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पाकिस्तान : सांसत में सुल्तान

by WEB DESK
Feb 2, 2022, 03:04 am IST
in विश्व, दिल्ली
सेनाध्यक्ष जनरल बाजवा और प्रधानमंत्री इमरान खान

सेनाध्यक्ष जनरल बाजवा और प्रधानमंत्री इमरान खान

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पाकिस्तान की बर्बाद अर्थव्यवस्था और देश के खराब हालात से इमरान सरकार के विरुद्ध आक्रोश है, सेना ने इससे बचने के लिए इमरान के पीछे से अपना हाथ हटा लिया जिस पर इमरान टकराव पर आमादा हो गए हैं। कई अन्य मोर्चों पर भी इमरान सरकार घिर गई है, आने वाले दिनों में तय हो जाएगा कि कैसे होगी इमरान सरकार की विदाई

‘अगर मुझे सरकार से निकाला गया तो मैं आपके लिए ज्यादा बड़ा खतरा बन जाऊंगा।
अगर मैं सड़कों पर आ गया तो आपको छुपने की जगह नहीं मिलेगी।’ 

महेश दत्त
पाकिस्तान में आज इमरान खान वह गोली बन गए हैं जो फौज को कब लग गई, उसे पता ही नहीं लगा और जब पता लगा तो उसे निकालने के अलावा कोई दूसरा चारा न रहा। बात अगस्त 2021 की है। प्रधानमंत्री निवास पर सेनाध्यक्ष जनरल बाजवा ने प्रधानमंत्री इमरान खान को बताया कि सरकार के बचे हुए कार्यकाल में सेना निष्पक्ष रहेगी और तमाम राजनीतिक दलों से एक समान दूरी बनाकर रखेगी। दरअसल सेना की एफआईयू (फील्ड इंफरमेशन यूनिट) से लगातार सूचना मिल रही थी कि जनमानस सरकार के विरुद्ध हो रहा है और वह इस सरकार को लाने वालों यानी सेना को इस परिस्थिति का जिम्मेदार समझता है। सेना यह भार नहीं उठाना चाहती थी। सेनाध्यक्ष की बात इमरान को नागवार गुजरी और उन्होंने अपनी नाराजगी सेनाध्यक्ष को जाहिर कर दी। इमरान का मानना था कि जब सरकार नवाज शरीफ और उनके परिवार जैसे चोर-डाकुओं से लड़ रही है, ऐसे में सेना सभी राजनीतिक दलों को समान दृष्टि से कैसे देख सकती है। इसी मुलाकात में सेनाध्यक्ष ने इमरान खान को यह भी बताया कि वह आने वाले समय में आईएसआई के प्रमुख को भी बदलना चाहते हैं। प्रधानमंत्री इमरान खान ने इस बारे में विचार करने के लिए कुछ समय की मांग की। इस मुलाकात के बाद इमरान खान ने अपने मुख्य सचिव आजम खान के साथ मंत्रिमंडल के अपने कुछ नजदीकी सहयोगियों को बुलाकर सवाल उठाया कि सेना इस समय निष्पक्ष कैसे हो सकती है। अपनी नाराजगी को स्पष्ट करते हुए उन्होंने यह भी कहा कि मैं देखता हूं, कैसे सेना निष्पक्ष हो सकती है।

कुछ दिन बाद इमरान खान का लाहौर दौरा हुआ। यहां गवर्नर हाउस में गवर्नर चौधरी सरवर, विदेश मंत्री शाह महमूद कुरैशी, असद उमर और सूचना और प्रसारण मंत्री फवाद चौधरी की मौजूदगी में प्रधानमंत्री ने इस मामले से निपटने के लिए अपनी रणनीति सामने रखी। उनका कहना था कि अगर वह सेनाध्यक्ष को हटा देते हैं या समय से पहले अगले सेनाध्यक्ष के नाम की घोषणा कर देते हैं तो इसके नतीजे में वर्तमान सेनाध्यक्ष का महत्व कम हो जाएगा। उनका विचार था कि अगर मौजूदा आईएसआई के मुखिया फैज हमीद का नाम अगले सेनाध्यक्ष के रूप में रख दिया जाएगा तो सेना में तमाम अधिकारी अगले सेनाध्यक्ष की तरफ आदेश के लिए देखेंगे, और मौजूदा सेना अध्यक्ष अपने पद पर होते हुए भी निष्क्रिय हो जाएंगे। इस मुलाकात में मौजूद लोगों ने इस योजना पर सहमति जता दी। याद रहे कि इस मंत्रिमंडल में कम से कम 5 लोग ऐसे हैं जो मंत्रिमंडल के अंदर होने वाली हर बात सेना तक पहुंचाते हैं। इमरान यह जानते हैं और ऐसी तमाम बातें, जिन्हें उनको सेना तक पहुंचानी होती हैं, ऐसे लोगों के सामने ही करते हैं। सूत्र बताते हैं कि लाहौर की मुलाकात के बाद एक मंत्री ने इमरान को अलग से मिलकर समझाया, कि हालात को समझा जाए और फौज से सीधे न टकराया जाए।

प्रधानमंत्री और सेनाध्यक्ष इन दिनों हर माह एक बार मिल रहे थे। सितंबर माह में होने वाली ऐसी ही मुलाकात में इमरान खान ने नई तैनातियों के लिए हामी भर दी। छह अक्तूबर को सेनाध्यक्ष ने प्रस्तावित नामों की सूची प्रधानमंत्री को दी और बताया कि वर्तमान आईएसआई प्रमुख को पेशावर का कोर कमांडर बना कर स्थानांतरित किया जा रहा है और कराची कोर कमांडर को आईएसआई का प्रमुख बनाया जा रहा है। इमरान खान ने एक बार फिर नानुकुर शुरू कर दी और समय मांगा। बताया जाता है कि दोनों में हल्की नोकझोंक हुई और सेनाध्यक्ष मुलाकात को अधूरा छोड़ कर चले गए। अगले ही दिन आईएसआई के नए प्रमुख के नाम की घोषणा कर दी गई। ऐसे में प्रधानमंत्री कार्यालय ने नई नियुक्तियों की औपचारिक सूचना जारी करने से मना कर दिया। मंत्रिमंडल की एक बैठक में जब कुछ मंत्रियों ने सेना अध्यक्ष के किसी कड़े कदम से आगाह किया तो इमरान ने अपने प्रमुख सचिव आजम खान को कहा कि वह जनरल करामत की फाइल लेकर आएं और बताएं कि किन हालात में नवाज शरीफ ने उनसे इस्तीफा लिया था। प्रधानमंत्री ने कहा कि वे ऐसे तमाम अधिकारियों का व्यक्तिगत साक्षात्कार करेंगे और नई नियुक्ति का चुनाव करेंगे।


पाकिस्तानी प्रधानमंत्री चीन से कहना चाहते हैं कि वह नवाज शरीफ को अनुबंध के अनुसार अभी आने से रोके। इस बारे में चीन का कहना है कि जो तय किया गया था, वह हो ही नहीं पाया, ऐसे में उसकी गारंटी के माने क्या रह जाते हैं। इमरान के सामने इससे भी बड़ी समस्या यह है कि चीनी राष्ट्रपति ने उनसे मिलने से इनकार कर दिया है। कोरोना वायरस के आने के बाद से चीनी राष्ट्रपति किसी भी अंतरराष्ट्रीय नेता से नहीं मिले हैं।


इस घटना के बाद सेनाध्यक्ष की एक मुलाकात प्रधानमंत्री के निवास बनीगाला में हुई। बताया जाता है कि इस मुलाकात के लिए तमाम रास्ते और प्रधानमंत्री निवास के बाहर ट्रिपल वन ब्रिगेड को तैनात किया गया। पाकिस्तान के इतिहास में जब भी सेना ने सत्ता पलट किया है तो यह ब्रिगेड अग्रणी भूमिका में रही है। माना जाता है कि यदि उस मुलाकात का अंत सेना के मुताबिक निराशाजनक होता तो कुछ भी हो सकता था। तमाम खींचातानी के बाद 21 अक्टूबर को नियुक्तियों की औपचारिक घोषणा प्रधानमंत्री कार्यालय से कर दी गई, साथ ही यह भी बताया गया कि आईएसआई के नए प्रमुख 20 नवंबर से अपना पदभार संभालेंगे। यह वही दिन था, जब चंद्रग्रहण था। इमरान के तमाम फैसले सितारों की गणना को ध्यान में रखकर किए जाते हैं। माना जाता है कि इमरान खान की वर्तमान पत्नी को जादू टोने में महारत हासिल है। संवैधानिक रूप से यह सही है कि प्रधानमंत्री आईएसआई प्रमुख का साक्षात्कार कर सकता है लेकिन पाकिस्तान के इतिहास में इसकी मिसाल कहीं नहीं मिलती। इसलिए सेना ने इसे अपना अपमान समझा।

सेना-नवाज में शर्तों पर बातचीत

सेना और नवाज शरीफ के बीच यह बात चल रही है कि नवाज शरीफ खुद अभी पाकिस्तान न आएं और इमरान की जगह पर अपनी पार्टी से किसी को नामांकित कर दें। सेना का मानना है कि वर्तमान संसद का बचा कार्यकाल नामांकित प्रधानमंत्री चलाएं। नवाज शरीफ ने इससे इनकार कर दिया है। उनका कहना है कि थोड़े समय के लिए वे अपने दल का प्रधानमंत्री नहीं देंगे। आज की अर्थव्यवस्था में ऐसा करना पार्टी हित में नहीं होगा। नवाज शरीफ का मानना है कि प्रधानमंत्री दो से तीन महीने के लिए बनना चाहिए और उसका एकमात्र कार्य नए चुनाव करवाना होना चाहिए। नवाज शरीफ और उनकी बेटी मरियम पर सर्वोच्च न्यायालय ने सारी उम्र राजनीति में भाग लेने पर प्रतिबंध लगाया है। इस फैसले के खिलाफ मरियम नवाज शरीफ की अपील पर सुनवाई शुरू होने वाली है लेकिन नवाज शरीफ पर सुनवाई इसलिए नहीं होगी क्योंकि उन्हें अदालत ने भगोड़ा घोषित कर दिया है। जब तक वह वापस आकर अदालत में आत्मसमर्पण नहीं करते हैं, तब तक उनके मामले पर फैसला नहीं किया जा सकता है। इस बीच चल रही रस्साकशी सेना के साथ चल रही बातचीत में तय की जा रही शर्तों को लेकर है ताकि नई सरकार का प्रारूप बनाया जा सके।

खैबर पख्तूनख्वा में पहले चरण का चुनाव हुआ और इमरान की पार्टी वहां इस चरण का चुनाव हार गई। संकेत आने लगे थे कि जो बैसाखियां अब तक इमरान सरकार को संभाले थीं और हर समस्या का निदान ढूंढ लाती थी, वे अब उपलब्ध नहीं थी। इस चुनाव के परिणाम के बाद भी इमरान ने एक मुलाकात में किसी से यह कहा कि देखो, आप लोग कहते थे कि मुझे हटा दिया जाएगा, ऐसा नहीं होने वाला। मेरे पास भी जानकारी के रास्ते हैं और कोई मुझे हटाए, उससे पहले मैं उसे हटा दूंगा। यह भी बताया जा रहा है कि इस बातचीत में इमरान ने सेनाध्यक्ष को पिल्ला कहकर संबोधित किया। यह बातें भी सेना तक पहुंचा दी गईं। इस विषय पर रणनीति बनाते हुए सेना ने इस बात को आधार बनाया है कि यदि इमरान सेनाध्यक्ष को हटाते हैं, तो सर्वोच्च न्यायालय के एक फैसले का सहारा लिया जाएगा जिसमें कहा गया है कि प्रधानमंत्री कोई फैसला अकेले नहीं ले सकता है। उसे मंत्रिमंडल की राय लेनी होगी। मंत्रिमंडल में लगभग अस्सी प्रतिशत सदस्य और संसद में इमरान सरकार को सहयोग देने वाले सदस्य सेना ने ही दिए हैं, ऐसे में यह लोग किस पाले में खड़े होंगे, यह स्पष्ट है।

सेना और नवाज शरीफ में सीधा संपर्क
लंदन में प्रवास कर रहे पाकिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्री नवाज शरीफ और सेना के बीच सीधा संपर्क हो चुका है और दोनों पक्ष इस बात पर विचार कर रहे हैं कि किस प्रकार दोनों के बीच शांति स्थापित हो और राजनीति को आगे ले जाया जा सके। याद रहे कि नवाज शरीफ को पाकिस्तान से बाहर निकालने में कुछ अंतरराष्ट्रीय देशों ने गारंटी दी थी। समझौता यह था कि नवाज शरीफ और उनकी पुत्री मरियम नवाज शरीफ को पाकिस्तान से निकल जाने दिया जाए और यह सुनिश्चित किया जाए कि दोनों अगले 5 साल तक पाकिस्तान वापस न आएं और न ही पाकिस्तान की राजनीतिक सरगर्मियों में हिस्सा लें। अपनी जिद और अहम के चलते इमरान ने इस योजना को पुराना न होने दिया। नवाज शरीफ के जाने के बाद मरियम नवाज शरीफ के जाने पर रोक लगा दी गई थी। 

इमरान की चीन यात्रा के उद्देश्य
अब जब नवाज शरीफ और पाकिस्तानी सेना के बीच संपर्क फिर बन गया है तो इमरान को यह खतरा हो चला है कि कहीं मुझे जल्द ही हटा  न दिया जाए। अपने को बचाने के क्रम में अब वह तीन फरवरी से पांच फरवरी तक चीन के दौरे पर जा रहे हैं। इसके पीछे इमरान खान के दो उद्देश्य है। एक, चीन को इस बात का आश्वासन देना कि चीन पाकिस्तान राहदारी एक बार फिर से चलाई जाएगी और इस प्रोजेक्ट से जुड़े तमाम कार्य को एक ही आॅफिस से निपटाया जा सकेगा। स्मरणीय है, इमरान सरकार के आने के साथ ही इस परियोजना को धीरे-धीरे रोक दिया गया है। पहले इसमें रिश्वत के आरोप लगाए गए, ब्याज दरों पर सवाल उठाए गए, यहां तक की चीनी इंजीनियरों पर हमले हुए और कुछ लोग मारे गए। चीन ने अपने नागरिकों की मौत के बदले लगभग सवा करोड़ डॉलर की मांग की है। इस यात्रा का दूसरा उद्देश्य पाकिस्तान की आंतरिक राजनीति है। पाकिस्तानी प्रधानमंत्री चीन से कहना चाहते हैं कि वह नवाज शरीफ को अनुबंध के अनुसार अभी आने से रोके। इस बारे में चीन का कहना है कि जो तय किया गया था, वह हो ही नहीं पाया, ऐसे में उसकी गारंटी के माने क्या रह जाते हैं। इमरान के सामने इससे भी बड़ी समस्या यह है कि चीनी राष्ट्रपति ने उनसे मिलने से इनकार कर दिया है। कोरोना वायरस के आने के बाद से चीनी राष्ट्रपति किसी भी अंतरराष्ट्रीय नेता से नहीं मिले हैं। चीन की ओर से कहा गया है कि पाकिस्तानी प्रधानमंत्री अपने समकक्ष चीन के प्रधानमंत्री से मिल लें या चीन के विदेश मंत्री से मिल लें। इस समय चीन में पाकिस्तानी दूतावास और पाकिस्तानी विदेश मंत्रालय इमरान की चीनी राष्ट्रपति से मुलाकात तय करवाना या कम से कम उनके साथ एक फोटो सेशन कराने की व्यवस्था में जुटा है। 27 जनवरी तक उन्हें इसमें सफलता नहीं मिल पाई है।

राजनीतिक सरगर्मी बढ़ी
पाकिस्तान में सत्ता के गलियारों में तापमान बढ़ता जा रहा है। 27 फरवरी से पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी कराची से इस्लामाबाद का लॉन्ग मार्च आयोजित कर रही है। दूसरी तरफ नवाज शरीफ की पार्टी पीएमएल ने 23 मार्च से लाहौर से इस्लामाबाद मार्च की घोषणा कर दी है। विपक्ष का मानना है कि जब तक उसे इस बात का भरोसा नहीं हो जाता कि अविश्वास प्रस्ताव लाने पर वह सफल होगा, वह अविश्वास प्रस्ताव लाने से गुरेज करेंगे। कारण यह है कि यदि यह पास न हुआ तो अगले छह महीने यह प्रस्ताव नहीं लाया जा सकेगा। यह भरोसा सेना के संकेत बिना नहीं हो सकता। पाकिस्तान के गृह मंत्री शेख रशीद ने विपक्ष से अपना लॉन्ग मार्च 23 मार्च के बजाय 27 मार्च को करने का निवेदन किया है। 23 मार्च को सेना राजधानी में परेड इत्यादि का कार्यक्रम करती है, जिसका बहाना लेकर रशीद विपक्ष को आने से मना कर रहे हैं। उनके मुताबिक इस मार्च पर आतंकवादी हमले का भी संदेह है। गत हफ्ता लाहौर के अनारकली बाजार में एक बम फट चुका है जिसमें चार लोग मारे गए थे। दूसरी तरफ बलूचिस्तान में 25 जनवरी को बलूचिस्तान की आजादी के मतवालों ने एक हमला कर पाकिस्तानी सेना के 10 सैनिक मौत के घाट उतार दिए और लगभग 9 सैनिकों को बंदी बना लिया। कराची से किसान एक ट्रैक्टर जुलूस लेकर सड़कों पर निकल चुके हैं। अफगानिस्तान की सीमा पर तालिबानी सेना ने पाकिस्तानी सेना द्वारा लगाई गई बाड़ को उखाड़ना शुरू कर दिया है। उनका यह कहना है कि वह डूरंड रेखा को सीमा नहीं मानते। 

इमरान पर मुसीबतों का अंत नहीं
इमरान खान पर आने वाली मुसीबतों का अंत अभी कहीं दिखाई नहीं देता है। पाकिस्तान चुनाव आयोग आने वाले दिनों में इमरान खान के एक नजदीकी सीनेटर फैसल बावड़ा की सदस्यता बर्खास्त करने वाला है। कानून के मुताबिक पाकिस्तान में चुनाव लड़ने के समय व्यक्ति के पास मात्र पाकिस्तानी नागरिकता होनी चाहिए। फैसल बावड़ा अमेरिका में पैदा हुए थे जिसके कारण उनके पास पाकिस्तान के अलावा अमेरिकी नागरिकता भी थी जिसे उन्होंने चुनाव के समय छोड़ा नहीं था। लेकिन उन्होंने चुनाव आयोग को शपथ पत्र दिया था कि उनके पास एकमात्र पाकिस्तानी नागरिकता है। चुनाव आयोग को झूठा शपथ पत्र देने के आरोप में उनकी नागरिकता रद्द होने जा रही है।

पाकिस्तान के सामने संकट

पाकिस्तान का तमाम राजनीतिक और सामाजिक वातावरण इस समय तनावग्रस्त है, जिसका एक बड़ा कारण तबाह होती अर्थव्यवस्था है। ब्रिटेन में की गई जांच में पाया गया है कि पाकिस्तान में जमीन-जायदाद के सौदों के एवज में अर्जित जिस धन को ब्रिटेन भेजा जाता है, वह धन मनी लॉन्ड्रिंग में आता है। इसके परिणामस्वरूप ब्रिटेन ने पाकिस्तान में हुए जमीन के हुए सौदों से अर्जित धन के अपने यहां आने पर रोक लगा दी है। इस बीच 28 फरवरी को आईएमएफ का अधिवेशन होगा जिसमें यह तय किया जाएगा कि क्या पाकिस्तान को एक अरब डॉलर का कर्ज दिया जा सकता है।

अहमद वकास गोराया एक पाकिस्तानी ब्लॉगर पत्रकार है। जनवरी 2017 में इनका चार और ऐसे ही पत्रकारों के साथ पाकिस्तान में अपहरण कर लिया गया था और कई हफ्तों बाद छोड़ा गया। माना जाता है कि ऐसा पाकिस्तान की खुफिया एजेंसियों द्वारा किया गया था। बाद में उसी वर्ष गोराया नीदरलैंड के शहर रोत्रदाम में बस गए। फरवरी 2020 में नीदरलैंड में उनके घर के बाहर दो लोगों ने उन पर हमला किया और पाकिस्तानी सरकार के खिलाफ न लिखने की चेतावनी दी। जून 2021 में गोहिर खान नामक एक व्यक्ति को ब्रिटेन पुलिस ने गोराया की हत्या के प्रयास के आरोप में गिरफ्तार किया लेकिन वहां के कानून के मुताबिक उसे दो लोगों की शख्सी जमानत पर छोड़ दिया गया। बाद में उसे आतंकवाद निरोधी पुलिस ने फिर गिरफ्तार किया और उस पर अब मुकदमा चला रही है। गोहिर के जमानतदार अब फरार हैं। बताया जा रहा है कि वह पाकिस्तान की खुफिया संस्थाओं से जुड़े लोग थे। इस मुकदमे की सुनवाई अगले 2 महीने में पूरी होनी है। यदि आरोप सिद्ध हुए तो इसके पाकिस्तान पर बहुत नकारात्मक परिणाम हो सकते हैं और अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं की तरफ से तरह तरह के प्रतिबंध लगाए जा सकते हैं।

पाकिस्तान के विरुद्ध एक और मुकदमा रीको डिक का है। इस कंपनी को पाकिस्तान के बलूचिस्तान में सोने और तांबे की खानों की खुदाई करने का काम दिया गया था लेकिन अंतरराष्ट्रीय अनुबंधों की अनदेखी करते हुए उनके अनुबंध को अचानक एक दिन पाकिस्तानी सर्वोच्च न्यायालय ने रद्द कर दिया। इस मामले को लेकर कंपनी ने वर्जिन आईलैंड के उच्च न्यायालय में मुकदमा जीता और पाकिस्तान पर छह अरब डॉलर का जुर्माना लग गया। मामले की और सुनवाई ब्रिटेन में हो रही है और अंतिम अनुबंध पर हस्ताक्षर होने के लिए इमरान सरकार के पास अनुबंध आ रहे हैं। पाकिस्तान के विपक्षी दल यह नहीं चाहते कि उनमें से कोई भी उस समय सत्ता में हो जब यह अनुबंध हस्ताक्षर के लिए आए। वे चाहते हैं यह कलंक भी इमरान सरकार के ही सर लगे।

कानून के अनुसार कोई भी राजनीतिक दल किसी व्यावसायिक संस्था से या किसी विदेशी से चंदा नहीं ले सकता है। ऐसा करने पर चुनाव आयोग दल के नेता की संसद सदस्यता बर्खास्त कर सकता है, यहां तक कि उस राजनीतिक दल पर चुनाव लड़ने पर प्रतिबंध लगा सकता है। आयोग ने इमरान खान की पार्टी पीटीआई के विरुद्ध ऐसे तमाम अकाउंट से आए हुए धन के प्रमाण सामने रख दिए हैं। इस पर भी फैसला आना अभी बाकी है। 

ऐसे में इमरान सरकार के गिरने के कुछ रास्ते इस प्रकार हैं। एक, अविश्वास प्रस्ताव लाया जाए जिसमें सरकार के सहयोगी दल सरकार का सहयोग न दें और विपक्ष के साथ मिलकर सरकार गिरा दें। दो, चुनाव आयोग इमरान के विरुद्ध फैसला दे और सरकार गिर जाए। तीन, इमरान सरकार के सहयोगी दल सरकार को अपना सहयोग वापस लें और सरकार गिर जाए। एक बात तो है, अब सेना सत्ता पर कब्जा करने नहीं आएगी। इनमें से किस रास्ते से सरकार गिरेगी, यह बात आने वाले हफ्तों में तय हो जाएगी।     

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