण्डल उनसे मिला और उनसे हिन्दू-सिख समाज की रक्षा तथा आत्मरक्षा हेतु उन्हें हथियार उपलब्ध कराने का आग्रह किया। नेहरू कुछ देर मौन रहे, फिर बोले, ‘अगर मैंने हिंदू-सिखों को हथियार उपलब्ध करवाए तो मुसलमानों को भी यह सुविधा देनी होगी।’ इस पर शिष्टमण्डल के नेता ने कहा, ‘ठीक है, हमें मरना ही है तो कम से कम इतना करें कि आप ही हमें मार दें।’ नेहरू ने इसका कोई जवाब नहीं दिया।
कांग्रेस की इसी हिंदू विरोधी मानसिकता का शिकार हुए हैं, चौधरी सुनील कुमार जाखड़। जाखड़ ने दावा किया है कि कैप्टन अमरिंदर सिंह को पद से हटाने के बाद नया मुख्यमंत्री चुनने के लिए मतदान हुआ, जिसमें उन्हें पार्टी के 79 में से 42 विधायकों का समर्थन मिला। लेकिन पार्टी नेतृत्व ने चरणजीत सिंह चन्नी को मुख्यमंत्री बना दिया, जिन्हें मात्र दो विधायकों का समर्थन था। जाखड़ को मलाल मलाल है कि पार्टी उन पर कोई झूठा आरोप लगाकर इनकार कर देती तो भी चलता, परन्तु उनके धर्म के कारण उन्हें अयोग्य समझा गया! यह तो देश के संविधान की भावना के खिलाफ कार्य है और हिंदू समाज का अपमान। अब हिदू विरोध के आरोपों से घिरी पंजाब कांग्रेस को कुछ सूझ नहीं रहा है।
प्रदेश में कांग्रेस पर हिंदू विरोध का ठप्पा तो उसी समय लग गया था, जब कुर्सी की अदला-बदली समय पार्टी के वरिष्ठ नेताओं ने साफ शब्दों में कहा था कि राज्य का मुख्यमंत्री हिंदू नहीं हो। अब जाखड़ द्वारा सवाल उठाने के बाद हिंदू अस्मिता के जख्म दोबारा गहरे होते दिख रहे हैं। पंजाब को जानने वाले बताते हैं कि यहां की राजनीति अकाली दल और कांग्रेस के इर्द-गिर्द ही घूमती रही। जनसंघ व उसके बाद भाजपा के उदय के बाद भी यहां का हिंदू आंख बंद कर कांग्रेस पर भरोसा करता रहा। 1970 के दशक में कांग्रेस के राजनीतिक प्रयोगों से आतंकवाद पनपा, फिर भी पार्टी पर हिंदुओं का भरोसा बना रहा, जो बेअंत सिंह के समय और पुख्ता हुआ, क्योंकि उन्होंने अपने कार्यकाल में आतंकवाद के खात्मे के प्रति गंभीरता दिखाई थी। इस तरह, यहां का हिंदू समाज देश में बहुसंख्यकों के साथ होने वाले राजनीतिक अन्याय के आरोपों से भी अलिप्त रहा और कांग्रेस की मतपेटी भरता रहा। हिंदुओं ने मन में स्वीकार भी कर लिया कि पंजाब के मुख्यमंत्री की कुर्सी उनके लिए नहीं है, लेकिन अब जाखड़ प्रकरण ने इस समाज की अंतररात्मा को मानो झकझोर कर रख दिया है।
कांग्रेस व इसी तरह साम्प्रदायिक राजनीति करने वाले दलों से उद्वेलित हिंदू समाज पूछ रहा है कि जब देश का संविधान उसे समानता देता है तो उसके साथ भेदभाव करने वाले राजनीतिक दल या नेता कौन होते हैं? क्या पंजाब का हिंदू दूसरे दर्जे का नागरिक है? क्या पंजाब का हिंदू अयोग्य है या उसमें नेतृत्व क्षमता नहीं? पंथनिरपेक्षता की राजनीति करने वाली पार्टियां पंजाब के हिंदुओं के खिलाफ साम्प्रदायिक दृष्टिकोण क्यों रखती हैं? ऐसा नहीं है कि पंजाब में जगी हिंदू चेतना से यहां के राजनेता अनभिज्ञ हैं। अगर ऐसा होता तो प्रदेश के सभी दलों के नेता मंदिरों व तीर्थों में पूजा-अर्चना करने को कतार में खड़े न होते। प्रदेश में पहली बार देखने को मिल रहा है कि चुनावों से पहले राजनेता मंदिर दर्शन कर रहे हैं। इससे पहले कोई नेता मंदिर या हिंदुओं के किसी कार्यक्रम में जाता तो उसे एक खास धर्म का विरोधी करार दिया जाता था। केंद्र में अटल बिहारी वाजपेयी की अगुआई वाली राजग सरकार में अकाली दल भी शामिल था। फिर भी पंजाब के अकाली शिक्षा मंत्री ने केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्रालय के कार्यक्रम में सरस्वती वंदना के विरोध में उठे स्वरों में स्वर मिलाए थे। इसी तरह, प्रकाश सिंह बादल ने जैन सम्प्रदाय के एक समागम में मुकुट धारण किया तो प्रदेश की राजनीति में तूफान खड़ा हो गया था। राजनेताओं के साथ-साथ पंजाबी मीडिया ने भी बादल को खरी-खोटी सुनाई।
देशभर में जागृत हुई हिंदू अस्मिता का असर देर से ही सही, परन्तु अब पंजाब में भी दिख रहा है। यह न केवल हिंदू समाज, बल्कि समूचे पंजाब, पंजाबी और पंजाबियत के लिए भी शुभ संकेत है।
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