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एक पत्र मिस्टर ट्रुडो के नाम

by पंकज झा
Feb 2, 2022, 06:17 am IST
in विश्व, दिल्ली
जस्टिन ट्रूडो

जस्टिन ट्रूडो

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मिस्टर पीएम, हमारे लिए यूं तो समूचा विश्व ही परिवार है, लेकिन नाहक किसी के परिवार या देश में नाहक हस्तक्षेप करने की अपनी परम्परा नहीं रही है। ख़ास कर किसी क्षुद्र लाभ के लिए किसी दूर के पड़ोसी पर भी कोई कटाक्ष या टिप्पणी आदि अपन नहीं करते।

 

प्रति 
श्री जस्टिन ट्रूडो
प्रधानमंत्री, कनाडा 
अज्ञात जगह, ओटावा. 
महाशय 
सुबह-सुबह आपके द्वारा अपना सुरक्षित आवास छोड़ कर सपरिवार किसी अज्ञात स्थान पर पलायन कर जाने की खबर सुनकर चिंतित हुआ हूं। आशा है आप जहां भी होंगे श्रीमती सोफिया और अपने तीनों बच्चों के साथ सकुशल होंगे। आपकी कुशलता की कामना इसलिए भी क्योंकि हम वसुधैव कुटुंबकम वाले संस्कृति के लोग हैं। हम चाह रहे थे कि यह पत्र आपको डाक से भेजें, लेकिन आपका कोई आधिकारिक पता अभी अस्तित्व में नहीं रहने के कारण आपको यह पत्र इसी माध्यम से भेज रहा हूं। आगे ईमेल भी कर दूंगा आपको।

मिस्टर पीएम, हमारे लिए यूं तो समूचा विश्व ही परिवार है, लेकिन नाहक किसी के परिवार या देश में नाहक हस्तक्षेप करने की अपनी परम्परा नहीं रही है। ख़ास कर किसी क्षुद्र लाभ के लिए किसी दूर के पड़ोसी पर भी कोई कटाक्ष या टिप्पणी आदि अपन नहीं करते। खासकर जब वह किसी परेशानी में हो तब तो दुश्मन देशों के साथ भी हम सहयोग ही करते हैं। यही किसी सभ्य समाज की पहचान भी है। इसी हफ्ते जब आपके आवास को 50 हज़ार ट्रकों ने घेर लिया था, तब निस्संदेह आपको भारत की याद आ रही होगी। राजधानी दिल्ली के बॉर्डर की, जहां कुछ हज़ार उपद्रवियों ने शहर को बंधक बनाने की कोशिश की थी। हालांकि यहां आपकी तरह पलायन करने जैसी नौबत नहीं आनी थी। केंद्र सरकार चाहती तो थोड़े-बहुत बल प्रयोग कर, दस-बीस जान लेकर दिल्ली से उन्हें बाहर कर सकती थी, लेकिन अमूमन भारत ने न तो कनाडा जैसा भाग जाने का विकल्प अपनाया और न ही किसी तानाशाह देश की तरह उपद्रवियों को कुचल देने का। भारत का अपना तरीका है, ख़ास कर सत्ताधारी भाजपा पक्ष-विपक्ष के अपने लम्बे अनुभवों का उपयोग कर ऐसे उपद्रवों से निपटना जानती है क्योंकि यह दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र है, तो यहां ऐसी घटनाएं गाहे-ब-गाहे घटती भी रहती हैं।

आपको यह इसलिए स्मरण करा रहा हूं क्योंकि आपने पिछले कुछ दिनों से जैसा महसूस किया होगा, उससे आपको यह अवश्य लगा होगा कि उपद्रवी चाहे जिस भी देश या समाज के हों, उन्हें कभी भी प्रश्रय नहीं देना चाहिये। क्षुद्र लाभ के लिए ऐसे किसी समूह को समर्थन कर आप भविष्य में खुद की बर्बादी का राह ही प्रशस्त कर रहे होते हैं। अभी 50 हज़ार ट्रक लेकर कौन से लोग आपके घर घुस गए थे, इससे हमें कोई लेना-देना नहीं है। आज के समय में भी ऐसे मूर्खों की बात कौन करना चाहेगा जिसे कोरोना टीका लेने से परहेज हो या जो मास्क नहीं लगाना चाहे। इन पंक्तियों को लिखते हुए गर्व हो रहा है मुझे इस बात पर कि हमारे लोग जिस पश्चिमी कथित नागरिक बोध के कसीदे पढ़ते थे, उस पश्चिम का यह हाल है, जबकि ढेर सारे दुष्प्रचार की शिकार भारतीय जनता ने टीका यज्ञ लगभग पूर्ण कर दुनिया को यह बताया है कि नागरिक बोध कहा किसे जाता है। दुःख हो रहा है कि कनाडा जैसे विकसित कहे जाने वाले देश में ऐसा कुछ हो रहा है।

प्रिय ट्रूडो, हमारे यहां भी सबकुछ ठीक ही हो, ऐसा नहीं है। आपके यहां के उपद्रवियों की तरह ही हमारे यहां भी ऐसे कुछ लोग हैं, जिन्हें अपनी कमीशन और दलाली बंद हो जाने की चिंता में इक्कीसवीं सदी तीसरे दशक में भी किसी नए कृषि क़ानून से परहेज है, जो आज भी यहां आढ़तियों की पुरानी फिरंगी-इसाई टाइप व्यवस्था कायम रखना चाहते हैं, लेकिन हम उनसे निपटना जानते हैं, निपटा भी है हमने। भारत की आज की सरकार ने दो कदम पीछे हट कर भी वास्तविक किसानों को विश्वास में लिया, और अंततः हुड़दंगी बिचौलिए परास्त हुए। आपको पत्र लिखने का आशय आपको बस यह बताना या जताना था कि आपने वोटों की क्षुद्र लिप्सा के लिए, आपके यहां निवासरत भारतीय मूल के मुट्ठी भर खालिस्तानियों के तुष्टिकरण के लिए भारत जैसे देश को बदनाम करने और यहां के कनाडा पोषित उपद्रवियों का समर्थन कर आपने भारी भूल की थी। आज उस भूल का नैसर्गिक खामियाजा इस तरह आपको भुगतना पड़ा है कि अपमानजनक ढंग से अपने अबोध बाल-बच्चों को साथ लेकर आपको अपना ही पीएम हाउस छोड़ देना पडा। 

मिस्टर पीएम, हमारे हिन्दू आख्यानों में एक वर्णन ‘भस्मासुर’ नाम के राक्षस का आता है। कथा है कि हमारे महादेव ने उसे ऐसा वरदान दे दिया था कि वह जिसके सर पर हाथ रखेगा, उसे भस्म कर देगा। कथा यह है कि भगवान शिव से ताकत पा कर उसने सबसे पहले शंकर पर ही दांव आजमाना शुरू कर दिया। तब से अपने यहां यह एक रूपक के तौर पर उपयोग किया जाता है और कहा जाता है कि बुरी ताकतों को प्रोत्साहित करोगे तो वह अंततः तुम्हारे खुद का ही विनाश करेगा, जैसा अभी आपके साथ हुआ है, हां… आपने तो खैर ऐसा कोई सबक पढ़ा नहीं होगा, तो भूल हो गयी हो गयी होगी आपसे। आप इसे आगे सुधार भी सकते हैं। आपने सुधारने की कोशिश भी की थी बाद में भारत सरकार का समर्थन कर शायद आपको यह पश्चाताप भी हुआ हो कि अनेक मंचों पर जिस आधुनिक कृषि कानूनों की आप तारीफ़ या वकालत करते रहे हैं, उसे ही केवल खालिस्तानी वोट के कारण आपने खारिज करने का पाप किया था। वह भी किसी अन्य देश के निजी मामलों में बेजा दखल देकर। 

मिस्टर जस्टिन, जानते हैं आप? भस्मासुर पैदा करने का ऐसा काम हमारे यहां के हुक्मरान भी खूब करते रहे हैं। परिणाम भी हर बार बुरा ही रहा, लेकिन वे बाज़ नहीं आते हैं। हमारे यहां एक प्रधानमंत्री हुई हैं इंदिरा गांधी नाम से, जिस खालिस्तानी तत्व का आपने समर्थन किया है, वैसा ही श्रीमती गांधी ने कर दिया था। तात्कालिक लाभ के कारण वे भी आतंकी भिंडरावाले को अपना बना बैठी थी, बाद में उन्हें ऑपरेशन ब्लू स्टार करना पड़ा और परिणाम अंततः यह हुआ कि खुद के खालिस्तान समर्थक अपने ही अंगरक्षकों के हाथ वे मारी गईं। उसके बाद भारत की कांग्रेस पार्टी ने तब बदला लेने के लिए हज़ारों सिखों का कत्ले आम कर दिया था। आश्चर्य यह है कि श्रीमती गांधी के बेटे थे राजीव गांधी नाम के। वे भी प्रधानमंत्री बने और विडंबना देखिये कि उन्होंने भी पिछ्ला सबक भूल कर प्रभाकरण नाम के आतंकी को प्रश्रय दिया। उन्होंने भी श्रीलंका के आंतरिक मामले में दखल दिया। बाद में उसी प्रभाकरण के संगठन के खिलाफ उन्होंने शान्ति सेना भेज दी। प्रतिशोध में फिर उसी प्रभाकरण के लोगों ने बम विस्फोट कर हमारे पूर्व पीएम की इतने चीथड़े कर दिए कि एक सुदर्शन व्यक्तित्व का पहचान में आना भी संभव नहीं रहा। राजीव के नाना भी भारत के प्रधानमंत्री थे। उन्होंने भी दुश्मन देश चीन को भारत के हिस्से की  ‘सुरक्षा परिषद’ की सदस्यता परोस कर दे दी थी। बदले में चीन ने भी ऐसा घाव भारत और खुद नाना पंडित नेहरू को दिया कि कहते हैं, अंततः उसी विश्वासघात के शोक ने जान भी ले ही ली पंडित जी की। आज भी राजीव के पुत्र राहुल समेत उनके परिवार के लोग यही ग़लती बार-बार दोहरा रहे हैं। आज भी हमारे यहां यही ग़लती दुहराई जा रही है कुछ स्वार्थी तत्वों द्वारा। हालांकि उम्मीद है कि आप अब ऐसी गलती नहीं करेंगे। उम्मीद है आप इन गलतियों से सबक सीखेंगे।

मिस्टर पीएम, हम कामना करते हैं कि आप उपद्रवियों से निपटने में सक्षम हों। पुनः अपने आधिकारिक आवास पर सपरिवार आपका कब्जा बहाल हो जाए, लेकिन अब कम से कम यह ध्यान अवश्य रखियेगा कि अपनी राजनीति अपने देश के आधार पर कीजिएगा कृपया। इस तरह क्षुद्र लाभ की प्रत्याशा में किसी अन्य संप्रभु राष्ट्र के आंतरिक मामलों में दखल देकर, उपद्रवियों और आतंकियों को नाहक प्रश्रय देकर आप अंततः खुद के लिए ही गड्ढा खोद रहे होंगे। चिट्ठी को तार बूझियेगा, कम कहे को ज्यादा समझिएगा। मेरे देश के एक प्रख्यात कवि-गीतकार हुए हैं ‘पद्मश्री गोपाल दास नीरज’ नाम से। उनकी प्रसिद्ध पंक्तियां हैं – आग लेकर हाथ में पगले जलाता है किसे, जब न ये बस्ती रहेगी तू कहां रह पायेगा। एक सिसकते आसूओं का कारवां रह जाएगा। आशा है आप इस झटके से जल्दी उबर इस दुनिया रुपी बस्ती को सुन्दर बनाने में अपना योगदान देंगे। भारी बहुमत से चुने हुए किसी लोकतांत्रिक देश की सरकार को अस्थिर करने की कोशिश, उसके खिलाफ किसी उपद्रवी ताकतों को समर्थन नहीं देकर खुद के देश की समस्याओं पर ध्यान आकृष्ट कर उसे हमारे अनुभवों की सहायता लेकर दूर करने की कोशिश करेंगे। इसी आग्रह और शुभकामनाओं के साथ…… आपका ही भारतीय।

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